Covid19 को लेकर महत्वपूर्ण संकेत- जानिए
- कोरोना से मृत व्यक्ति के शरीर पर नहीं मिले बैक्टीरिया।
- भोपाल के एम्स में चिकित्सक कर रहे हैं खोज।
- अंतिम संस्कार के लिए परिजनों को मिल सकता है।
- भोपाल के एम्स में कोरोना संक्रमितों पर माइक्रोबैक्टीरियम-डब्ल्यू दवा के ट्रायल के नतीजे भी उत्साहजनक।
नई दिल्ली। कोरोना महामारी ने एक इतिहास बना दिया है जिसे कई तरह से याद किया जाएगा। इसको लेकर कितनी ही दुखद कहानियां बन गयी हैं। अभी कुछ कहा नहीं जा सकता कि इसकी वैक्सीन कब तक बनेगी और कितनी कारगर रहेगी इसका कारण बताया जाता है कि कोरोना वायरस अपना रूप बदल रहा है। सबसे बड़ी समस्या इसके संक्रमण को लेकर है जो अंतिम दर्शन तक करने में भय की बाधा बना हुआ है। इसी संदर्भ में एक महत्वपूर्ण संकेत यह मिल रहा है कि कोरोना से मृत व्यक्ति के शरीर पर संभवतः वायरस नहीं रहते हैं। यह बात अभी पूरी तरह से पुष्ट नहीं हुई है लेकिन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के एम्स में चिकित्सक जो अनुसंध्णान कर रहे हैं, उससे प्रारंभिक संकेत यही मिले हैं। भोपाल एम्स के निदेशक प्रोफेसर सरमन सिंह ने एक लोकप्रिय समाचार चैनल को यह जानकारी दी है कि प्रारंभिक निष्कर्षों में शरीर की सतह पर वायरस की मौजूदगी या शरीर की सतह पर इसके गुणन (प्रभाव) की मौजूदगी नहीं मिली। एम्स निदेशक सरमन सिंह कहते हैं कि यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुरूप भी है। बहरहाल, इस अंधी मुसीबत में यह रोशनी की किरण है कि कम से कम स्वजन और शुभचिंतक अंतिम समय में अपने प्रियजन से मिल सकेंगे। अभी तो हालात ये हैं कि सगे-सम्बन्धी और शुभचिंतक संक्रमण के डर से शव के पास तक नहीं जाते, अंतिम विदाई नहीं दे पाते। उधर, स्वास्थ्य विभाग के दिशा निर्देशों में भी शव को रिसाव प्रूफ प्लास्टिक बाॅडी बैग में हाईपोक्लोराइट घोल लगाकर रखने का ही निर्देश है।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में एम्स में वैज्ञानिकों की एक टीम यह जानने के लिए एक शोध कर रही है कि क्या कोरोनावायरस संक्रमण के कारण मरने वाले लोगों के शरीर से भी लोग संक्रमित हो सकते हैं. पिछले कुछ दिनों में कई ऐसी खबर आई हैं, जिसमें संक्रमण के डर से मरीजों के परिजनों ने भी अंतिम संस्कार में हिस्सा नहीं लिया. संक्रमण के डर से मृतकों को अंतिम विदाई भी ठीक से नहीं दी गई। जुलाई में कर्नाटक के बेल्लारी से तस्वीरें आईं कि कैसे कोरोना संक्रमित आठ लोगों के शव को एक गड्ढे में फेंक दिया गया। हालांकि, भोपाल एम्स में जो अनुसंधान हो रहा है वो शायद कोरोना से होने वाली मौत और शवों के प्रति इस दृष्टिकोण को बदल सकते हैं कि मृतकों से संक्रमण फैल सकता है. एम्स-भोपाल के निदेशक प्रोफेसर सरमन सिंह ने इस विषय पर एक न्यूज चैनल से बातचीत की।
एम्स-भोपाल के निदेशक प्रोफेसर सरमन सिंह ने बताया, प्रारंभिक निष्कर्षों में शरीर की सतह पर वायरस की मौजूदगी या शरीर की सतह पर इसके गुणन की मौजूदगी नहीं है, जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुरूप ही है। उन्होंने कहा कि "हिस्टोपैथोलॉजी और अन्य विश्लेषण के प्राथमिक निष्कर्ष बताते हैं कि संवहनी प्रणाली ( वैस्कुलर सिस्टम) वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित होती है। इसके परिणामस्वरूप रक्त वाहिकाओं में जमावट और रिसाव होता है, जिसके परिणामस्वरूप घनास्त्रता (थ्रोम्बोसिस) शुरू हो जाती है, बहुत सारे मरीजों की थ्रोम्बोसिस से मौत हो रही है. मरीज ठीक होकर घर जा रहा है तो थ्रोम्बोसिस से उसकी मौत हो जा रही है। उन्होंने कहा कि मार्च की शुरुआत में केंद्र ने कोविड-19 पीड़ितों के शवों को संभालने के लिए दिशानिर्देश जारी किए। उन दिशानिर्देशों में से एक है जो कहता है शव को रिसाव-प्रूफ प्लास्टिक बॉडी बैग में रखें, जिसमें हाइपोक्लोराइट घोल का इस्तेमाल होता है।
प्रोफेसर सिंह ने एक और बात बताई, जो परेशानी का सबब बन सकती है। दरअसल कोरोना वायरस अपना रूप बदल रहा है, जो वैक्सीन बनाने वाले वैज्ञानिकों के लिये चुनौती बन सकता है। प्रोफेसर सरमन सिंह ने कहा कि कोरोना का वायरस तेजी से अपना रूप बदल रहा है जिसे वैज्ञानिक भाषा में म्यूटेशन कहते हैं। ये एक देश से दूसरे देश, या देश में भी ये रूप बदल रहा है. ये बदलाव या रूपांतरण जेनेटिक तरीके से होता है।
उन्होंने बताया कि करीब 1325 सैंपल, जो उन्होंने देखे उनमें 88 से ज्यादा में वायरस बदला हुआ मिला। ऐसे में एक वैक्सीन जो सारे रूपों पर प्रभाव डाले, उसकी जरूरत है। इसलिये इसमें वक्त लग सकता है। एक वैक्सीन, जो आज प्रभाव में है, वो हो सकता है 6 महीने, 3 महीने बाद प्रभावी न रहे जो आज असरदार है।
भोपाल के एम्स में कोरोना संक्रमितों पर माइक्रोबैक्टीरियम-डब्ल्यू दवा के ट्रायल के नतीजे भी उत्साहजनक रहे हैं। कुष्ठ रोगियों को दी जाने वाली ये दवा गंभीर मरीजों को भी दी गई, जो काफी असरदार रही. अब संस्थान ये जानने की कोशिश कर रहा है कि क्या इसे स्वस्थ लोगों को दिया जा सकता है, जिससे उनमें असर हो सके। भारत में कोरोनोवायरस संक्रमण के कारण 92,000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
भोपाल के एम्स में कोरोना संक्रमितों पर माइक्रोबैक्टीरियम-डब्ल्यू दवा के ट्रायल के नतीजे भी उत्साहजनक रहे हैं, कुष्ठ रोगियों को दी जाने वाली ये दवा गंभीर मरीजों को भी दी गई, जो काफी असरदार रही। अब संस्थान ये जानने की कोशिश कर रहा है कि क्या इसे स्वस्थ लोगों को दिया जा सकता है, जिससे उनमें असर हो सके। भारत में कोरोनोवायरस संक्रमण के कारण इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 92,000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। (हिफी)