क्या कमला डेमोक्रेटिक उम्मीदवार को विजयश्री दिला पाएंगी?

क्या कमला डेमोक्रेटिक उम्मीदवार को विजयश्री दिला पाएंगी?
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नई दिल्ली। भारत में चुनावों के समय राजनेता तमाम लटके-झटके दिखाते हैं। कोई जनेऊ धारण कर पण्डित बनने का स्वांग रचाता है, कोई कहता है कि मेरी नाक मेरी दादी की तरह है, कोई हनुमान भक्त होने का दावा करता है, कोई प्रांतीय चुनाव में भारत रत्न को मुद्दा बनाता है। ऐसे ही लटके-झटके अमेरिकन राष्ट्रपति चुनाव में देखने को मिल रहे हैं। जब से कमला हैरिस का नामांकन रनिंग मेट के लिए राष्ट्रपति पद के डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडेन ने किया है तभी से राष्ट्रपति के चुनाव प्रचार में नए-नए रंग देखने को मिल रहे हैं। राष्ट्रपति पद के रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प चुनाव प्रचार में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कार्यक्रमों का जमकर उपयोग कर रहे हैं, साथ ही कह रहे हैं कि जीतने के बाद वे भारत का खुलकर साथ देंगे। वे अपने विरोधी उम्मीदवार की वामपंथी छवि को फोकस करते हुए उन्हें भारत विरोधी ठहरा रहे हैं। उनकी रनिंग मेट के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनने के समय जो बाइडेन के विरुद्ध उनके बयानों का उल्लेख करते हुए, उन्हें दुष्टा तक कहने से संकोच नहीं कर रहे हैं। कहते हैं कि हारे को हरिनाम। चहुंओर घिरे जो बाइडेन को याद आईं-कमला हैरिस। उन्हें चुनावी समर में उतारकर बाहुबली डोनाल्ड ट्रम्प को मुश्किल में डाल दिया। ट्रम्प के मोदी कार्ड के जवाब में कमला अपनी मां श्यामला गोपालन व उनके पिता/नाना से अपने लगाव का भावचित्र अमेरिकन मतदाताओं के सम्मुख प्रस्तुत कर रही हैं। परन्तु कमला हैरिस वर्तमान भारत सरकार की नीतियों-कश्मीर व मुसलमान सम्बन्धी, नए नागरिकता कानून की मुखर विरोधी रही हैं। अमेरिकन भारतीयों को रिझाते समय वे इस प्रकरण को ओझल कर रही हैं।

पिछले वर्ष कमला हैरिस स्वयं डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति उम्मीदवार पद की दौड़ में शामिल थीं और इस दौरान दो अवसरों पर उनसे कश्मीर का विशेष दर्जा वापस लेने के फैसले पर सवाल पूछे गए। दोनों अवसरों पर उन्होंने कहा कि कश्मीर के मामले में दखल की जरूरत है। उन्होंने पिछले साल अक्टूबर में भारत को धमकाते हुए कहा था कि हम कश्मीरियों को यह याद दिला दें कि वे दुनिया में अकेले नहीं हैं। हम स्थिति पर लगातार नजर रखे हुए हैं। यदि जरूरत हुई तो हम हस्तक्षेप कर सकते हैं। इस बयान को पाकिस्तान ने हाथों-हाथ लिया था।

इसी प्रकार भारत में जब नया नागरिकता कानून पास हुआ। तब भी अमेरिका के 5 भारतीय मूल के डेमोक्रेटिक सांसदों ने इसका विरोध किया था । ये सांसद थे- राजा कृष्ण मूर्ति, प्रमिला जयपाल, रोहित खन्ना, अमी बेरा और कमला हैरिस। इन्हीं सांसदों में से एक प्रमिला जयपाल ने तो कश्मीर पर एक प्रस्ताव भी प्रस्तुत करते हुए कश्मीर में लगे प्रतिबंध हटाने की मांग की थी। जब भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर अमेरिका गए तो उन्होंने प्रमिला जयपाल से मिलने से इनकार कर दिया और कमला हैरिस प्रमिला जयपाल के समर्थन में भारत पर हमलावर हुईं। उन्होंने भारत के विदेशमंत्री के इस फैसले को गलत बताया। उन्होंने कहा कि, किसी भी विदेशी सरकार के लिए यह कहना गलत है कि कैपिटॉल हिल पर होने वाली बैठकों में कौन भाग लेगा।

