दोस्तो, इस ईद को याद रखना

दोस्तो, इस ईद को याद रखना

लखनऊ। मुझे होली और दीवाली की तरह ईद का भी इंतजार रहता था। मेरे पडोस में एस ए लोदी और उनकी खूबसूरत बेगम रुखसाना रहा करती थीं। उनकी एक छोटी सी बेटी थी, ठीक मेरी बेटी के बराबर। उसे मैं ही स्कूल ले जाता था, अपनी बेटी के साथ क्योंकि मेरे पास स्कूटर था। लोदी साहेब मेरे अजीज हो गये थे। मेरे साथ ही सुरेन्द्र यादव के यहां दूध लेने जाते। वहां कितने ही लोग आते लेकिन कोई नहीं कह सकता था कि वे मुसलमान हैं। बनारस के रहने वाले थे और समाज कल्याण विभाग में कई साल नौकरी करने के बाद लखनऊ आए और हमारे पड़ोसी बने।

बनारस में गंगाघाट और मथुरा में कृश्ण जन्माश्टमी के किस्से सुनाने लगते तो उस मुसलमान में भी बाबा विश्वनाथ और बांके बिहारी झांकने लगते थे। रमजान के महीने में एक दिन मेरे घर पर रोजाअफ्तारी जरूर होती और ईद के दिन बनारसी सिंवइयों के साथ छोला, दही बड़े और प्याज की पकौडियां उनके घर पर खाते। उनकी बेटी को ईदी देते तो रुखसाना बेगम कहतीं, और मेरी ईदी कहां है जी। इतना सुनते ही सभी खिलखिलाकर हंसने लगते...। पत्रकारपुरम छोड़कर उन्हे एक फ्लैट में जाना पड़ा, तब भी मिलने जुलने का सिलसिला कायम रहा। कोरोना की महामारी ने पिछली ईद पर भी बाधा डाली थी लेकिन इस बार तो ईद पर भी सीना गम से भरा हुआ है। पत्रकारपुरम में कोरोना ने हमारे मित्र मधुसूदन त्रिपाठी को छीन लिया। लोदी साहेब के भी वे बहुत अजीज थे। महामारी ऐसी फैली कि जिसे देखो, वही कोरोना पाजिटिव। बहुत लोग तो छिपाए बैठे हैं। परिवार में कुछ लोगों को बुखार आ रहा है, गले में खरास भी है लेकिन जांच कराने से डर रहे हैं। कहते हैं अस्पतालों में कोई देखभाल नहीं होती। सरकार ने आक्सीजन से लेकर वेन्टीलेटर तक की कोविड अस्पतालों में व्यवस्था कर रखी है लेकिन लोगों का भय दूर नहीं हो रहा है कोरोना गाइडलाइन का पालन तो लोग अब मजबूरी में कर रहे हैं क्योंकि पास पड़ोस में लापरवाही के नतीजे देख चुके हैं। ईद भी कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए मनायी जाएगी। सरकार ने भी यही अनुरोध किया है और मुस्लिम धर्म गुरुओं ने भी यही इल्तिजा की है। लोदी साहेब को चांद रात की बधाई देते हुए एडवांस ईद मुबारक बोला तो पता नहीं मन में कैसी उदासी थी। लोदी साहेब ने भी सिंवइयों की बात नहीं की बल्कि मधुसूदन जी का जिकर किया। इस तरह कितनों के अजीज इस बार ईद से पहले क्रूर कोरोना ने छीन लिये हैं। यहस ईद कैसे कोई भूल पाएगा। कम से कम मैं तो नहीं भूल सकता।

