इजहार-ए-इश्क में लुटे-पिटे बांकेलाल
नई दिल्ली। बसंत के मौसम में बांकेलाल के चेहरे की रौनक बौराई अमराई और गदराई सरसों की तरह दिख रहीं थी। आमतौर पर उनके चेहरे की रौनक बुझी सी दिखती थी। 'वेलेंटाइन दिवस' पर मसाज पार्लर से निकलते देख हमने उन्हें छेड़ ही दिया। क्या हाल हैं जनाब! आजकल बदले-बदले से दिख रहे हैं। क्या इरादा है 'वेलेंटाइन' की बिजली किस पर गिरेगी ?...अरे ! आप तो पचपन में भी बचपन से लग रहे हैं।
बांकेलाल ने कहा हूँ, आप भी पूरे बुडबक हैं जी। अरे क्या गुनाह कर डाला हमने खबरीलालजी। वह बोल पड़े, अरे! बसंत का मौसम है, आपको कुछ दीखता नहीं। आँख के अंधे हैं क्या सावन में भी हरियाली नहीं दिखती। मुझ पर तंज कसते हुए बोले, 'अन्हरा बांटे सिन्नी देख-देख'। दुनिया की खबर आप लेते हैं और बदले मौसम का हाल मुझसे पूछते हैं।
बांकेलाल ने कहा देखिए, वैसे भी हमारे यहाँ चार ऋतुएं होती हैं। गर्मी, जाड़ा और बरसात, लेकिन उसमें भी कई उप ऋतुएं होती हैं। आपको महाकवि जायसी के बारे में पता ही होगा। उन्होंने 'चैमासा' को 'बारहमासा' बना दिया और प्रेम के महाकाव्य 'पद्ममावत' की रचना कर डाली। आपको शायद पता नहीं है खबरीलालजी, अपने मुलुक में अपनी जरुरत के अनुसार फिजाएं बनायी और बिगाड़ी जाती है यानी मन मुताबित 'बसंत' तैयार किया जाता है।
अब देखिए रोज-डे, चाकलेट-डे, टैडी बियर-डे, प्रॉमिस-डे, हग-डे, किस-डे और वेलेंटाइन-डे जैसे अनगिनत 'डे' हैं जनाब। वैसे भी अपनी इच्छा के अनुसार मौसम बनाए और बिगाड़े जाते हैं। देश में लोकतंत्र है। यहाँ सबको अपने-अपने इजहार की आजादी है। वैसे भी आजकल लोगों को आजादी से कुछ अधिक ही इश्क हो गया है। जब भी जी करता है आजादी... आजादी करने लगते हैं।
खबरीलालजी, हमारे देश में अनेकानेक दिन और मौसम होते हैं। जैसे प्रदर्शन-डे, आंदोलन-डे, चुनावी-डे, एग्जाम-डे, बड्ड-डे, एनवरसरी-डे, अनशन-डे, मैरिज-डे आदि। अब हम आपको जीवी और जीविता का उदाहरण समझाते हैं। हमारे आसपास बुद्धिजीवी के साथ-साथ काफी संख्या में 'कांदा' और 'बटाटाजीवी' भी हैं। हमारी युवा पीढ़ी 'डाटाजीवी' हो गईं है। हमारे आसपास तो काफी 'परजीवी' भी विद्यमान हैं। हालांकि हमारे बांकेलाल जी 'भाषणजीवी' प्रजाति से आते हैं।
'वेलेंटाइन-डे' पर अपनी 'भाषणजीविता' को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा देखिए, खबरीलालजी ! वैलेंटाइन-डे यानी 'इजहार-ए-इश्क' की तैयारियां जोरों पर हैं। 'इश्कजीवी' अभी से खुद को 'प्री-प्लांड' में लगा रखा है। मसलन मासूका से किस होटल, रिशॉर्ट, बीच और पार्क में मिलाना है उसकी तैयारी में लगे हैं। अपनी 'लैला' को किस अंदाज में गुलाब देना है और 'इश्क' का इजहार किस अनूठे किस्म से करना है जैसे विषयों सब पर 'रिहर्सल' शुरू हो गया है। कई 'इश्कजीवियों' ने तो चुनावों की तरह बाकायदा 'लव प्रोफेशनलों' को 'हायर' कर लिया है।
उधर शहर के 'सांस्कृतिक रक्षादल' के लोग भी छुट्टे सांडों की तरह अखाड़ रहे हैं। उन्होंने इश्कजीवियों के लिए 'हज्जाम' के साथ 'गधे' भी ले रखे हैं। साल के 365 दिन बांकेलाल को कोई कभी भी 'इजहार-ए-इश्क' से नहीं रोकता। वे खुलेमन से 'इश्कजीवी' परम्परा को आगे बढ़ाते हुए शहर की चलती मेट्रो, पार्क, बीच और सड़क पर खुलेमन से 'संत वैलेंटाइन' की आराधना में समर्पित रहते हैं। लेकिन तब कभी उन्हें किसी 'संस्कृति रक्षकजीवी' ने नहीं रोका। लेकिन सत्ता विरोधियों की तरह आजकल 'इश्क विरोधियों' की भी फौज तैयार हो गईं है। 'संत वैलेंटाइन' का मिशन आगे बढ़ता नहीं देखना चाहती। वह इश्कजीवियों को देखते ही पिल पड़ती है। वे सरकार की 'एफडीआई' नीति को भूल 'स्वदेशी' बन जाते हैं।
अब क्या बताएं 'वैलेंटाइन-डे' पर बेचारे बांकेलाल अपने कालेज की एक सहपाठी को वैलेंटाइन का गुलाब देने पार्क में पहुंच गए। कालेज के दिनों की मासूका को जैसे ही गुलाब भेंट कर बीते दिनों की याद करना चाहा तभी 'सिर मुड़ाते ही ओले पड़' गए। बेचारे बांकेलाल 'संस्कार' और 'संस्कृतिवादियों' के राडार पर आ गए। फिर क्या था धुनाई के बाद सिरमुड़ाई हुई और कालीखपोत 'गधे' पर बिठा जुलूसजीवी बना दिया गया। इश्कजीविता वीडियो भी 'सोशलमीडिया' पर वायरल होने लगा। कुछ घंटों में यह वीडियो बांकेलाल की धर्मपरायण पत्नी यानी भाभी जी के मोबाइल तक पहुंच
गया।
अब घर में दाखिला लेते ही बेचारे बांकेलाल का इश्कियाँ वाला भूत उतर चुका था। भाभी ने वायरल वीडियो दिखा कर सवालों की झड़ी लगा दिया। 'वेलेंटाइन' के विशेष अवसर को देखते हुए बांकेलाल जैसे पतियों से पीड़ित भाभियों के ग्रुप ने 'वेलेंटाइन-डे' पर विशेष 'बेलन बेबिनार' का आयोजन किया था। अब बांकेलाल का 'वेलेंटाइन-डे' 'बेलन-डे' में तब्दील हो चुका था। बेलन हमले का सीधा प्रसारण हो रहा था। इश्क में लुटे-पीटे बेचारे बांकेलाल की पिक्चर बिगड़ चुकी थी। 'इश्कजीविता' के लाभ हेतु उनका अस्पताल में दाखिला हो चुका था। 'इश्क' में लुटे पिटे बांकेलाल ने 'वेलेंटाइन-डे' से ताउम्र तौबा-तौबा करने की कसम खाई थी।
हिफी