बहुमूल्य जीवन को आत्महत्या से बचाएं
लखनऊ। परिवार में किसी व्यक्ति की मनोदशा समझनी जरूरी होती है। अगर घर में किसी सदस्य की दिनचर्या बदली हुई लगती है तो उस पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए। डा. मनोज के अनुसार आत्महत्या का विचार रखने वाले व्यक्तियों में आपको इस तरह के बदलाव जरूर दिखेंगे। जैसे बार-बार मरने की इच्छा व्यक्त करना। आत्महत्या करने से पूर्व अपने परिवार, दोस्त व परिचितों से इसके बारे में चर्चा करता है ताकि लोग उसकी सहायता करें। इसे क्राइ फॉर हेल्प कहते हैं।
मानवीय जीवन में आत्महत्या एक असामान्य व्यवहार है, जिसमें प्राणी स्वयं की हत्या करता है। पहले व्यक्ति में बार-बार आत्महत्या के विचार आते हैं, उसके बाद वह आत्महत्या कैसे किया जाए। कब किया जाए। आत्महत्या सफल नहीं हुई तो क्या होगा। समाज क्या सोचेगा। हमारे परिवार का क्या होगा? जैसे अनेक प्रश्नों से जूझता रहता है और फिर आत्महत्या का प्रयास करता है। आत्महत्या के सभी प्रयास सफल नहीं होते हैं। आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि 25 आत्महत्या के प्रयास में से सिर्फ एक व्यक्ति की मौत होती है। कुछ लोग आत्महत्या का प्रदर्शित प्रयास करते हैं ताकि वे लोगों से अपनी बात को मनवा सकें।
दुनिया में 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या निवारण दिवस का आयोजन किया जाता है। इसकी शुरुवात 2003 में हुई थी, जिसका मुख्य उद्देश्य लोगों को आत्महत्या के प्रति जागरूक करना तथा आत्महत्या के निवारण के उपायों से उन्हें अवगत कराना है ताकि असामयिक मौतों से जिंदगियों को बचाया जा सके। इस वर्ष आत्महत्या निवारण दिवस की महत्ता और भी अधिक है क्योंकि दुनिया भर से प्राप्त रुझानों से यह स्पष्ट हो रहा है कि कोरोना महामारी के कारण लोगों में आत्महत्या के विचार एवं प्रयास में वृद्धि देखी जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस वर्ष का नारा दिया है आत्महत्या निवारण हेतु मिलकर प्रयास करना।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया में लगभग 3000 लोग रोज आत्महत्या करते हैं। हर 40 सेकेंड पर एक व्यक्ति की मृत्यु आत्महत्या से होती है।
वर्ष में लगभग 10 लाख लोगों की मृत्यु आत्महत्या के कारण होती है। विश्व में होने वाले कुल आत्महत्या में से 21 फीसदी आत्महत्या भारत में होती है। भारत में प्रति एक लाख में 11 लोग आत्महत्या करते हैं। पांडिचेरी में आत्महत्या की दर सबसे अधिक है जहां पर प्रत्येक एक लाख व्यक्ति में से 432 लोग आत्महत्या करते हैं। लैंसेट पब्लिक पत्रिका के अनुसार विश्व की कुल 18 फीसद महिलाएं भारत में रहती हैं जबकि विश्व में महिलाओं द्वारा किए जाने वाले कुल आत्महत्या में भारतीय महिलाओं की हिस्सेदारी 36 फीसद है। ग्लोबल बर्डेन ऑफ डिजीज 2019 के अनुसार भारत में हर 4 मिनट में एक आत्महत्या होती है। 15 से 24 वर्ष के लोगों के मृत्यु का आत्महत्या दूसरा सबसे बड़ा कारण है। महिलाओं द्वारा आत्महत्या का प्रयास तीन गुना अधिक किया जाता है। पुरुष आत्महत्या के लिए आग्नेयास्त्र जबकि महिलाएं जहर का प्रयोग करती हैं। 50 वर्ष से अधिक उम्र में पुरुष सबसे अधिक आत्महत्या करते हैं। मतलब साफ है कि प्रति लाख में 30 पुरुष जबकि महिलाएं नौ आत्महत्या करती हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की तरफ से आत्महत्या पर हाल में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 2019 में 1, 39, 123 लोगों ने आत्महत्या किया। आंकड़ों के अनुसार हर रोज 381 लोगों ने आत्महत्या किया। इससे यह साफ जाहिर होता है कि 2018 के मुकाबले 3.4 फीसदी लोगों ने अधिक आत्महत्या किया। शहरों में यह दर 13.9 फीसदी रही जो भारत में होने वाली कुल आत्महत्याओं का 10.4 फीसदी है। देश में 53.6 फीसदी लोगों ने फाँसी 25.8 फीसदी ने जहर निगल जबकि 5.2 फीसदी पानी में डूबकर और 3.8 फीसदी लोगों ने अन्य उपाय के जरिए अपना जीवन खत्म किया। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 32.4 फीसदी लोगों ने पारिवारिक कारणों और समस्याओं से आत्महत्या किया।
