महान दुर्गा भाभी का स्वतंत्रता के संग्राम में योगदान
जौनपुर उत्तर प्रदेश में जौनपुर के पवांरा के सरावां गांव में स्थित शहीद लाल बहादुर गुप्त स्मारक पर बुधवार को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दुर्गा भाभी का 113वां जन्मदिन मनाया ।
शहीद स्मारक पर कार्यकर्ताओं ने उनके चित्र पर माल्यापर्ण कर श्रद्धासुमन अर्पित किये और उनके कृतित्व पर प्रकाश डाला ।
लक्ष्मीबाई ब्रिगेड की अध्यक्ष मंजीत कौर ने कहा कि प्रसिद्ध क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा की पत्नी दुर्गा देवी, जो क्रांतिकारियों के बीच दुर्गा भाभी के नाम से प्रसिद्द थीं, का आज जन्मदिवस है। सात अक्टूबर 1907 को इलाहाबाद के एक न्यायाधीश के यहाँ जन्मी दुर्गा का विवाह ग्यारह वर्ष की आयु में नेशनल कालेज लाहौर के विद्यार्थी पन्द्रह वर्षीय भगवतीचरण वोहरा से हो गया जो पूर्णरूपेण क्रान्तिभाव से भरे हुए थे । दुर्गा देवी भी आस-पास के क्रांतिकारी वातावरण के कारण उसी में रम गईं थी। सुशीला दीदी को वे अपनी ननद मानती थीं।
उन्होंने कहा कि नौजवान भारत सभा की सक्रिय सदस्य दुर्गा भाभी उस समय चर्चा में आयीं, जब नौजवान सभा ने 16 नवम्बर 1926 को अमर शहीद करतार सिंह सराबा की शहादत का ग्यारहवीं वर्षगाँठ मनाने का निश्चय किया, जिन्हें मात्र 19 वर्ष की आयु में फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया गया था क्योंकि उन्होंने 1857 की क्रान्ति की तर्ज पर अंग्रेजी सेना के भारतीय सैनिकों में विद्रोह की भावना उत्पन्न करके देश को आज़ाद कराने की योजना बनायी थी और इस लिये अथक कार्य किये थे। भगतसिंह और दुर्गा भाभी के लिए सराभा सर्वकालीन नायक थे और देश के लिए सब कुछ न्योछावर करने की प्रेरणा इन्हें सराभा से ही मिलती थी।
सुश्री कौर ने कहा कि शहीदी दिवस वाले दिन नौजवान सभा के कार्यक्रम में दो युवतियों द्वारा अपने खून से बनाये गए सराभा के आदमकद चित्र का अनावरण किया गया और ये दोनों युवतियां थीं-दुर्गा भाभी और सुशीला दीदी। जब भगत सिंह ने चंडी को समर्पित अपने जोशीले व्याख्यान को समाप्त किया और सशस्त्र संघर्ष के जरिये अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने का संकल्प किया, दुर्गा भाभी ने उठ कर उन्हें तिलक लगाया, आशीर्वाद दिया और उनके उद्देश्य में सफलता की कामना की। यहाँ से भगतसिंह और उनके बीच जो प्रगाढ़ता उत्पन्न हुयी, उसे भगतसिंह की मृत्यु भी नहीं तोड़ पायी और वो हमेशा उन्हें याद करती रहीं। भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव की त्रिमूर्ति समेत सभी क्रांतिकारी उन्हें भाभी मानते थे।
उन्होंने कहा कि साण्डर्स वध के पश्चात् भगत सिंह और राजगुरु को पुलिस से बचा कर लखनऊ लाने में दुर्गा भाभी का योगदान और साहस कभी भुलाया नहीं जा सकता , वो 17 दिसंबर 1928 का दिन था जब साण्डर्स वध के पश्चात् सुखदेव दुर्गा भाभी के पास आये। सुखदेव ने दुर्गा भाभी से 500 सौ रूपये की आर्थिक मदद ली तथा उनसे प्रश्न किया-आपको पार्टी के काम से एक आदमी के साथ जाना है, क्या आप जायेंगी ? प्रत्युत्तर में हाँ मिला। सुखदेव ने कहा-आपके साथ छोटा बच्चा शची होगा, गोली भी चल सकती है। दुर्गा स्वरूप रूप धर दुर्गा भाभी ने कहा-सुखदेव, मेरी परीक्षा मत लो। मैं केवल क्रांतिकारी की पत्नी ही नहीं हूँ, मैं खुद भी क्रान्तिकारी हूँ। अब मेरे या मेरे बच्चे के प्राण क्रान्तिपथ पर जायें तो कोई परवाह नहीं, मैं तैयार हूँ ।
सुश्री कौर ने कहा कि 14 सितम्बर 1932 को पुलिस ने बुखार में तपती दुर्गा भाभी को कैद कर लिया। 15 दिन के रिमाण्ड के पश्चात सबूतों के अभाव में दुर्गा भाभी को पुलिस को रिहा करना पड़ा। 1919 रेग्यूलेशन ऐक्ट के तहत तत्काल उनको नजर कैद कर लिया गया और लाहौर और दिल्ली प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई। तीन वर्ष बाद पाबंदी हटने पर वो प्यारेलाल गर्ल्स स्कूल गाजियाबाद में शिक्षिक के रूप में कार्य किया। योग्य शिक्षा देने की चाह में दुर्गा भाभी ने माण्टेसरी का प्रशिक्षण लिया और 1940 में लखनउ में पहला माण्टेसरी स्कूल खोला।
सेवानिवृत्त के पश्चात् वे गाजियाबाद में अपने बेटे शचीन्द्र के साथ रहने लगीं पर ये देश उन्हें भुला बैठा , बरसों बाद लोगों ने उनका नाम तब सुना जब दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना ने गाज़ियाबाद में उनके घर पर जाकर दिल्ली सरकार की ओर से उनका सम्मान किया और। 14 अक्टूबर 1999 को दुर्गा भाभी इस नश्वर संसार को त्याग कर हम सबसे दूर चली गयी। राष्ट्र के लिए समर्पित दुर्गा भाभी का सम्पूर्ण जीवन श्रद्धा-आदर्श-समर्पण के साथ-साथ क्रान्तिकारियों के उच्च आदर्शों और मानवता के लिए समर्पण को परिलक्षित करता है। उनके जन्मदिवस पर शत शत नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि ।
इस अवसर पर डॉ0 धरम सिंह , मैनेजर पांडेय , अनिरुद्ध सिंह , विनोद , दिशा व मंजीत कौर समेत अनेक लोग मौजूद थे।