कांग्रेस का विक्टिम कार्ड
नई दिल्ली। कांग्रेस प्रवक्ता राजीव त्यागी की अचानक मृत्यु ने राजनीति के छिछले स्तर को जहां एक बार सतह पर ला दिया है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने इस दुखद घटना को नया मोड़ दे दिया है। कांग्रेस प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने टीवी डिबेट्स में शिष्टता लाने के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से दखल देने और न्यूज चैनलों के लिए आचार संहिता लागू करने के लिए एक एडवाइजरी जारी करने का अनुरोध किया है।
सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को लिखे पत्र में कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा है कि टेलिविजन डिबेट्स 'कलंकित करने वाले दैत्य' बन चुके हैं और इस दैत्य को काबू करने के लिए आचार संहिता लाकर शिष्टता बहाल करना जरूरी है। लगातार टोका-टाकी, जहरीले और मानहानि वाले बोल से पैनल में शामिल सभी व्यक्तियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने भी शेरगिल की चिंताओं से सहमति व्यक्त करते हुए कहा है कि मीडिया में हर चीज को सनसनीखेज बनाने की प्रतिस्पर्धा से नुकसान पहुंचा है। ऐसी ही प्रतिक्रिया शशि थरूर ने भी दी है।
ध्यान रहे कांग्रेस प्रवक्ता राजीव त्यागी का हार्ट अटैक के चलते देहावसान हो गया है। मृत्यु से कुछ देर पहले ही वह एक टीवी चैनल पर डिबेट में हिस्सा ले रहे थे। राजीव की पत्नी ने वीडियो जारी करके भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता संबित पात्रा पर गंभीर आरोप लगाए हैं। राजीव त्यागी की पत्नी ने कहा कि उनके पति ने मौत से पहले कहा था कि इन लोगों ने मुझे मार डाला। डिबेट के दौरान राजीव त्यागी को जयचंद कहकर संबोधित करने वाले संबित पात्रा को त्यागी की पत्नी ने अपने पति का हत्यारा बताया है।
घटना के बारे में उन्होंने कहा, श्वैसे में थोड़ी देर से आती हूं कमरे में लेकिन पहली बार ऐसा हुआ कि मैं एकदम पहुंच गई, देखा तो पैंट का बटन खुला हुआ था और वह सोफे पर गिर गए थे। चेहरा थोड़ा-थोड़ा सफेद पड़ना शुरू हो गया था, उन्होंने कहा कि मेरा बीपी गड़बड़ हो रहा है। मैंने तुरंत बीपी चेक किया और डॉक्टर को बुलाया। अब हमारा जो नुकसान होना था, वह तो हो गया और हमें कुछ नहीं चाहिए। मेरे पति के लास्ट शब्द कुछ ऐसे थे। उन्होंने पहले एक गाली दी थी फिर कहा कि इन लोगों ने मुझे मार दिया। संबित पात्रा ने मेरे पति को कहा था कि इन्हें अभी आग लगाने जाना होगा। मुझे संबित पात्रा से बात करनी है, वही हत्यारा है क्योंकि मेरे पति ने आखिर में बोला था कि इन लोगों ने मुझे मार दिया।
स्मरण रहे राजीव त्यागी के निधन के बाद से ही सोशल मीडिया पर बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा के खिलाफ नाराजगी दिख रही है। उस बहस में संबित पात्रा भी शामिल थे और उन्होंने त्यागी पर गंभीर आरोप लगाए थे। कांग्रेस के एक नेता ने तो संबित पात्रा और न्यूज चैनल के खिलाफ लखनऊ में शिकायत भी दर्ज कराई है। राजीव त्यागी की आकस्मिक मृत्यु दुखद है। परन्तु केवल मीडिया के मत्थे ठीकरा फोड़ने तथा सम्बित पात्रा के बहाने भाजपा के विरुद्ध जनाक्रोश बनाना कोई नई बात नहीं अपितु कांग्रेस की पुरानी फितरत रही है।
राजीव त्यागी की पत्नी की चिंताएं जायज हैं परन्तु कांग्रेस का विक्टिम कार्ड खेलना क्या सच्चाई को छुपाना नहीं है? सवाल यह है कि जब कांग्रेस के दलित विधायक की जान पर आ बनी हो तब हमलावर भीड़ का नाम लेने व हिंसा की खुलकर निंदा करने की बजाय शब्दों की बाजीगरी के लिए अपने प्रवक्ता को मजबूर करना उनकी मृत्यु के लिए जिम्मेवार क्यों नहीं है ? डॉ सम्बित पात्रा का दोष यह है कि जिस जहर की खेती करने पर कांग्रेस का पट्टा था। उस पर वे विचार परिवारों के संस्कारों के परे जाकर कांग्रेसी शैली में ही आक्रामक रवैया अपनाए हुए हैं । कांग्रेस प्रवक्ता की राजनीतिक शिष्टाचार के लिए सरकार से एडवायजरी की मांग उचित है । परन्तु क्या कांग्रेस इसका पालन करेगी ? एक उदाहरण प्रस्तुत है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी आर आर हॉस्पिटल में जीवन व मृत्यु के बीच झूल रहे हैं । हिमाचल कांग्रेस के अध्यक्ष ने उनको श्रद्धांजलि दे डाली। हमारे वरिष्ठ सनसनीखेज पत्रकार ने भी मौके को लपकते हुए पूर्व राष्ट्रपति को श्रद्धांजलि देने में देर नहीं लगाई। दोनों ने ही समाचार की पुष्टि करने की जरूरत नहीं समझी। क्या कांग्रेस को शर्मसार नहीं होना चाहिए ?
