कोरोना वैक्सीन से हिचक!
नई दिल्ली। यह चिंतनीय है कि हमारे देश में सरकार ने जब 60 साल से ऊपर के लोगों को कोरोना वैक्सीन लगवाने का अभियान शुरू किया, तब 20 फीसद वरिष्ठ नागरिकों ने ही टीका लगवाया। कोरोना का संक्रमण जब बढ़ रहा है तब वैक्सीन के प्रति यह उदासीनता ठीक नहीं है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार गत 25 मार्च को कोरोना वायरस के संक्रमण के 53364 मामले सामने आये थे जो पिछले पांच महीनों में एक दिन में कोरोना संक्रमितों की सर्वाधिक संख्या है। इसी के साथ देश के 18 राज्यों में 771 संक्रमितों में डबल म्यूटेंट का पता चला है। नेशनल सेंटर फार डिजीज कंट्रोल के निदेशक ने यह जानकारी दी है। होली, नवरात्र, शबे बारात और रमजान जैसे त्योहार आने वाले हैं। लोगों का आवागमन इधर से उधर होगा और साथ ही यह महामारी फैलेगी। ऐसे हालात में कम से कम वैक्सीनेशन के प्रति उदासीनता नहीं होनी चाहिए। यूपी में भी अब कोरोना तेजी से बढ़ रहा है। महाराष्ट्र तो आगे है।
कोरोना महामारी से जूझते विश्व को भारत ने एक उम्मीद की किरण दिखाई है। यही वजह है कि भारत में बनी कोरोना की दोनों वैक्सीन के लिए विश्व के देशों में होड़ मची हुई है। लेकिन विडंबना देखिए कि 2020 में इस बीमारी से जूझने के बाद अब 2021 में भी बढ़ते मामलों के बीच देशवासी कोरोना वैक्सीन को लेकर उदासीन हैं। अपने ही देश में कोरोना की वैक्सीन को लगवाने के लिए लोग आगे नहीं आ रहे हैं।
देशभर में 16 जनवरी से शुरू हुए कोरोना वैक्सीनेशन अभियान में हेल्थवर्कर, फ्रंटलाइन वर्कर और फिर 60 साल से ऊपर के बुजुर्गों को वरीयता दी गई थी। लेकिन इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के आंकड़े बताते हैं कि अभी तक देशभर में 20 फीसदी से भी कम बुजुर्गों को कोरोना की वैक्सीन लगी है। यह बेहद चिंताजनक है कि देश में कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले बुजुर्गों को लेकर जागरुकता नहीं है।
आईसीएमआर में टास्क फोर्स ऑपरेशन ग्रुप फॉर कोविड के हेड डॉ. एन के अरोड़ा बताते हैं कि अभी तक जुटाए गए आंकड़ों में सामने आया है कि देश में 60 साल से ऊपर के 20 फीसदी से भी कम लोगों ने कोरोना वैक्सीन ली है। हालांकि इसके लिए युवा वर्ग जिम्मेदार है। चूंकि बुजुर्ग स्वयं वैक्सीन लेने या वैक्सीन के लिए रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया पूरी करने के लिए पूरी तरह समर्थ नहीं होते हैं ऐसे में यह जिम्मेदारी उनके बच्चों की होती है कि वे अपने बुजुर्गों को वैक्सीनेशन के लिए लाएं। डॉ। अरोड़ा कहते हैं कि कोरोना महामारी से बचाव के दो ही उपाय अभी तक सामने आए हैं। एक पूरी तरह एहतियात और दूसरा है कोरोना की वैक्सीन लगवाना। बेहद चिंताजनक है कि लोग अपने बुजुर्गों के स्वास्थ्य के प्रति उदासीन हैं। आंकड़े बताते हैं कि कोरोना के सबसे ज्यादा मामले बड़े शहरों में मिले हैं और इन्हीं शहरों में बुजुर्गों को वैक्सीन लगने की संख्या काफी कम है। इतने बड़े स्तर पर चल रहे वैक्सीनेशन ड्राइव में भी लोग शामिल नहीं हो रहे हैं। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए।
वे कहते हैं कि कोरोना पर वैक्सीन कारगर है। यह बचाव का मजबूत तरीका है। ऐसे में देशभर से लोगों को आगे आकर वैक्सीनेशन करवाना चाहिए। केंद्र से लेकर राज्य सरकारें भी लोगों से ज्यादा से ज्यादा वैक्सीन लगवाने की अपील कर रही हैं। लोगों को सरकार की ओर से किए जा रहे प्रयासों का लाभ लेना चाहिए।
स्वदेशी कोरोना वैक्सीन बनाने के बाद भारत दूसरे देशों को मुफ्त टीका बांटने में ही नहीं लगा हुआ है, बल्कि साथ ही साथ वो दुनियाभर में तैयार कोरोना वैक्सीन को पेटेंट से मुक्त कराने की मुहिम चला रहा है। इससे फायदा ये होगा कि छोटे और आर्थिक तौर पर कमजोर देश भी कम कीमत पर टीका खरीद सकेंगे। देश की इस कोशिश में 57 देश साथ भी आ चुके, हालांकि इनमें अमेरिका, यूरोप या चीन शामिल नहीं हैं।
