चीन ने फिर की दगाबाजी!
नई दिल्ली। भारत-चीन के बीच हिंसक झड़प में 20 भारतीय जवानों की शहादत से देश में उबाल है। निश्चित रूप से यह घटना भारत के लिए बड़ी चुनौती है। चीन के विश्वास में आकर हमें भारी नुकासान उठाना पड़ा है। एक कर्नल समेत 20 सैनिकों की मौत हमारे लिए बड़ी क्षति है। चालबाज चीन एक तरफ बातचीत कर रहा था दूसरी तरफ एक सोची समझी रणनीति के तहत भारतीय फौज पर हमला किया गया, जिसका मुंहतोड़ जवाब हमारी फौज ने दिया और 43 दुश्मन फौज के जवान मार गिराए। भारतीय फौज पर हमला चीन की हताशा को दर्शाता है। कोरोना संक्रमण को लेकर चीन पूरी दुनिया के निशाने पर है। चीन में स्थापित विदेशी कम्पनियाँ भारत की तरफ रुख कर रहीं हैं जिसकी वजह से चीन सीमा जैसा विवाद छेड़कर दुनिया का ध्यान खुद से हटाना चाहता है।
भारत-चीन के बीच 45 साल बाद दोनों तरफ से हुई हिंसा में इतने सैनिक मारे गए हैं। यह चीनी सेना की एक सोची समझी रणनीति है। चीन ने भारतीय सेना पर अचानक हमला बोला। यह हमला पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में पेट्रोलिंग के दौरान हुआ। अधिकारी स्तर की मीटिंग में यह तय हुआ था कि चीनी सेना विवादित इलाके से अपने जवानों को हटा लेगी। इसी को देखने भरतीय फौज के जवान गश्त पर निकले थे जहाँ चीनी सेना ने सुनियोजित तरीके से भरतीय सेना का अपहरण कर पत्थर से हमला बोल दिया जिसके बाद दोनों तरफ की सेनाएं आमने-सामने हो गई और चीन को भारी कीमत चुकानी पड़ी।
चीन अपनी विस्तारवादी नीति की वजह से हमेशा पड़ोसियों के लिए बड़ा खतरा है। 23 देशों से उसका सीमा विवाद अभी तक हल नहीं हुआ है। तकरीब 22 हजार किलोमीटर का सीमा विवाद दूसरे देशों से है। भारत के साथ उसका सबसे बड़ा सीमा विवाद है। पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में हुई हिंसा की बड़ी वजह चीन का सीमा विस्तार है। भारत और चीन के मध्य गलवान घाटी का मसला कभी नहीं था लेकिन अब चीन ने इस विवाद को सुलगाना शुरू किया है। इस इलाके में भारत अपनी सीमा में सड़क बना रहा है जिसकी वजह से चीन को यहीं बात चुभ रहीं है। इस हिंसक झड़प में दोनों तरफ के सैनिकों की क्षति हुई है। यह उस स्थिति में हुआ है जब युद्ध जैसी परिस्थितियाँ नहीँ रहीं हैं।
भारत के लिए 20 जवानों की शहादत बेहद अहम है। भारत ने एक कर्नल भी खोया है। चीन भारत के खिलाफ हमेशा से सीमा विवाद को हवा देकर एक दबाव की रणनीति बनाता रहा है। वह आए दिन भारतीय सीमा में घुसता रहा है। वह दक्षिण एशिया और ग्लोबल स्तर पर भारत की बढ़ती ताकत से चिढ़ता है। विश्व स्वास्थ संगठन में भारत को मिली अहम जिम्मेदारी से भी वह जल-भुन गया है। लेकिन युद्ध दोनों देशों के लिए ठीक नहीँ है। यह वक्त युद्ध का नहीँ है लेकिन चीन अमेरिका से अपनी अनबन की भड़ास भारत पर निकालने को आतुर है। अब स्थिति बदल गई है भारत किसी के दबाव में झुकने वाला नहीँ है चीन को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए।
भारत और चीन के मध्य हुई इस हिंसक झड़प का सीधा असर दोनों देशों की शांति वार्ता और आर्थिक गतिविधि पर पड़ेगा। चीन के लिए भारत सबसे बड़ा बजार है उस हालात में वह कभी नहीं चाहेगा कि भारत और चीन के बीच युद्ध लड़ा जाय। जबकि अमेरिका भारत की मदद की आड़ में चाहता है कि भारत-चीन के मध्य युद्ध छिड़ जाय और उसे चीन को सबक सिखाने का मौका मिल जाय। यह बात खुद चीन अच्छी तरह समझता है। लेकिन हिंसक झड़प के पीछे शी जिन पिंग का दिमाग था या पीपुल्स आर्मी का, यह अपने आप में बड़ा सवाल है। लेकिन बगैर किसी जिम्मेदार का आदेश मिले इस तरह की घटना को अंजाम नहीं दिया जा सकता है।