जयचन्द कहने की बात पर कांग्रेस को ध्यान रखना चाहिए, इसका प्रयोग उसने ही शुरू किया था। जब राजा मांडा ने कांग्रेस से विद्रोह किया था । तब गांधी परिवार को खुश करने के लिए दरबारियों ने राजा माण्डा को जयचन्द कहकर अपमानित किया था। सार्वजनिक जीवन में शिष्टाचार का महत्व है । विचार परिवार को गांधी का हत्यारा व अंग्रेजों का समर्थक कहना किस प्रकार उचित है ? राजीव त्यागी अपमानजनक शब्दावली के लिए जाने जाते थे। मर्यादा का पालन परिवार का मुखिया करता है तब उस परिवार के अन्य लोगों पर दबाव रहता है। गांधी परिवार के तथाकथित वारिसों की शब्दावली उनके पूर्ववर्तियों से बिल्कुल अलग क्यों है, इस पर आत्मचिंतन की आवश्यकता है।
इतिहास की परतें खोली जायं तो कांग्रेस को जवाब देना मुश्किल पड़ेगा। गांधी परिवार का विरोध करने पर कांग्रेस अपने ही नेताओं की छीछालेदर करने में कोताही नहीं बरतती है। ज्योतिरादित्य सिंधिया व सचिन पायलट के विरुद्ध अपमानजनक शब्दावली क्या कांग्रेसी नेताओं को याद नहीं है ? सार्वजनिक जीवन में काम करने वाले लोगों के लिए विचार परिवार के मुखिया की भाषण शैली आदर्श हो सकती है । स्वयं पर अपमानजनक टिप्पणी को भी परे रखकर सबको अपना बनाने व सबका अपना बनने की मोहन शैली से सभी राजनैतिक दलों को प्रेरणा लेनी चाहिए।
यदि मीडिया के दायित्वों की चर्चा की जाय तो दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि पत्रकारिता का मीडिया में रूपांतरण लोकतंत्र के चतुर्थ स्तम्भ के लिए आघातकारी साबित हो रहा है। टीआरपी की हाई रेटिंग की मृगतृष्णा हर धतकरम के लिए विवश करती है। पत्रकारिता के शाश्वत मूल्य अलमारियों की शोभा बढ़ा रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बढ़ते वर्चस्व से प्रिंट मीडिया के अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा हो गया है। समाचार विश्लेषण व विचार के प्रकटीकरण की बजाय डिबेट की मंचीय शैली पत्रकारिता के भटकाव के लिए महत्वपूर्ण कारण नजर आ रहा है। पत्रकारिता को मानदंडों के अनुरूप ले जाना तो उचित ही है, परन्तु सरकारी हस्तक्षेप की मांग कांग्रेस के इरादों पर प्रश्नचिह्न लगाती है। राजीव त्यागी की मृत्यु यदि राजनीतिक दलों के जमीर को जगा सके तो समीचीन होगा। लोकतंत्र की रक्षा के लिए स्वानुशासन आवश्यक है, हमारे पत्रकार बन्धु विचार - विनियमय के उपरांत पत्रकारिता के लिए नियमावली बनाएं तो श्रेयस्कर होगा।
(मानवेन्द्र नाथ पंकज-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)