भारत में छाया 34 करोड़ नौकरियों पर संकट

भारत में छाया 34 करोड़ नौकरियों पर संकट

लखनऊ। कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप को रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन का प्रभाव इतना बुरा रहा है कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था ही डगमगा गई और आगे भी कहा जा रहा है कि रफ्तार सुस्त रहेगी। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने चेतावनी दी है कि अगर 2020 की दूसरी छमाही में कोरोना की एक और लहर आती है तो करीब 34 करोड़ नौकरियां जाने का खतरा हो सकता है। यह वैश्विक स्तर पर 11.9 फीसदी कामकाजी घंटों का नुकसान होने के बराबर है। आईएलओ की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 के दूसरी तिमाही में वैश्विक कामकाजी घंटों में 14 फीसदी की गिरावट आई है, जो करीब 40 करोड़ नौकरियां खोने के बराबर है। पूरी दुनिया में 2020 की पहली छमाही में कामकाजी घंटों में गिरावट पहले की तुलना में काफी खराब थी। बाकी बचे महीनों में इसकी रिकवरी करना काफी मुश्किल है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा कोरोना संकट में 2020 में दूसरी छमाही में भी स्थिति चुनौतीपूर्ण बनी रहेगी। अगर 2019 की अंतिम तिमाही से तुलना करें तो कार्यस्थलों पर पाबंदियों में ढील देने और निवेश परियोजनाओं व उपभोग में रिकवरी के चलते कामकाजी घटों में 4.9 फीसदी की कमी आई है। यह करीब 14 करोड़ फुल टाइम नौकरियों के बराबर है। आईएलओ के महानिदेशक गाय राइडर ने कहा, नए आंकड़े दर्शाते हैं कि बीते कुछ सप्ताहों में कई क्षेत्रों में स्थिति बहुत खराब रही है। खासतौर से विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देशों में। क्षेत्रीय तौर पर देखें तो दूसरी छमाही में अमेरिका में 18.3 फीसदी, यूरोप व सेंट्रल एशिया में 13.9 फीसदी, एशिया एवं प्रशांत क्षेत्र में 13.5 फीसदी, अरब देशों में 13.2 फीसदी और अफ्रीका में 12.1 फीसदी कामकाजी घंटों का नुकसान हुआ है।

कोविड-19 मामलों में नवीनतम वृद्धि के बीच हफ्तों पहले फिर से खुलने वाले कारोबार को एक बार फिर से बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। देश भर के लाखों अमेरिकी अब घर लौट रहे हैं। द वाशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले में अतिरिक्त सहायता प्रदान करने के लिए कांग्रेस का झुकाव कम होता दिख रहा है। इस बीच, होटल श्रृंखला, निर्माण फर्म और मूवी थिएटर आदि कंपनियों को अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिया गया है। कई गवर्नर ने कुछ मामलों में नए सुरक्षा प्रतिबंध जारी कर दिए है। अमेरिका में हाल के हफ्तों में, तीन राज्यों कैलिफोर्निया, फ्लोरिडा और टेक्सास में नई नीतियों को लागू किया गया है। यहां आंशिक रूप से रेस्तरां या बार सेवा को प्रतिबंधित किया गया है। मार्च और अप्रैल में छह मिलियन से अधिक नौकरियों को खोने से पहले खाद्य पदार्थ सेवा और बार उद्योग ने महामारी से पहले लगभग पांच प्रतिशत कार्य किया है। यह उद्योग आठ मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार देते हैं।

