कोरोना से डरें नहीं, सावधान तो रहें

कोरोना से डरें नहीं, सावधान तो रहें
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नई दिल्ली। कोरोना वायरस का कहर जारी है लेकिन अब लाॅकडाउन कर घर में बंद रहने से भी काम नहीं चलना है। कोरोना को लेकर कई ऐसी बातें सामने आ रही हैं जो राहत देती हैं। विदेश से खबर आयी कि कोरोना प्रभावित व्यक्ति को समुद्र किनारे टहलाया गया तो उसकी सांस लेने की तकलीफ काफी कम हो गयी। यह एक तरह की प्राकृतिक चिकित्सा (नेचुरोपैथी) है। कई मरीजों पर इसका प्रयोग किया गया तो बेहतर नतीजे मिले और मरीजों को ताजी हवा खिलाने के लिए अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड से बाहर ले जाया गया। वेन्टीलेटर भी हटा दिया गया। इसी तरह अध्ययन से यह भी पता चला है कि कोरोना वायरस फेफड़ों को क्षतिग्रस्त कर देता है लेकिन तीन महीने के अंदर फेफड़े खुद को फिर से स्वस्थ कर लेते हैं। इस बीच अगर किसी तरह मरीज की श्वसन प्रक्रिया को ठीक रखा जा सके तो उसकी जान बचायी जा सकती है। कोरोना को लेकर ये अच्छी खबरें हैं लेकिन इस बीमारी से बचने के लिए जिस प्रकार की सावधानी जरूरी है, उसकी उपेक्षा भी नहीं होनी चाहिए। सामान्य आदमी की बातें छोड़ दें, कई जनप्रतिनिधि लापरवाही कर रहे हैं। झारखण्ड और गुजरात से दो खबरें उदाहरण के लिए काफी हैं। कोरोना वायरस से भारत में इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 42 लाख 4 हजार 613 लोग संक्रमित पाये गये थे। इनमें 32 लाख 50 हजार 429 लोग इलाज के बाद स्वस्थ भी हो गये लेकिन 71642 लोगोें की मौत हो चुकी थी। ऐसे हालात में हमें कोरोना से भयभीत होने की नहीं लेकिन सावधान तो रहने की जरूरत है।

कोरोना वायरस से बीमार हुए कुछ मरीजों के फेफड़ों को नुकसान पहुंचता है। डॉक्टरों ने इस बात को लेकर डर जताया था कि कोरोना के गंभीर मरीजों को क्षतिग्रस्त फेफड़ों के साथ ही लंबे वक्त तक रहना पड़ सकता है लेकिन अब एक नई स्टडी में पता चला है कि कोरोना से गंभीर बीमार मरीज के फेफड़े खुद कुछ वक्त में अपनी मरम्मत कर लेते हैं।

ब्रिटिश टेलिग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, करीब तीन महीने में कोरोना मरीज के फेफड़े खुद की मरम्मत कर सकते हैं। इस स्टडी के बाद उम्मीद पैदा हुई है कि कोरोना के गंभीर मरीजों को कई तरह की तकलीफों के साथ लंबे वक्त तक नहीं जीना होगा।

ट्रायल के दौरान कोरोना से बीमार होने वाले करीब आधे मरीजों में रिकवर होने के 12 हफ्ते बाद फेफड़े क्षतिग्रस्त नहीं मिले। यह इस तरह की पहली स्टडी है जिसमें कोरोना मरीजों के फेफड़े ठीक होने की बात कही गई है। हालांकि, कोरोना मरीजों का इलाज करने वाले कई डॉक्टरों का कहना है कि रिकवर होने के कई हफ्ते बाद भी मरीजों में बीमारी के साइड इफेक्ट देखे जा सकते हैं।

स्टडी के दौरान ऑस्ट्रिया में 86 मरीजों की जांच की गई। ये मरीज 29 अप्रैल से 9 जून के बीच हॉस्पिटल में भर्ती हुए थे। हॉस्पिटल से छुट्टी मिलने के 6 और 12 हफ्ते बाद इन मरीजों की जांच की गई। रिकवरी के 6ठे हफ्ते में 88 फीसदी स्टडी में शामिल लोगों की औसत उम्र 61 साल थी और कुल 65 फीसदी पुरुष थे। कुल मरीजों में करीब आधे पूर्व में स्मोकर रह चुके थे। वहीं, 20 फीसदी मरीज ऐसे थे जिन्हें कोरोना की वजह से आईसीयू में भर्ती होना पड़ा था। मरीजों के फेफड़े में नुकसान के सबूत मिले लेकिन 12वें हफ्ते में ये आंकड़ा घटकर 56 फीसदी हो गया।