विडम्बना यह है कि कमला हैरिस और प्रमिला जयपाल जैसे अमेरिकी सांसद लगातार भारत पर मानव अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाते रहे हैं। परन्तु जब पाकिस्तान के आतंकवादी भारतीयों का कत्लेआम करते है। तब भारतीय मूल के ज्यादातर अमेरिकी सांसद चुप्पी साध लेते हैं। जब पाकिस्तान में हिंदुओं का जबरन धर्म परिवर्तन किया जाता है तब इन्हें काठ मार जाता है । चीन के सैनिक भारत में घुसपैठ की कोशिश करते हैं और चीन को रोकने की कोशिश के दौरान भारत के सैनिक शहीद हो गए तब कमला हैरिस ने सामान्य शिष्टाचार भी नहीं निभाया। जो बाइडेन का अमेरिकन मुस्लिमों के लिए एजेंडा भारत के विरुद्ध युद्ध की घोषणा जैसा है। इसमें पाक सेना द्वारा पाक अधिकृत कश्मीर, बलूचिस्तान के मुसलमानों के नर संहार की अनदेखी की गई। जबकि कश्मीर के आतंकवादियों व रोहिंग्या मुस्लिमों का खुलकर पक्ष लिया गया। इस पर अमेरिकन हिंदुओं की तीखी प्रतिक्रिया से घबराकर अमेरिकन भारतीयों के लिए जो बाइडेन का एजेंडा लाया गया। परन्तु यह नीतिपत्र शब्दों की बाजीगरी लगता है। अमेरिकन हिंदुओं की आशाओं पर तुषारापात करता है। डेमोक्रेटिक उम्मीदवार का मुस्लिम एजेंडा जो भारत विरोधी है, पर बगैर स्पष्टीकरण दिए भारतीय विरासत पर गर्व का कमला दांव सच्चाई से मुंह मोड़ने जैसा है।

स्मरण रहे अमेरिका में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों की संख्या 41 लाख है जिनमें से 18 लाख के पास वोट डालने का अधिकार है. अमेरिका में कुल वोटर्स की संख्या 15 करोड़ हैं. इनमें भारतीय मूल के लोगों की भागीदारी सिर्फ 1.2 प्रतिशत है । परन्तु इन 18 लाख में से 14 लाख भारतीय मूल के वोटर्स अमेरिका के उन 9 राज्यों में रहते हैं जहां पड़ने वाले वोट से ये तकरीबन तय हो जाता है कि अमेरिका का राष्ट्रपति कौन बनेगा. परंपरागत तौर पर भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक डेमोक्रेटिक पार्टी के मतदाता माने जाते हैं. लेकिन पिछले चुनावों में बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोगों ने रिपब्लिकन पार्टी के पक्ष में वोट डाले।

कमल हैरिस के डेमोक्रेटिक उप राष्ट्रपति पद के लिए चयन के बाद लगभग 3.9 मिलियन (39 लाख) अधिकांश अमेरिकन भारतीय मतदाताओँ का मानना हैं कि उनके पास इस बात की समझ ही नहीं है कि वह किस चीज के लिए खड़ी हैं और वे ना ही स्वयं को भारतीय मूल की महिला मानती हैं। हालांकि, विभिन्न भारतीय-अमेरिकी समूहों को उन पर गर्व भी है, लेकिन लोगों को संदेह है कि हैरिस भारत से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों से निपटने में सक्षम होंगी। प्रतिष्ठित ओक्लाहोमा स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पद्म श्री पुरस्कार विजेता सुभाष कॉक का कहना है कि मैं उनके राजनीतिक स्थिति से निराश हूं जो भारत के अनुकूल नहीं हैं।

अमेरिका में हिंदुओं के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली अमेरिकन फॉर हिन्दू के संस्थापक आदित्य सत्संगी मानते हैं कि हैरिस को भारतीय-अमेरिकी वोटों को विभाजित करने के लिए डेमोक्रेट द्वारा योजनाबद्ध तरिके से लाया गया है। हैरिस ने हमेशा भारतीय के बजाय अफ्रीकी मूल के होने का दावा किया है और कैलिफोर्निया में एक वकील के रूप में उसका रिकॉर्ड बेहद संदिग्ध है। लिविंग प्लैनेट फाउंडेशन की संस्थापक कुसुम व्यास ने हैरिस के ट्रैक रिकॉर्ड पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्या हमें ऐसे व्यक्ति का समर्थन करने की जरूरत है जो भारत की कश्मीर नीति की आलोचक हैं और पाकिस्तान के प्रति उनका झुकाव रहा है। वे कानूनी आव्रजन प्रक्रिया को समाप्त करने की सिफारिश करती हैं और अवैध आव्रजन का समर्थन करती हैं, जिससे भारत जैसे देशों से कानूनी रूप से आने वाले लोगों को नुकसान पहुंचा है। अटलांटा की राधिका सूद ने कहा कि हैरिस भारत विरोधी, हिंदू विरोधी ब्रिगेड की समर्थक है। उन्होंने कभी भी स्वयं को भारतीय नहीं माना। अमेरिकी भारतीय पाक और चीन समर्थक हैरिस को वोट नहीं देंगे। प्रश्न यह है कि क्या कमला हैरिस अमेरिकन भारतीयों को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के पाले में से वापिस लाकर जो बाइडेन को अमेरिकी राष्ट्रपति तक पहुंचा पाएंगी तथा अपनी जड़ों से जुड़े अमेरिकन हिन्दू अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में विजयी भूमिका में रहें, इस अग्निपरीक्षा में क्या खरे उतरेंगे? (मानवेन्द्र नाथ पंकज-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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