बीएचयू के एआरटी सेंटर में तैनात मनोचिकित्सक डा. मनोज तिवारी के अनुसार आत्महत्या के प्रमुख कारणों में वर्तमान समय में सबसे अधिक कोरोना महामारी वजह बनती दिखती है। इसकी वजह से लोग तनाव में हैं। दुश्चिंता, भय, अनिश्चितता, आर्थिक समस्याएं, नकारात्मक संवेग जैसी बातें आम हैं, जिसकी वजह से नौकरी छूटने, नशे का अधिक प्रयोग, अकेलापन अपनों से मिल न पाना जैसी अनेक समस्याओं से लोग जूझ रहें हैं। डा. मनोज के दावे के अनुसार इस महामारी के दौरान एवं बाद में आत्महत्या बढ़ने की संभावना है। मनोवैज्ञानिक वोयर और उनके साथियों ने अपने अध्ययन में पाया कि अकेले रहने के कारण लोगों में आत्महत्या के विचार एवं प्रयास में वृद्धि होती है। सुसाइड प्रीवेंशन इंडिया फाउंडेशन (एसपीआईएफ) ने एक सर्वे के आधार पर बताया कि कोरोना महामारी के कारण लोगों में आत्महत्या का विचार कई गुना बढ़ गया है।
परिवार में किसी व्यक्ति की मनोदशा समझनी जरूरी होती है। अगर घर में किसी सदस्य की दिनचर्या बदली हुई लगती है तो उस पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए। डा. मनोज के अनुसार आत्महत्या का विचार रखने वाले व्यक्तियों में आपको इस तरह के बदलाव जरूर दिखेंगे। जैसे बार-बार मरने की इच्छा व्यक्त करना। आत्महत्या करने से पूर्व अपने परिवार, दोस्त व परिचितों से इसके बारे में चर्चा करता है ताकि लोग उसकी सहायता करें। इसे क्राइ फॉर हेल्प कहते हैं। निराशावादी सोच प्रकट करना और कहना कि मैं जी कर क्या करूंगा, मेरे जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है। उच्च स्तर का दोष भाव व्यक्त करना कहना कि मेरे कारण ही इतनी खराब स्थिति हो गई है। असहाय महसूस करना और कहना कि मेरा कौन है, अब मैं कुछ भी कर नहीं पाऊंगा। अचानक से व्यवहार एवं दिनचर्या में परिवर्तन होना। इसके अलावा नशे का बहुत अधिक उपयोग करना। अपने पसंदीदा कार्यों में भी अरुचि दिखाना। परिवार व मित्रों से दूरी बना लेने के साथ स्वयं को समाप्त करने का अवसर तलाशने जैसी बातें अहम हैं।
पारिवारिक सजगता की वजह से हम इस तरह की घटना को टाल भी सकते हैं। इस तरह के विचार रखने वालों से बातचीत करें ताकि वह अपनी भावनाओं को साझा कर सकें। ऐसे व्यक्ति को सांत्वना एवं साम्वेगिक समर्थन दें, जिनमें आत्महत्या का उच्च जोखिम हो। आत्महत्या के साधनों को उससे दूर रखें। उसे बार-बार दोष न दें तथा डांटे फटकारे न। परिवार में मनमुटाव की स्थिति को लंबे समय तक जारी न रखें। परिवार में बहुत अधिक आलोचनात्मक बातें नहीं होनी चाहिए। बातचीत में नकारात्मकता की अधिकता से बचें। परिवार में सकारात्मक वातावरण बनाकर रखें, घर में अध्ययन, पूजा- पाठ व उत्सव को महत्व दें। परिवार के साथ सामूहिक भोजन एवं चर्चा करें। किसी व्यक्ति में हताशा और निराशा का भाव दिखाई पड़े तो उससे बातचीत करके उनका हौसला अफजाई करें। परिवार में किसी सदस्य में आत्महत्या के लक्षण दिखाई पड़ें तो उन्हें मनोचिकित्सा के लिए प्रोत्साहित करें। इस तरह के प्रयास के जरिए हम अनमोल जिंदगी को आत्महत्या से बचा सकते हैं। इसके लिए सामाजिक प्रयास आवश्यक है।
(प्रभुनाथ शुक्ल-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)