आपदा के चलते आत्मचिन्तन का उपराष्ट्रपति ने किया आह्वान
लखनऊ। संवैधानिक पदों पर सुशोभित होने के बाद सार्वजनिक जीवन की कुछ मर्यादाएँ होती हैं। अपने लंबे सार्वजनिक जीवन के बाद एकाएक नए दायित्व के अनुसार अपने को ढालना आसान नहीं होता। दोनों पारियों में अलग-अलग भूमिका का निर्वहन कुशलता पूर्वक करने वाले महानुभावों में उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू भी शामिल हैं। भाजपा अध्यक्ष, केंद्रीय मंत्री व विपक्ष के नेता के रूप में अपनी तुकबन्दी व चुटीले व्यंग्य से उन्होंने सार्वजनिक जीवन में अपना स्थान बनाया। राज्यसभा सभापति के रूप में कठोर अनुशासन व संसदीय शिष्टाचार के प्रति उनकी प्रतिबद्धता उल्लेखनीय रही है। कोरोना आपदा के चलते लागू किये गए लॉकडाउन व अनलॉक के दौरान सार्वजनिक गतिविधियाँ प्रभावित रहीं। उप राष्ट्रपति ने इस अवधि का उपयोग अध्ययन- चिंतन में किया है।
उन्होंने कोरोना वायरस के चलते बंदिश के दौरान पिछले कुछ महीनों के जीवन पर आत्मनिरीक्षण और मूल्यांकन करने का आग्रह किया है जानना चाहा कि क्या उन्होंने सही सबक सीखा और ऐसी अनिश्चितताओं से निपटने के लिए स्वयं को तैयार किया है। महामारी के अलग-अलग प्रभावों में से कुछ वर्ग इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए को इंगित करते हुए उप राष्ट्रपति ने कहा, हम बराबर (समकक्ष) जन्मे हैं और समय के साथ असमान होते गए। महामारी ने कुछ वर्गों में बढ़ रहे जोखिम को उजागर किया है जिसकी वजह वे नहीं हैं। वे ज्यादा व्यवस्थित हैं और उन्हें उचित रूप से मदद की दरकार है। आपके जीने का तरीका दूसरों के बढ़े हुए जोखिमों के कारणों में से एक हो सकता है।
कोविड-19 महामारी के कारणों और परिणामों पर लोगों के साथ जुड़ने की बात करते हुए भारत के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने फेसबुक पर पोस्ट लिखा, कोरोना काल में जीवन पर चिंतन। जन सामान्य से संवाद स्थापित करते हुए उन्होंने 10 सवाल प्रस्तुत किए, जिनके जवाबों से पिछले चार महीनों से ज्यादा समय में बंदिश के दौरान सीखे गए सबक का आकलन करने और जीवन की अपेक्षाओं में आए परिवर्तन को समझने में सहायता मिल सकती है।
उपराष्ट्रपति की सोच है कि 10 बिंदुओं का गणितीय आकलन (मैट्रिक्स) यह जानने में भी सहायता करेगा कि क्या लोगों ने आवश्यक समझ के साथ स्वयं को इस तरह तैयार कर लिया है ताकि भविष्य में ऐसी कठिनाइयों की पुनरावृत्ति को रोकने में मदद मिल सके। उन्होंने चुनौतियों को अवसर के रूप में उपयोग करने का सुझाव देते हुए कहा कि महामारी को न केवल एक आपदा बल्कि जीने के दृष्टिकोण और प्रथाओं में आवश्यक परिवर्तन करने वाले एक सुधारक के रूप में भी देखने की जरूरत है जिससे हम प्रकृति और संस्कृति तथा सहायक मार्गदर्शक सिद्धांतों और लोकाचार के साथ सामंजस्य बनाकर रहें। जीवन मार्ग का उसकी सभी अभिव्यक्तियों और समग्र रूप में लगातार मूल्याकंन उच्च जीवन के लिए एक जरूरी शर्त है। ऐसा ही एक अवसर अभी है क्योंकि हम कोरोना वायरस के साथ जी रहे हैं। कोरोना काल में जीवन पर चिंतन में आधुनिक जीवन की कार्यप्रणाली, प्रकृति और रफ्तार पर फिर से गौर करने तथा एक सामंजस्यपूर्ण और नपे-तुले जीवन के लिए उपयुक्त परिवर्तन के अलावा जीवन के उद्देश्य को ठीक तरह से परिभाषित करने पर विशेष बल दिया गया।