देश में कोरोना वायरस को लेकर हर रोज नए रिकॉर्ड बन रहे हैं। बावजूद इसके कई जगहों पर लापरवाही ज्यादा नजर आ रही है। ये लापरवाही आम लोगों के अलावा जनता के प्रतिनिधि भी दिखा रहे हैं। ताजा मामला झारखंड के कोडरमा का है। झुमरी तलैया की साहू धर्मशाला में बीजेपी ने अपनी जिला ईकाई का विस्तार करने के लिए एक बैठक का आयोजन जिला अध्यक्ष नितेश चंद्रवंशी की अध्यक्षता में किया। इसमें करीब 100 कार्यकर्ता शामिल हुए।

बीजेपी की इस बैठक में कोरोना नियमों की जमकर धज्जियां उड़ीं। बैठक में नेता और कार्यकर्ता दोनों ही बढ़ते कोरोना से बेफिक्र नजर आए। ज्यादातर कार्यकर्ताओं के चेहरे पर मास्क तक नहीं था और न ही किसी ने इस कार्यक्रम में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया। जिला अध्यक्ष नितेश चंद्रवंशी ने चेहरे की बजाए पॉकेट में मास्क रखा था। उन्होंने मास्क होते हुए भी इसे पहनना जरूरी नहीं समझा और पॉकेट में रखकर कार्यकर्ताओं को संबोधित करते रहे।

तकरीबन डेढ़ घंटे चले इस कार्यक्रम के दौरान पार्टी की जिला कार्यसमिति सदस्य और मंडल अध्यक्षों के नामों की घोषणा की गई। नामों की घोषणा के बाद भाजपा के पदाधिकारी मास्क न लगाने और सोशल डिस्टेंसिंग नियम का पालन न करने के सवाल पर जिला अध्यक्ष ने अजीबो-गरीब बयान दिया। नितेश चंद्रवंशी ने मीडिया से इस तरह की खबर न दिखाने के लिए सहयोग की अपील की और कहा कि गर्मी की वजह से कार्यकर्ताओं ने मास्क नहीं पहना था लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग के सवाल पर उनके पास किसी तरह का जवाब नहीं था। उल्लंघन करते हुए मंच पर भी फोटो खिंचवाते नजर आए।

इसी तरह भाजपा शासित गुजरात में कोरोना संकट में राजनीति पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। गुजरात बीजेपी अध्यक्ष सीआर पाटिल इस कोरोना काल में न ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की बात को सुन रहे हैं और न ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो गज की दूरी बनाए रखने की बात पर अमल कर रहे हैं।

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल ने गत दिनों सुप्रसिद्ध यात्राधाम अंबाजी मंदिर में दर्शन कर अपना उत्तर गुजरात का तीन दिन का दौरा शुरू किया। पाटिल जब सुप्रसिद्ध यात्राधाम अंबाजी मंदिर पहुंचे तो यहां भी सोमनाथ की तरह पहले से ही सैकड़ों कार्यकर्ता स्वागत के लिए मौजूद थे।

पाटिल के स्वागत के लिए पहुंचे लोग एक-दूसरे से सटे हुए खड़े थे कि मानों इन्हें कोरोना का खौफ है ही नहीं। हर कोई उनके स्वागत के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाता दिखा।

गुजरात में 8 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं, जिसके लिए सीआर पाटिल एड़ी-चोटी का जोर लगाते हुए दिख रहे हैं। इससे पहले वो सौराष्ट्र में भी तीन दिन का दौरा कर के आए थे। इस दौरे के दौरान भी सोशल डिस्टेंसिंग की खूब धज्जियां उड़ी थीं।

सीआर पाटील की इस रैली में शामिल 2 विधायक और एक सांसद समेत बीजेपी के कई कार्यकर्ता कोरोना की चपेट में आ गए थे। ऐसे में एक बार फिर सीआर पाटिल ने उत्तर गुजरात का दौरा शुरू किया और यहां भी सोशल डिस्टेंसिंग की खूब धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। अब सवाल यह भी है कि आम लोगों के लिए कोरोना को लेकर कई दिशा-निर्देश हैं और उनके खिलाफ महामारी फैलाने के मामले भी दर्ज हो रहे हैं लेकिन जब बीजेपी अपनी रैली निकाल रही है तो न तो यहां की पुलिस रोक रही है और न ही प्रशासन कुछ कर रहा है। कोरोना से डरने की बात हम नहीं कर रहे लेकिन सावधानी तो रखनी होगी।

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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