सरकारों पर साधा निशाना- पेटेंट को लेकर वित्त मंत्री का सही कदम
नई दिल्ली। पेटेंट एक ऐसा कानूनी अधिकार है जो किसी व्यक्ति या संस्था को किसी विशेष उत्पाद, खोज, डिजाईन, प्रक्रिया या सेवा के ऊपर एकाधिकार देता है।
केन्द्र सरकार पेटेंट के लिए समय सीमा कम करने का प्रयास कर रही है। यह जरूरी है क्योंकि पेटेंट के लिए आवेदनों की संख्या जिस प्रकार बढ़ रही है, उससे कई आवेदन लटके पड़े हैं। पेटेंट का स्टार्टअप से भी सीधा संबंध है। इसलिए पेटेंट की स्वीकृति जितनी जल्दी हो सके, यही अच्छा होगा।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसे साल भर के भीतर करने का इरादा जताया है। इसी तरह वित्तमंत्री ने जीएसटी को भी सरल करने का प्रयास किया है लेकिन राज्य सरकारों ने जीएसटी को लेकर हो रहे घाटे पर मुआवजे की मांग कर रखी है। इससे जीएसटी की संरचना में सरलता की जगह गतिरोध पैदा हो सकता है। गैर भाजपा शासित राज्य सरकारों को विशेष रूप से जीएसटी को लेकर शिकायत रहती हैं। तमिलनाडु और बिहार भी इसी प्रकार की अपेक्षा कर रहे हैं। देश की अर्थ व्यवस्था को गति देने के लिए पेटेंट को कम समय में मंजूरी और जीएसटी को सरल बनाना समय की मांग लगती है। जीएसटी को 1 जुलाई 2017 से लागू किया गया था। इसके बाद इसमें कई संशोधन भी हुए हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि केंद्र सरकार पेटेंट के लिए दाखिल आवेदनों को मंजूरी देने का समय और कम करने के प्रयास कर रही है, जिसे पहले ही 72 महीनों से घटाकर 12 से 24 महीने किया जा चुका है। उन्होंने एक समारोह में कहा कि पेटेंट के लिए घरेलू आवेदन बढ़ रहे हैं और 2021 में कुल 58,502 आवेदन किए गए, जबकि 28,391 को मंजूरी दी गई। सीतारमण के हवाले से एक विज्ञप्ति में कहा गया, "2016 में जब स्टार्ट-अप नीति की घोषणा की गई थी, तो बहुत सारी नीतियां लाई गईं ताकि स्टार्ट-अप को पेटेंट आवेदन में सहायता मिल सके। 2016 में पेटेंट को मंजूरी देने का समय 72 महीने था। दिसंबर 2020 तक के जो आखिरी आंकड़े मेरे पास हैं, उनके अनुसार मंजूरी का समय घटकर 12 महीने हो गया है। कुछ मामलों में यह 24 महीने है। हम इसे और कम करने की कोशिश कर रहे हैं।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जीएसटी को लेकर विपक्षी दलों की राज्य सरकारों पर निशाना साधा है। सीतारमण ने कहा कि कई गैर बीजेपी राज्य केंद्र पर माल और सेवा कर से होने वाले नुकसान के लिए मुआवजे को जारी रखने का दबाव बना रहे हैं। ऐसा करके वह जीएसटी की संरचना को और सरल बनाने के प्रयासों में गतिरोध पैदा कर रहे हैं। यह दशकों में सबसे महत्वपूर्ण कर सुधार के लिए अब तक की सबसे बड़ी चुनौती है।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने जीएसटी परिषद के फैसलों को बाध्यकारी नहीं होने के फैसले के बाद राज्यों को संघीय प्रशासन का सामना करने के लिए प्रोत्साहित किया था। यदि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता वाली परिषद सहमत नहीं होती है, तो राज्य अन्य करों के साथ एकतरफा राजस्व बढ़ा सकते हैं, जो पूरे देश में इस तरह के कर्तव्यों को मानकीकृत करने के लिए एक फैसले के खिलाफ जाता है। इस मामले में छत्तीसगढ़ के टीएस सिंह देव ने कहा, यह केंद्र और राज्यों के बीच अहंकार का झगड़ा नहीं है। विचार राजस्व में वृद्धि सुनिश्चित करना है और यदि यह परिषद के माध्यम से नहीं होता है तो इसे अन्य तरीकों से करना होगा।