कोरोना वायरस महामारी को रोकने के लिए केंद्र सरकार द्वारा किए गए देशव्यापी लॉकडाउन से देश की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान उठाना पड़ा। सीएमआईई के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल में मासिक बेरोजगारी दर 23.52 प्रतिशत दर्ज की गई जबकि यह मार्च महीने में 8.74 प्रतिशत थी। रिपोर्ट में कहा गया कि शहरी इलाकों में बेरोजगारी दर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक है। लॉकडाउन से दिहाड़ी मजदूरों और छोटे व्यवसायों से जुड़े लोगों को भारी झटका लगा है। इनमें फेरीवाले, सड़क किनारे दुकानें लगाने वाले विक्रेता, निर्माण उद्योग में काम करने वाले श्रमिक और रिक्शा चलाकर पेट भरने वाले लोग शामिल हैं। राज्यवार देखा जाए, तो अप्रैल में सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर पुडुचेरी में 75.8 फीसदी रही। इसके बाद तमिलनाडु में 49.8 फीसदी, झारखंड में 47.1 फीसदी, बिहार में 46.6 फीसदी, हरियाणा में 43.2 फीसदी, कर्नाटक में 29.8 फीसदी, उत्तर प्रदेश में 21.5 फीसदी और महाराष्ट्र में 20.9 फीसदी दर्ज हुई है। सीएमआईई के अध्ययन के मुताबिक अप्रैल में दिहाड़ी मजदूर और छोटे व्यवसायी सबसे ज्यादा बेरोजगार हुए हैं। कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए सरकार ने लॉकडाउन का ऐलान किया। इसके चलते 130 करोड़ की आबादी वाले देश में कई उद्यम भी बंद हो गए हैं।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने इसे देखते हुए चालू वित्त वर्ष 2020-21 में भारत की जीडीपी विकास दर महज 1.9 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। तो वहीं दूसरी तरफ विश्व बैंक का अनुमान है कि 22 साल में पहली बार कोरोना वायरस महामारी के कारण दुनियाभर में गरीबों की संख्या बढ़ने वाली है। 2019 में दुनियाभर में 8.2 प्रतिशत गरीब थे। अनुमान बताते हैं कि 2020 में ये गरीब बढ़कर 8.6 प्रतिशत हो जाएंगे। दूसरे शब्दों में कहें तो दुनियाभर में गरीबों की संख्या 63.2 करोड़ से बढ़कर 66.5 करोड़ हो जाएगी। भारत में गरीबों की संख्या सर्वाधिक 120 लाख बढ़ेगी।

गरीब बढ़ने के चलते विश्व बैंक और खाद्य एवं कृषि संगठन ने चेतावनी दी है कि वायरस का खाद्य सुरक्षा और भुखमरी पर गंभीर असर होगा, खासकर उन विकासशील और अल्पविकसित देशों में जहां खाद्य असुरक्षा पहले से है। विश्व बैंक के अनुसार, महामारी से पहले दुनियाभर में 82 करोड़ लोग अल्प पोषित थे। दुनिया भर में 13.5 करोड़ लोग खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। अगर इन लोगों को मदद नहीं पहुंची तो ये भूख से मर जाएंगे। निम्न आय वाले देशों की आबादी अपनी आमदनी का 60 प्रतिशत हिस्सा भोजन पर खर्च करती है, जबकि उभरती अर्थव्यवस्थाएं अपनी आमदनी का 40 प्रतिशत हिस्सा भोजन की जरूरतों पर व्यय करती हैं। गतिविधियों के ठप होने से आमदनी रुक गई है। इसका नतीजा यह निकलेगा कि ये लोग अपने भोजन पर पर्याप्त खर्च नहीं कर पाएंगे और उनके सामने भुखमरी की स्थिति आ जाएगी। विश्व बैंक के अनुसार आने वाले महीनों में आमदनी न होने पर 4-6 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे पहुंच जाएंगे। अनुमान के मुताबिक, महामारी से पहले 13.5 करोड़ लोग भुखमरी के शिकार थे। महामारी के बाद ऐसे लोगों की संख्या दोगुनी होकर 26.5 करोड़ हो जाएगी।

इस महामारी के बाद इस दुनिया समेत भारत में बेरोजगारी और भुखमरी की हालात पैदा हो रहे हैं या होंगे इससे निपटने के लिए हम सब देशवासियों को अपनी ओर से हर संभव प्रयास करने होंगे। साथ ही साथ सरकार को भी बहुत महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे जो कि सरकार अभी भी बहुत अच्छे से निभा रही है जैसे 3 महीने का फ्री राशन, तीन-तीन महीने के लिए आर्थिक सहायता के अलावा भी और भी कुछ किया जा सकता है जैसे जीएसटी और इनकम टैक्स में छूट, घरेलू उद्योग और निम्न उद्योग लिए सब्सिडी आदि देशवासी भी किसी वस्तु की मुनाफाखोरी के लिए कालाबाजारी ना करें, खाद्य वस्तु जो कि रोजमर्रा की जरूरत में आती हैं उनकी कीमत नियंत्रण में रखें ताकि जरूरतमंदों तक सही मूल्य में पहुंचाई जा सके।

(नाज़नीन -हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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