बांग्लादेश से ट्रेन दोस्ती

बांग्लादेश से ट्रेन दोस्ती

नई दिल्ली। भारत अपने पड़ोसी देशों से संबंधों को बेहतर बनाने का निरंतर प्रयास करता है। अभी 10 दिसम्बर को ही आसियान देशों के रक्षा मंत्रियों की बैठक में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि आतंकवाद और अन्य चुनौतियों का सामना एक मंच पर आकर करना चाहिए। साथ ही सभी लोगों की मौलिक आजादी का भी ध्यान रखना होगा। इसी प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी वैश्विक संवाद में एक दूसरे से सहयोग की अपेक्षा की है। हमारे पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देश इस संभावना से दूर रहते हैं जबकि बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देश नजदीकियां बढ़ाने को उत्सुक रहते हैं। इसी भावना का नतीजा है कि पश्चिम बंगाल के हल्दीबाड़ी और बांग्लादेश स्थित चिलहटी के बीच रेल मार्ग 55 साल बाद 17 दिसंबर को पुनः खोला जाएगा और भारत तथा बांग्लादेश के प्रधानमंत्री इसका उद्घाटन करेंगे। भारत और बांग्लादेश के बीच रोहिंग्याओं का मामला भी फंसा हुआ है लेकिन उसे बातचीत से सुलझाने का प्रयास हो रहा है। बांग्लादेश के साथ हमारे व्यापारिक-संबंध भी अच्छे हैं और दोनों देश एक दूसरे को हानि पहुँचाने वाली गतिविधियों को अपनी-अपनी जमीन पर नहीं होने देते। भारत और बांग्लादेश के बीच रेल सेवा की बहाली दोस्ती का नया अध्याय लिखेगी।

पश्चिम बंगाल के हल्दीबाड़ी और बांग्लादेश में चिलहटी के बीच रेल मार्ग चालू होने के बारे में उत्तर पूर्व फ्रंटियर रेलवे (एनएफआर) के एक अधिकारी ने जानकारी दी है। वर्ष 1965 में भारत तथा तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के बीच रेल संपर्क टूटने के बाद कूचबिहार स्थित हल्दीबाड़ी और उत्तरी बांग्लादेश के चिलहटी के बीच रेलवे लाइन बंद कर दी गई थी।

एनएफआर के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी सुभानन चंदा ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी बांग्लादेशी समकक्ष शेख हसीना, 17 दिसंबर को हल्दीबाड़ी-चिलहटी रेल मार्ग का उद्घाटन करेंगे। उन्होंने कहा कि रेल मार्ग बहाल करने के लिए चिलहटी से हल्दीबाड़ी तक एक मालगाड़ी जाएगी जो एनएफआर के कटिहार डिवीजन में आता है।

कटिहार मंडलीय रेलवे प्रबंधक रविंदर कुमार वर्मा ने कहा कि विदेश मंत्रालय ने गत दिनों अधिकारियों को रेल मार्ग बहाल होने से अवगत कराया। एनएफआर ने कहा कि हल्दीबाड़ी रेलवे स्टेशन से अंतरराष्ट्रीय सीमा तक की दूरी साढ़े चार किलोमीटर है और बांग्लादेश में चिलहटी से सीमा तक की दूरी साढ़े सात किलोमीटर के आसपास है। वर्मा ने 9 दिसम्बर को हल्दीबाड़ी स्टेशन का दौरा करने के बाद कहा कि इस मार्ग पर जब यात्री सेवा शुरू हो जाएगी तो लोग सिलीगुड़ी के पास स्थित जलपाईगुड़ी से कोलकाता, सात घंटे में पहुंच सकेंगे और इससे पूर्व के यात्रा समय में पांच घंटे की कमी आएगी। रेल यातायात से व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंधों में भी और निखार आएगा।

इसी तरह भारत बांग्लादेश के बीच रोहिंग्याओं का मामला फंसा हुआ है। पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं । चुनाव में इसे भी मुद्दा बनाया जाएगा। दरअसल, लाखों की तादाद में रोहिंग्या मुसलमानों ने म्यांमार छोड़कर पड़ोसी राज्य बांग्लादेश में शरण ली। हालांकि यहां भी वे सुरक्षित नहीं रह सके। अब बांग्लादेश सरकार खुद बड़ी संख्या में रोहिंग्याओं को एक निर्जन द्वीप पर भेज रही है। सरकार का तर्क है कि वो आबादी के सही बंटवारे के लिए ऐसा कर रही है और साथ ही वो शरणार्थियों की अनुमति लेकर ये कदम उठा रही है। वहीं रोहिंग्याओं का कहना है कि आबादीशून्य द्वीप में जाने के लिए वे कतई तैयार नहीं हैं। बांग्लादेशी सरकार म्यांमार से भागे हुए रोहिंग्याओं की राहत के नाम पर उन्हें बाशन चार द्वीप भेजने लगी है। सरकार का मकसद लगभग एक लाख लोगों को वहां बसाना है। इसके लिए द्वीप पर एक छोटा शहर बनाया गया। इसमें बाजार, स्कूल और मस्जिद भी हैं। इसके लिए सरकार ने वहां कथित तौर पर 270 डॉलर मिलियन खर्च किए हैं। द्वीप पर लगभग 1 लाख लोग रह सकते हैं। इसके लिए यहां 120 शेल्टर बनाए गए हैं। हर शेल्टर यानी इमारत में 800 से 1000 लोग बसाए जाएंगे और हरेक परिवार के लिए 12 फुट से 14 फुट की जगह होगी, जिसमें सोने के लिए बंक बेड यानी एक के ऊपर एक वाले बिस्तर भी लगाए जा चुके हैं।

