कोरोना का मेडिकल वेस्ट प्रदूषित कर रहा पर्यावरण
नई दिल्ली। पूरी दुनिया इस समय कोरोना वायरस से जूझ रही है लेकिन कोरोना से बचने के लिए पहने जा रहे मास्क भी परेशानी बनकर सामने आ रहे हैं। दुनिया की सरकारें इस वायरस से बचने के लिए मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे नियमों का पालन करने के लिए कह रही हैं तो वहीं सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल से मेडिकल वेस्ट भी ज्यादा बढ़ रहा है।
एन्वायर्मेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी जर्नल के एक अनुमान के मुताबिक हर महीने 129 अरब मास्क 65 अरब दस्ताने जो सिंगल यूज प्लास्टिक से बने हैं, उन्हें डिस्पोज किया जा रहा है। ये आंकड़ा पूरी दुनिया का है, और इनको इस्तेमाल करने के बाद डिस्पोज किया जा रहा है।
दुनियाभर की सरकारों ने कोरोना की वजह से बनने वाले मेडिकल वेस्ट को डिस्पोज करने की गाइडलाइंस तैयार की हुई हैं। एसोसिएटेड चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री यानि एसोचैम का एक शोध कहता है कि साल 2022 तक देश में 775 टन से ज्यादा मेडिकल वेस्ट निकलेगा। कोरोना वायरस की वजह से देश में एक दि में 550 टन से ज्यादा मेडिकल वेस्ट निकल रहा है। इस वेस्ट में मास्क, दस्ताने, पीपीई किट, फेस शील्ड, गाउन या गॉगल्स शामिल हैं और ये सभी सामान सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल कर बने हैं। अस्पतालों और कोरोना वार्ड से निकलने वाले मेडिकल वेस्ट की चिंता ज्यादा नहीं रहती।
अस्पतालों और कोरोना वार्ड से निकलने वाला मेडिकल वेस्ट अच्छी तरीके से इकट्ठा किया जाता है और डिस्पोज भी किया जाता है लेकिन आम लोग इस सिंगल यूज प्लास्टिक को कैसे डिस्पोज करते हैं और कैसे फेंकते हैं, ये ज्यादा बड़ी चिंता की बात है। डॉक्टरों का कहना है कि पीपीई किट, दस्ताने या मास्क को भले ही इस्तेमाल कर कचरे के डब्बे में फेंक दिया जाए लेकिन इससे संक्रमण का खतरा बना रहता है। इसके अलावा वल्र्ड वाइड फोरम फॉर नेचर की लॉकडाउन के दौरान एक रिपोर्ट सार्वजनिक हुई थी। इस रिपोर्ट चैंकाने वाली बात का खुलासा हुआ था कि अगर दुनिया में एक फीसदी मास्क भी गलत तरीके से डिस्पोज किए जा रहे हो तो भी समुद्र में एक करोड़ से ज्यादा मास्क हर दिन तैरत नजर आएंगे। नेशनल जियोग्राफिक की एक रिपोर्ट की माने तो अगर प्लास्टिक की एक बोतल समुद्र में चली जाए तो उसे गलने में 450 साल लग सकते हैं।
मास्क को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि सभी स्वस्थ लोगों को कपड़े का बना मास्क पहनना चाहिए, हालांकि ये मास्क तीन परतों वाला होना चाहिए। एक शोध के मुताबिक अगर कोई डॉक्टर पीपीई किट पहनकर कोरोना मरीज के संपर्क में आया है तो उसकी पीपीई किट पर भी चार दिन तक संक्रमण का असर रहता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि कोरोना में इस्तेमाल होने वाले मेडिकल वेस्ट को अच्छी तरह से डिस्पोज करना बेहज जरूरी है, नहीं तो और लोगों को भी संक्रमित कर सकता है।
ऑस्ट्रेलिया की विक्टोरियन सरकार ने हाल ही में फेस मास्क पहनने को लेकर सख्त नियम लागू किए हैं। वहां की सरकार ने आदेश दिया है कि सार्वजनिक जगहों पर मास्क, दस्ताने, पीपीई किट या कोई दूसरा मेडिकल सामान ना डालें। हालांकि लांसेट के शोध के मुताबिक कपड़े से बने मास्क पर 48 घंटे या उससे ज्यादा समय तक कोरोना वायरस जिंदा रहता है। (हिफी न्यूज)