ईद उल-फित्र या ईद उल-फितर को मुस्लिम भाई रमजान उल-मुबारक के एक महीने के बाद एक मजहबी ख़ुशी का रूप में मनाते हैं। ये यक्म शवाल अल-मुकर्रम्म को मनाया जाता है। ईद उल-फित्र इस्लामी कैलेण्डर के दसवें महीने शव्वाल के पहले दिन मनाया जाता है। इसलामी कैलंडर के सभी महीनों की तरह यह भी नए चाँद के दिखने पर शुरू होता है।मुसलमानों के विश्वास के अनुसार इस महीने की 27 वीं रात शब-ए-कद्र को कुरान का नुजूल (अवतरण) हुआ। इसी लिये, इस महीने में कघ्ुरान को अधिक पढ़ना पुण्यकार्य माना जाता है। तरावीह की नमाज में महीना भर कुरान का पठन किया जाता है। जिस से कुरान पढ़ना न आने वालों को कुरान सुनने का अवसर अवश्य मिलता है। भारत में गंगा जमनी संस्कृति के रूप में हिन्दू मुसलमान और अन्य पंथों के अनुयायी मिलकर ईद मनाते और एक दूसरे के गले मिलते हैं। मुसलमानों का त्योहार ईद मूल रूप से भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्योहार है। इस त्योहार को सभी आपस में मिल के मनाते है और खुदा से सुख-शांति और बरक्कत के लिए दुआएं मांगते हैं। पूरे विश्व में ईद की खुशी पूरे हर्षोल्लास से मनाई जाती है। इस बार तो पूरे रमजान भर खुदा से यही दुआ मांगी गयी कि कोरोना से मुक्ति मिले। यह त्यौहार रमजान का चांद डूबने और ईद का चांद नजर आने पर उसके अगले दिन चांद की पहली तारीख को मनाया जाता है। इस्लाम में दो ईदों में से यह एक है (दूसरी ईद उल जुहा या बकरीद कहलाती है)। पहली ईद-उल-फितर पैगम्बर मुहम्मद ने सन् 624 ईसवी में जंग-ए-बदर के बाद मनायी थी। ईद-उल-फित्र के अवसर पर पूरे महीने अल्लाह के मोमिन बंदे अल्लाह की इबादत करते हैं, रोजा रखते हैं और कुरान करीम की तिलावत करके अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं जिसका अज्र या मजदूरी मिलने का दिन ही ईद का दिन कहलाता है जिसे उत्सव के रूप में पूरी दुनिया के मुसलमान बडे हर्ष उल्लास से मनाते हैं।

ईद-उल-फितर का सबसे अहम मक्सद एक और है कि इसमें गरीबों को फितरा देना वाजिब है जिससे वो लोग जो गरीब हैं, मजबूर हैं, वे भी अपनी ईद मना सकें, नये कपडे़ पहन सकें और समाज में एक दूसरे के साथ खुशियां बांट सकें। फित्रा वाजिब है उनके ऊपर जो 52.50 तोला चाँदी या 7.50 तोला सोने का मालिक हो अपने और अपनी नाबालिग औलाद का सद्कये फित्र अदा करे जो कि ईद उल फितर की नमाज से पहले करना होता है। ईद भाई चारे व आपसी मेल का त्योहार है। ईद के दिन लोग एक दूसरे के दिल में प्यार बढाने और नफरत को मिटाने के लिए एक दूसरे से गले मिलते हैं। उपवास की समाप्ति की खुशी के अलावा ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि अल्लाह ने उन्हें महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी। ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफों का आदान-प्रदान होता है। सिवैया इस त्योहार का सबसे महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ है जिसे सभी बड़े चाव से खाते हैं।

ईद के दिन मस्जिदों में सुबह की प्रार्थना से पहले हर मुसलमान का फर्ज होता है कि वो दान या भिक्षा दे। इस दान को जकात उल-फितर कहते हैं। यह दान दो किलोग्राम कोई भी प्रतिदिन खाने की चीज का हो सकता है, मिसाल के तौर पर आटा या फिर उन दो किलोग्रामों का मूल्य भी। पहले यह जकात गरीबों में बाँटा जाता है।

इस कोरोना ने सब कुछ फीका कर दिया। जकात लेने वाले भी हिचकते हैं और सिंवइयां खाने और खिलाने वाले भी डर रहे हैं। गले मिलने की जगह दूर-दूर से ईद मुबारक बोला जा रहा है। इसक साथ ही सोशल मीडिया पर वैमनस्यता का कोरोना भी इस बार ज्यादा फैला है। पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में किसी ने मुसलमानों को एकजुट होकर वोट डालने को कहा तो दूसरे ने अप्रत्यक्ष रूप से ही सही, हिन्दुओं को एकजुट होने का संकेत दिया। ईद इस दूरी को मिटा सकती है। भावनाओं की एकता की सिंवइयों से मुंह मीठा कर कहें ईद मुबारक। शायद दिल का कुछ भार हल्का हो जाए। (हिफी)

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