चिंता मुक्त जीवन के लिए दिए गए सुझावों में शामिल है- सही सोचना और करना जैसे भोजन को औषधि के रूप में देखिए जो स्वस्थ जीवन का निर्वाह करता है। भौतिक लक्ष्य से परे जाकर जीवन का एक आध्यात्मिक आयाम प्राप्त करना। सही और गलत के सिद्धांतों और प्रथाओं का पालन करना तथा दूसरों के साथ साझा करना और उनकी देखभाल करना। सामाजिक बंधनों का पोषण और एक सार्थक जीवन के लिए जीने का उद्देश्य तय करना है। लगातार आपदाओं के मूलभूत कारणों का विश्लेषण करते हुए नायडू का कहना है कि, ग्रह को हमारी जरूरत नहीं है बल्कि हमें ग्रह की जरूरत है। ग्रह पर एकमात्र स्वामित्व का दावा करना जैसे कि यह केवल इंसानों के लिए है। इसने प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ दिया है। फलस्वरूप अनेक प्रकार की कठिनाइयां पैदा हो गईं।
इस साल में महामारी के समय में जीने के अनुभव को शामिल करते हुए मैट्रिक्स में आत्म-मूल्यांकन का परामर्श दिया गया, जिसमें शामिल है कि क्या आपको महामारी के कारणों के बारे में पता है, कोरोना के प्रकोप से पहले जीने के तरीकों में बदलाव करने के लिए तैयार थे, जीवन के मायने पुनः परिभाषित हुए हैं, माता-पिता और अन्य बड़ों की देखभाल करने जैसी विभिन्न भूमिकाओं को निभाने में अंतराल की पहचान की है, अगली विपत्ति का सामना करने के लिए तैयार किया है, जीवन के धर्म को समझा, आध्यात्मिक प्रबोधन की जरूरत को समझा, पहचान की गई कि प्रतिबंध के दौरान सबसे ज्यादा क्या चीज छूट गई। महामारी के कारण और इसके अलग-अलग प्रभाव से आप क्या अवगत हैं और क्या महामारी को केवल आपदा के रूप में देखते हैं या सुधारक के रूप में भी।
लार्वा के कोकून के रूप में जीवन को धीमा करने और फिर इससे तितली के रूप में निकलने की घटना का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने लोगों से मौजूदा महामारी के दौरान जीवन के अनुभव को समझते हुए तितली की तरह उभरने का आग्रह किया और सुरक्षित भविष्य के लिए उससे सही सबक लेने को कहा।
प्रकृति अनुकूलन घरों के निर्माण का आह्वान इसी प्रकार एक आभासी कार्यक्रम में बढ़ती जनसंख्या के परिणामस्वरूप अपेक्षानुरूप आवासीय आवश्यकताओं की चर्चा करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए नए इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए जगह बनाने के लिए वर्तमान घरों को न तोड़ा जाए।
उपराष्ट्रपति इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ आर्किटेक्ट्स के वार्षिक सम्मेलन को आभासी माध्यम से संबोधित कर रहे थे। कोविड-19 महामारी के कारण जन सामान्य के स्वास्थ्य और जीविका पर पड़े प्रभावों की चर्चा करते हुए नायडू ने कहा कि इससे विनिर्माण क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ है, निर्माण का काम ठप्प पड़ गया है। इस संदर्भ में उन्होंने डिजाइनरों और आर्किटेक्ट्स से इस महामारी से पैदा हुई चुनौतियों का कारगर समाधान खोजने की अपील की। उन्होंने महामारी और उस के बाद उसके असर से निपटने के लिए, आर्किटेक्ट्स से नए तरीकों और योजनाओं पर नए सिरे से विचार करने की भी अपेक्षा की।