इस बीच रोहिंग्याओं का मामला संयुक्त राष्ट्र संघ तक पहुंच गया।बांग्लादेश की अपनी समस्याएं भी हैं । इसलिए वहां के प्रशासन ने मानवाधिकार संगठनों के आग्रह को दरकिनार करते हुए हजारों रोहिंग्या शरणार्थियों को एक अलग-थलग द्वीप पर पहुंचाना शुरू कर दिया है। संयुक्त राष्ट्र ने भी चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि बंगाल की खाड़ी में स्थित द्वीप पर स्थानांतरित करने को लेकर शरणार्थियों को 'स्वतंत्र एवं सुविचारित निर्णय' लेने की अनुमति दी जानी चाहिए। द्वीप पर करीब 100,000 लोगों के रहने के लिए सुविधाएं विकसित की गयी हैं। यह आंकड़ा उन लाखों मुस्लिम रोहिंग्याओं का महज एक छोटा सा अंश है जो अपने मूल स्थान म्यामांर में हिंसक उत्पीड़न से बचने के लिए भाग गये और भीड़भाड़ वाले शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। एक अधिकारी ने पहचान नहीं उजागर करने की शर्त पर बताया कि शरणार्थियों को लेकर 11 बसें कॉक्स बाजार जिले से द्वीप के लिए रवाना कर दी गयी हैं ।उन्होंने बताया कि कुछ हजार शरणार्थी पहले जत्थे में थे। वैसे कॉक्स बाजार के अधिकारी ने यह नहीं बताया कि द्वीप पर पहुंचाये जाने के लिए किन शरणार्थियों को चुना गया। अगस्त, 2017 के बाद करीब 700,000 रोहिंग्या भागकर कॉक्स बाजार के शिविरों में पहुंचे थे। उसी दौरान बौद्ध बहुल म्यामांर ने उग्रवादियों के हमले के बाद मुस्लिम संगठन पर कठोर कार्रवाई शुरू की थी। इस कार्रवाई के दौरान बलात्कार एवं हत्याएं की गयीं और हजारों घर जला दिये गये। वैश्विकअधिकारवादी संगठनों एवं संयुक्त राष्ट्र ने इसे जातीय सफाया करार दिया।

विदेशी मीडिया को भी इस द्वीप जिसे बाशन चार कहा जा रहा है, पर जाने नहीं दिया गया। कभी यह द्वीप मानसून के दौरान नियमित रूप से डूब जाता था लेकिन अब वहां बाढ़ सुरक्षा तटबंध, मकान, अस्पताल, मस्जिदें आदि हैं। यह द्वीप मुख्य भूमि से 21 मील दूर है। जब 2015 में पहली बार शरणार्थियों को इस द्वीप पर पहुंचाने का प्रस्ताव रखा गया था, तब से अंतरराष्ट्रीय सहायता एजेंसियां और संयुक्त राष्ट्र ने इसका विरोध किया है क्योंकि उन्हें डर है कि बड़े तूफान से हजारों लोगो की जान खतरे में पड़ सकती है। संयुक्त राष्ट्र ने एक बयान में कहा था कि उसे शरणार्थियों को पहुंचाने, इस वास्ते उनके चयन आदि की प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया। प्रधानमंत्री शेख हसीना बार बार संयुक्त राष्ट्र एवं अन्य अंतरराष्ट्रीय साझेदारों से कह चुकी हैं कि उनका प्रशासन शरणार्थियों को अन्यत्र ले जाने का निर्णय लेने से पहले उनसे संपर्क करेगा और किसी भी शरणार्थी के साथ इसके लिए जबर्दस्ती नहीं की जाएगी। भारत भी इस समस्या में उलझा है। बांग्लादेश से रोहिंग्या शरणार्थी असम और पश्चिम बंगाल में ज्यादा आये हैं लेकिन जब दोनों देशों के बीछ मैत्री की ट्रेन चलने जा रही है तो समस्याएं भी सुलझ जाएंगी। (हिफी)

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