दायित्व से ही पिता बनता है महान
लखनऊ। माँ की ममता और पिता के दायित्व का जीवन में अपना अलग-अलग महत्व होता है। हम इनमें से किसी को भी कम या ज्यादा नहीं कह सकते। इसीलिए धरती पर माता-पिता को ही परमेश्वर माना जाता है। माता-पिता न होते तो हमारा अस्तित्व ही नहीं होता। इतना ही नहीं उन्हीं के माध्यम से हम जीवन के अनुभव, संस्कार सीखते हैं। माता के महत्व को दर्शाने के लिए मदर्स डे पहले से ही मनाया जाता था। इसके बाद पिता के सार्वभौमिक महत्व को दर्शाने के लिए फादर्स डे भी मनाया जाने लगा। माँ बच्चे का आज अर्थात् वर्तमान संवारने मंे लगी रहती है तो पिता बच्चे का कल अर्थात् भविष्य संवारते हैं। माँ की ममता और पिता के संबल के बिना जीवन अधूरा है। पिता को लेकर यह जरूर कहा जा सकता है कि उनकी सोच बहुत व्यापक होती है। उनके मन का जितना विस्तार होता रहता है, उतने ही वे ज्यादा महान बनते हैं। हमारे देश में मोहनदास कर्मचन्द गांधी ने पूरे देश को अपना परिवार समझ लिया था, इसलिए उनको राष्ट्रपिता कहा जाता है।
पिता का प्यार और उसका त्याग इस दुनिया में अनमोल होता है। माँ जितना प्यार अपने बच्चे से करती है, उतना ही पिता भी करता है लेकिन पिता कभी-कभी बच्चे के हित में कठोर हो जाता है। सच्चाई यह है कि वे बहुत नसीब वाले हैं जिनके सिर पर पिता का हाथ होता है। पिता ही है जिसने जिद भी पूरी की और जरूरत समझने पर डांटा भी। पिता ने धरती की तरह धैर्य दिया है तो आसमान की तरह ऊंचाई भी दी है। अपने बच्चों के हर दुख को जो स्वयं पर सहन कर लेते हैं, ऐसे ईश्वर की जीवित प्रतिमा को ही पिता कहा जाता है। एक बात हमेशा याद रखें कि इस धरती पर पिता का स्थान ईश्वर से कम नहीं है। पिता हमेशा हमारा ध्यान रखते हैं और निस्वार्थ प्रेम करते हैं। पिता अपना हाथ सिर पर रख देते हैं तो आशीर्वाद बन जाता है। इसलिए पिता का दिल कभी नहीं दुखाना चाहिए। इसलिए कहा गया है-
निकाल के जिस्म से जो अपनी जान देता है।
बड़ा ही मजबूत है वो पिता जो कन्यादान देता है।
न मजबूरियां रोक सकीं, न मुसीबतें रोक सकीं,
आ गया पिता जो बच्चों ने याद किया।
दुनिया में केवल पिता ही एक ऐसा इंसान है जो चाहता है कि उसके बच्चे उससे भी ज्यादा कामयाब इंसान बनें, सफलता पाएं। एक पिता अपने बच्चों का गुरूर होता है जिसे कोई नहीं तोड़ सकता। फादर्स डे 2020 इस साल 21 जून को है। इसे सबसे पहली बार अनधिकृत रूप से 1907 में मनाया गया था जबकि आधिकारिक रूप से इसे पहली बार 1910 में मनाया गया था। हर साल जून महीने के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाया जाता है। इस साल 21 जून को फादर्स डे है। इसे मनाने का मुख्य उद्देश्य पिता के कर्तव्यों के निर्वहन के लिए उनके प्रति सम्मान और आभार व्यक्त करना है।
फादर्स डे को मनाए जाने को लेकर दो मत हैं। पहले मत के अनुसार, वर्जीनिया के खनन उद्योग में विस्फोट से 210 श्रमिकों की मृत्यु हो गई थी। उस समय लोगों ने यह निश्चय किया कि मारे गए श्रमिकों को श्रद्धांजलि विशेष रूप से दी जाएगी। उसी साल 19 जून, 1907 को पहली बार मारे गए श्रमिकों के प्रति संवेदना प्रकट करने के लिए फादर्स डे मनाया गया। हालांकि, इसका आधिकारिक रिकॉर्ड मौजूद नहीं रहने के कारण लोग सोनोरा स्मार्ट डोड के प्रयासों को सच मानते हैं। सोनोरा स्मार्ट डोड जब छोटी थी तो उनकी मां का आकस्मिक निधन हो गया। इसके बाद डोड की देखभाल उसके पिता विलियम स्मार्ट ने की। एक दिन जब डोड प्रार्थना सभा में मौजूद थी तो