देश के आर्किटेक्ट्स का आह्वान करते हुए कहा कि स्थापत्य में हरित डिजाइन को अपनाएं और प्रोत्साहित करें। साथ ही आगामी समय में बनने वाले भवनों में सौर ऊर्जा जैसे अक्षय ऊर्जा स्रोतों को अपनाया जाना चाहिए।
नायडू ने बल दिया कि किसी इमारत के निर्माण में कलात्मकता और प्रकृति के प्रति उसकी अनुकूलता में संतुलन बनाया जाना चाहिए।
सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर कोणार्क के सूर्य मंदिर तथा उसके बाद आधुनिक काल तक, भारत के भवन निर्माण और स्थापत्य कला के विकास का उल्लेख किया किया । हमारे देश में ऐसी कितनी ही प्रख्यात इमारतें हैं जो स्थानीय कारीगरों द्वारा स्थानीय संसाधनों और तकनीक का उपयोग करके बनाई गई हैं। स्थापत्य और इमारतें किसी भी सभ्यता के विकास का सबसे स्थाई पहचान होती है। यह कहते हुए टिकाऊ, मजबूत और समावेशी स्थापत्य को विकसित करने की आवश्यकता पर उन्होंने जोर दिया। उपराष्ट्रपति ने स्थापत्य विशेषज्ञों से अपेक्षा की, कि वे भारत की समृद्ध स्थापत्य विविधता से प्रेरणा लें, उसे संरक्षित करें और उसे आगे विकसित करें। उन्होंने कहा कि इस विधा के विशेषज्ञ उद्यमी प्रकृति-अनुकूल डिजाइन तथा तकनीक अपनाएं जो स्थानीय लोगों की जरूरत के मुताबिक हों।
ध्यान रहे उपराष्ट्रपति ने देशभर के स्थानीय नगर निकायों को सलाह दी थी कि नए भवनों और इमारतों में छत पर सौर ऊर्जा पैनल तथा वर्षा जल संरक्षण के प्रावधान सुनिश्चित किए जाने चाहिए। बारिश के कारण शहरों में बाढ़ और जल जमाव जैसी समस्याओं की चर्चा करते हुए प्रभावी जल निकासी तंत्र विकसित करने का आग्रह किया।
सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्मार्ट सिटी तथा सबके लिए आवास कार्यक्रमों की प्रशंसा करते हुए उप राष्ट्रपति ने कहा कि इन कार्यक्रमों को स्थानीय शिल्प परंपराओं से जोड़ने की आवश्यकता है। इन कार्यक्रमों में स्थानीय कारीगरों और शिल्पकारों को भी जोड़ने की आवश्यकता प्रतिपादित की। उनका मानना है कि इससे न केवल स्थानीय संस्कृति और स्थापत्य शैली जीवित रहेगी अपितु प्रतिभाशाली स्थानीय कारीगरों को भी रोजगार मिलेगा जो अपनी कला के माध्यम से संस्कृति को जीवित रखने का अथक प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने आर्किटेक्टस से आग्रह किया कि किसी भी प्रोजेक्ट को डिजाइन करते वक्त वे स्थानीय लोगों से भी सलाह -मशविरा लें, जिससे कि नया प्रोजेक्ट स्थानीय जरूरतों के अनुरूप हो। वह भवन के लिए डिजाइन तैयार करते समय, सुविधा पर अधिक जोर दें। भवन का डिजाइन सुविधा और कलात्मकता एवम् फैशन का संतुलित मिश्रण हो। कोई भवन सिर्फ आश्रय और सुरक्षा प्रदान करने के लिए ही नहीं अपितु सुविधाजनक भी होना चाहिए।
(मानवेन्द्र नाथ पंकज-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)