भारत-चीन को इस हिंसा पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए। चीन को अपनी सोच में बदलाव लाना चाहिए। दादागिरी अपना कर पड़ोसी देशों पर अपना कब्जा जमाना ठीक नहीं है। पंडित नेहरू के शासनकाल में जब हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा लगा था तब भी चीन ने भारत के साथ धोखा दिया था। तिब्बत जैसे देश पर चीन का कब्जा है। चीन की दमनकारी नीति से तिब्बत के लोग निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। भारत को घेरने के लिए चीन पाकिस्तान और नेपाल का उपयोग कर रहा है। चीन नेपाल और पाकिस्तान को आगे कर अपनी नीति कामयाब करने में लगा है।
भारत-चीन जितनी जल्द सीमा विवाद को हल कर लें, उतना दोनों देशों के लिए लाभकारी होगा। एक तरफ चीन शांति बहाली की बात अलाप रहा है, दूसरी तरफ सीमा का अतिक्रमण कर घुसपैठ कर रहा है। एलएसी पर गश्त कर रहे भारतीय सैनिकों का अपहरण करवा उनकी हत्या करवा रहा यह उसकी कौन सी नीति है जबकि आधिकारिक लेबल पर दोनों देशों के बीच हुई बातचीत में यह तय हुआ था कि चीनी सेना वहां से पीछे हट जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। चीन और भारत की ओर से आए बयानों से लगता है कि दोनों देश इस समस्या को हल करना चाहते हैं। भारत-चीन ने अपनी-अपनी सीमा पर जरूरत से अधिक फौज और सैनिक साजो सामान की तैनाती की है। भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा की पहचान 1962 की लड़ाई के बाद हो गई थी लेकिन साम्राज्यवाद नीति का पोषक चीन इस बात को कभी मानने के लिए तैयार नहीं हुआ।
चीन भारतीय सीमा में हमेशा घुसपैठ करता चला आ रहा है सन् 2017 में डोकलाम में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हाथापाई की घटना किसी से छुपी नहीं है। भारत और चीन के बीच सीमा विवाद दशकों पुराना है लेकिन ताजा तनाव की कई प्रमुख वजहें भी हैं जिसमें भारतीय सीमा में निर्माण कार्य एक खास वजह है। भारत ने शियोक नदी से दौलत बेग ओल्डी में सड़क का निर्माण कर लिया है, जिसकी वजह से चीन को यह बात नागवार गुजर रहीं है। उसे लगता है कि लद्दाख के इस दुर्गम इलाके में यदि भारत सड़कों का निर्माण कर लेता है तो उसकी सैन्य ताकत बढ़ जाएगी। इस इलाके तक सैन्य साजो सामान की पहुँच आसान हो जाएगी। उस स्थिति में भारत के खिलाफ कोई युद्ध जीतना आसान नहीं होगा। भारतीय फौज की निगरानी बढ़ जाएगी जिसकी वजह से भारतीय सीमा में घुसपैठ का ख्वाब अधूरा रह जाएगा।
भारत सरकार के लिए यह वक्त निर्णायक भूमिका का है। सरकार पूरे घटनाक्रम पर नजर बनाएं हैं। सैन्य प्रमुखों के साथ गृहमंत्री, रक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और दूसरे जिमेदार अफसरों के बीच मीटिंग भी हुई है। सरकार और सेना किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार हैं। यह मुद्दा देश की सामरिक सुरक्षा से जुड़ा है। सभी राजनैतिक दलों को एक मंच पर आने की जरूरत है। चीन भारत की जवाबी कार्रवाई से घबराया है, वह भारतीय सैनिकों को निशाना बना सकता है। सेना को बेहद सतर्क और ऐतियात बरतने की जरूरत है। क्योंकि चीन ने 43 सैनिकों को खोया है। भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जबाब दिया है। अब वक्त आ गया है जब चीन के साथ भी सख्त रवैया अपनाया जाए।
(प्रभुनाथ शुक्ल-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)