चर्च के बिशप ने मातृत्व शक्ति पर धर्म उपदेश दिया। इस उपदेश से डोड काफी प्रभावित हुई। उस समय डोड ने मदर्स डे की तर्ज पर फादर्स डे मनाने की सोची। इसके बाद 19 जून 1909 को पहली बार डोड ने फादर्स डे मनाया। हालांकि, लोगों ने डोड का खूब उपहास किया, लेकिन समय के साथ लोगों को पिता के निःस्वार्थ सेवा और समर्पण की अहमियत का पता चला। इसके बाद लोग मिलजुल कर 19 जून को फादर्स डे मानाने लगे। इसके बाद 1924 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति कैल्विन कोली ने फादर्स डे को अपनी सहमति दे दी, जिससे फादर्स डे मनाने का रास्ता खुल गया। इसके चार दशक बाद राष्ट्रपति लिंडन जानसन ने 1966 में यह घोषणा की कि फादर्स डे हर साल जून महीने के तीसरे रविवार को मनाया जाएगा।
पिता घर की जिम्मेदारियों को कंधे पर उठाकर सुबह घर से निकल जाते हैं। परिवार में जिन्हें सबसे कड़क मिजाज समझा जाता रहा है। वक्त के साथ अब बच्चों के दोस्त भी बन रहे हैं।अब उनके घर वापस आने पर डर का माहौल नहीं बल्कि हंसी-खुशी का नजारा देखने को मिलता है। वैसे तो, माता-पिता के लिए कोई एक खास दिन निर्धारित नहीं किया जा सकता लेकिन उन्हें किसी दिन के बहाने स्पेशल फील कराया जा सकता है। इस बार 21 जून को 'योग दिवस' ही नहीं पूरी दुनिया में 'फादर्स डे' भी मनाया जाएगा।
बदलते दौर में अब पिता की छवि बदल गई है। आज पिता अपने बच्चों के लिए न केवल प्रेरणास्रोत बने हैं बल्कि जीवन में ऐसा मूलमंत्र दे रहे हैं जिसे जपकर उनके बच्चे कामयाबी की नई इबारतें लिख रहे हैं। पिता शब्द सुनते ही जेहन में एक दृढ़ व्यक्तित्व की छवि उभरती है। ऐसा व्यक्ति जो हमारा सबसे बड़ा आदर्श होता है, मर्यादा जिसके रिश्ते की पहचान है। एक ऐसा नाता जो हमें हर कदम पर साहस देता है। पिता... यह शख्स जो तब साथ खड़ा होता है जब हमारा धैर्य चुकने लगता है। वे तब भी साथ होते हैं, जब हम सफलता के आसमान पर होते हैं। मध्य प्रदेश एक युवक ने अपने पिता की प्रेरणा से बड़ा साम्राज्य खड़ा किया। भोपाल के सागर ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट के संस्थापक संजीव अग्रवाल भी अपनी सफलता की नींव में अपने पिता के सहयोग को मानते हैं। संजीव के मुताबिक पिता ने बचपन से एक बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा दी। वे हमेशा कहते हैं कि सफलता पाने के तमाम गुणों में सबसे अनिवार्य गुण यह है कि आप बेहतर व्यवहार करें। पिता सुशील अग्रवाल इंजीनियर थे और उन्होंने इमारतों के निर्माण के साथ संजीव को सफलता का निर्माण करना भी सिखलाया। इसी सीख का परिणाम है कि संजीव अपने कार्यक्षेत्र में लगातार विस्तार कर रहे हैं। वे कहते हैं कि पिता की इस भूमिका के लिए वे सदैव कृतज्ञ रहेंगे। चित्रकार अखिलेश कला जगत में किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। अखिलेश ने बचपन से ही पिता को एक कलासाधक के रूप में देखा। पिता ने भी जीवन व्यवहार का पाठ पढ़ाने के साथ नन्हे अखिलेश को कला की बारीकियां भी सिखलाईं। अखिलेश कहते हैं कि पिता मेरे जीवन का सबसे अहम किरदार हैं। उन्होंने पिता होने के नाते कई बातें सिखाईं लेकिन जब पता चला कि मैं पेंटिंग में रुचि लेने लगा हूं तो उन्होंने इस कला को सिखाया। इस तरह से यह मेरे पिता की मुझे अतिरिक्त मदद थी। मुझे लगता है कि मेरे पिता एक अच्छे शिक्षक थे तभी वे चित्रकला की बारीकियां मुझे सिखला पाए।
(अचिता-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)