तमिलनाडु और बिहार के वरिष्ठ सरकारी सचिवों ने टिप्पणी के लिए ईमेल किए गए अनुरोधों का जवाब नहीं दिया। वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता ने तुरंत कोई जवाब नहीं दिया। राज्यों की मांगों को पूरा करना ऐसे समय में वित्त को जटिल बना सकता है, जब एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बढ़ती कीमतों से जूझ रही है क्योंकि महामारी से प्रेरित मंदी के बाद वसूली गति पकड़ रही है। पेटेंट एक ऐसा कानूनी अधिकार है जो किसी व्यक्ति या संस्था को किसी विशेष उत्पाद, खोज, डिजाईन, प्रक्रिया या सेवा के ऊपर एकाधिकार देता है। पेटेंट प्राप्त करने वाले व्यक्ति के अलावा यदि कोई और व्यक्ति या संस्था इनका उपयोग (बिना पेटेंट धारक की अनुमति के) करता है तो ऐसा करना कानूनन अपराध माना जाता है। भारतीय पेटेंट कार्यालय को पेटेंट, डिजाइन और ट्रेड मार्क्स (सीजीपीडीटीएम) के नियंत्रक जनरल के कार्यालय द्वारा प्रशासित किया जाता है। इसका मुख्यालय कोलकाता में है और यह वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आदेशानुसार काम करता है। पेटेंट एक अधिकार है जो किसी व्यक्ति या संस्था को किसी बिल्कुल नई सेवा,तकनीकी, प्रक्रिया, उत्पाद या डिजाइन के लिए प्रदान किया जाता है ताकि कोई उनकी नकल नहीं तैयार कर सके। दूसरे शब्दों में पेटेंट एक ऐसा कानूनी अधिकार है जिसके मिलने के बाद यदि कोई व्यक्ति या संस्था किसी उत्पाद को खोजती या बनाती है तो उस उत्पाद को बनाने का एकाधिकार प्राप्त कर लेती है। यदि पेटेंट धारक के अलावा कोई और व्यक्ति या संस्था इसी उत्पाद को बनाती है तो यह गैरकानूनी होगा और यदि पेटेंट धारक ने इसके खिलाफ शिकायत दर्ज करा दी तो पेटेंट का उल्लंघन करने वाला कानूनी मुश्किल में पड़ जायेगा। यदि कोई इस उत्पाद को बनाना चाहता है तो उसे पेटेंट धारक व्यक्ति या संस्था से इसकी अनुमति लेनी होगी और रॉयल्टी देनी होगी। इसका मतलब यह है कि कोई व्यक्ति या संस्था किसी उत्पाद की हूबहू नकल का उत्पाद नही बना सकती है अर्थात दो उत्पादों की डिजाइन एक जैसी नही हो सकती है। यह अंतर उत्पाद की पैकिंग,नाम, रंग, आकार और स्वाद आदि का होता है। मथुरा के पेडे, आगरा का पेठा, दार्जिलिंग चाय, बनारस और कांजीवरम की साड़ी भारत में इन्ही नामों से बहुत प्रसिद्ध है और हर दुकानदार इन्ही नामों के साथ अपने उत्पादों को बेचना चाहता है। इसे भौगोलिक संकेत टैग कहा जाता है। भारत में अब तक लगभग 361 प्रोडक्ट्स को टैग मिल चुका है।
भौगोलिक संकेत एक नाम या निशान होता है जो किसी निश्चित क्षेत्र विशेष के उत्पाद, कृषि, प्राकृतिक और निर्मित उत्पाद (मिठाई, हस्तशिल्प और औद्योगिक सामान) को दिया जाने वाला एक स्पेशल टैग है। यह स्पेशल क्वालिटी और पहचान वाले उत्पाद जो किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले को दिया जाता है। जिस भी किसी क्षेत्र को यह टैग दिया जाता है उसके अलावा किसी और को इस नाम को इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं होती है। इस टैग को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन ऑफ गुड्स (रजिस्ट्रेशन और प्रोटेक्शन) एक्ट,1999 के तहत ज्योग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री के द्वारा दिया जाता है जो कि उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के द्वारा दिया जाता है। कश्मीरी केसर को टैग, ज्योग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री ने डायरेक्टरेट ऑफ एग्रीकल्चर,जम्मू कश्मीर सरकार को दिया है। टैग किसी उत्पाद को जीवन भर के लिए नहीं दिया जाता है। नियम के अनुसार यह 10 वर्ष के लिए दिया जाता है। इस अवधि के बाद इसे प्राप्त करने के लिए फिर से अप्लाई करना पड़ता है। इस प्रकार पेटेंट और टैग व्यापार के बेहतर भविष्य माने जाते हैं। (हिफी)