मेरी कविता– नहीं हैं मुझको उससे प्यार तो क्यों मैं स्वीकार करूं।

नहीं हैं मुझको उससे प्यार तो क्यों मैं स्वीकार करूं।
क्यों उससे झूठे वादे कर, क्यों उसके आंसू बनूं।।
धोखेबाज़ो की लिस्ट में क्यों अपना नाम दूं।
उस एक बेवफा शब्द का टैग क्यों खुद पर लगा लूं।।
नहीं हैं मुझको उससे प्यार तो क्यों मैं उसको स्वीकार करूं!अपने शब्दों में अपनी फिलिंग्स को मैं कुछ पन्नों में बया करूं।
खुद में मग्न रहने वाली लड़की हां मैं भी किसी से प्यार करूं।।
हां हैं कोई वो शख्स जिसके आने का मैं इंतज़ार करूं।
पर नहीं है मुझको कोई और कबूल तो क्यों मैं स्वीकार करूं!!हां मैं जानती हूं, नहीं होता किसी की मोहब्बत का अंत कभी।
ये मोहब्बत कब और किससे हो जाएं यह किसी को पता नहीं।।
पर किसी और को दिल में रखकर किसी और को स्वीकार करू यह मुझे ग्वारा नहीं।
हां आप मेरी चिंता मत करो....
हां मैं अपनी मोहब्बत का इजहार कभी नहीं करूं।।
पर फिर भी किसी और को मैं अपनी जिंदगी में नहीं स्वीकार करूं!
रिपोर्टर/कवियत्री= मेघा गुप्ता