कोरोना संक्रमण को फैले सालभर से ज्यादा हो चुका। इस दौरान दुनिया के सभी देशों की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से चरमरा गई है। अब वैज्ञानिक से लेकर शीर्ष पदों पर बैठे सभी लोग मान रहे हैं कि दुनिया को वापस पटरी पर लाने के लिए टीकाकरण जरूरी है। वैक्सीन तैयार भी हो चुकी हैं लेकिन देश उसे खरीद नहीं पा रहे। कारण ये है कि आनन-फानन बनी वैक्सीन की कीमत पहले से ही ज्यादा है और साथ में पेटेंट के कारण उसके दाम और बढ़े हुए हैं। यही देखते हुए भारत सरकार ने हाल ही में वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन से कोरोना की वैक्सीन को बौद्धिक संपदा की श्रेणी से बाहर निकालने की अपील की। अगर पेटेंट हटा लिया जाए तो कीमत काफी कम हो सकेगी। यह वो कानूनी अधिकार है, जो किसी संस्था या फिर किसी व्यक्ति या टीम को किसी प्रोडक्ट, डिजाइन, खोज या किसी खास सर्विस पर एकाधिकार प्रदान करता है। एक बार किसी नई चीज पर कोई पेटेंट हासिल कर ले तो उसके बाद कोई दूसरा व्यक्ति, देश या संस्था बिना इजाजत उस चीज का उपयोग नहीं कर सकती। अगर वो ऐसा करती है तो इसे बौद्धिक संपदा की चोरी माना जाता है और कानूनी कार्रवाई होती है। कुल मिलाकर पेटेंट जिसके नाम पर है, उसकी खोज या उत्पाद के इस्तेमाल पर उसे ही पूरा फायदा मिल सके, इसके लिए ये नियम बना। पहला पेटेंट तो प्रोडक्ट पर लिया जाता है। इससे होता ये है कि कोई भी कंपनी एक किस्म का उत्पाद तो बना सकती है लेकिन वो बाजार में पहले से मौजूद उत्पाद के एकदम समान नहीं होता। मिसाल के तौर पर चिप्स को ही लें तो मार्केट में दर्जनों किस्म के चिप्स मौजूद हैं लेकिन सबमें कंपनी के मुताबिक कोई न कोई फर्क होता है। ये फर्क पेटेंट के कारण होता है और एक कंपनी दूसरी कंपनी का प्रोडक्ट चुरा नहीं पाती। वहीं दूसरा पेटेंट प्रोसेस यानी प्रक्रिया से जुड़ा होता है। ये किसी नई तकनीक पर लिया जाता है। इससे होता ये है कि कोई संस्था उत्पाद तैयार करने की वो खास तकनीक चुरा नहीं पाती है। आजकल लगभग सभी उत्पादों पर पेटेंट लिया जाता है। कोरोना वैक्सीन के साथ भी यही हो रहा है।
भारत में कोरोना वायरस से अब तक एक करोड़ पांच लाख से भी अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं, जबकि एक लाख 52 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। हालांकि देश में इस बीमारी से ठीक होने वालों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। इस बीच महामारी को पूरी तरह खत्म करने के लिए यहां दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान भी शुरू हो गया है। केंद्र सरकार की योजना के मुताबिक, पहले डॉक्टरों, नर्सों और सफाईकर्मियों को कोरोना की वैक्सीन दी गई, जिन्होंने अगली पंक्ति में रहकर इस महामारी के खिलाफ मोर्चा संभाला।केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, भारत में कोरोना टीकाकरण अभियान के तहत पहले दिन एक लाख 91 हजार से अधिक लोगों को टीका लगाया गया है। इस अभियान के पहले दिन 3,351 सेशन हुए, जिसमें लोगों को वैक्सीन की पहली खुराक दी गई। चूंकि ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका की कोविड-19 वैक्सीन कोविशील्ड और भारत बायोटेक की वैक्सीन कोवैक्सीन को मंजूरी दी थी, ऐसे में स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक टीकाकरण में इन दोनों ही वैक्सीन का इस्तेमाल किया गया। किसी टीकाकरण केंद्र पर लोगों को कोविशील्ड का टीका लगाया गया तो किसी केंद्र पर कोवैक्सीन का। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, टीका लगने के बाद किसी भी व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत नहीं पड़ी। हालांकि, राजधानी दिल्ली में वैक्सीन लगने के बाद कुछ लोगों में एलर्जी के लक्षण जरूर दर्ज किए गए। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली में 52 लोगों को एलर्जी की शिकायत हुई। एम्स के एक अधिकारी के मुताबिक, इनमें से एक के अंदर गंभीर लक्षण दिखे।
टीकाकरण से जुड़े कुछ अधिकारियों ने बताया कि टीकाकरण अभियान के पहले दिन कुछ तकनीकी समस्याएं भी सामने आईं, लेकिन उन्हें ठीक कर लिया गया। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, पहले दिन जिन राज्यों में सबसे ज्यादा लोगों को कोरोना का टीका लगाया गया, उनमें उत्तर प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र, ओडिशा, कर्नाटक, गुजरात, बिहार और आंध्र प्रदेश शामिल हैं। (हिफी)