EVM बनाम बैलट पेपर

EVM बनाम बैलट पेपर

वाशिंगटन। आधुनिकतम तकनीकी अपनाने वाले अमेरिका में इसबार भी ईवीएम पर भरोसा नहीं है। कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए ईवीएम ज्यादा कारगर हो सकती थी।

दुनिया में कोरोना वायरस का इलाज और वैक्सीन आने में समय लग रहा है। तब तक लोगों को मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और अन्य रोकथाम के उपायों पर निर्भर रहना पड़ेगा। ऐसे में सरकारें सामाजिक उत्सवों पर लगाम कस सकती है, लेकिन क्या होगा जब यह उत्सव सरकार का ही हो जैसे कि चुनाव । यह परीक्षा हमारे देश को भी 28 अक्टूबर से बिहार में देनी है। वहां तीन चरणों में मतदान कराया जाएगा। इससे पहले लद्दाख में पर्वतीय विकास परिषद के चुनाव हुए हैं लेकिन वे चुनाव सीमित थे।अमेरिका में भी अगले महीने की शुरुआत में ही इस प्रकार का संकट आने वाला है क्योंकि आगामी 3 नवंबर को ही अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान है। चुनाव ईवीएम से नहीं बल्कि बैलेट पेपर से होने हैं। तकनीक में बेहद आधुनिक देश अमेरिका में वोट परंपरागत तरीके से यानी बैलेट बॉक्स से होता है। वे मशीन सिस्टम यानी ईवीएम पर कतई भरोसा नहीं करते।

कोरोना के खतरे को देखते हुए इस बार इस चुनाव में वोट डालना आसान नहीं होगा, यह अब निश्चित होता जा रहा है। लॉकडाउन के कारण इस बार बूथ कार्यकर्ताओं की कमी तो होगी ही, साथ ही बूथ पर कार्य करने वाले लोगों की कमी भी होना तय है। यह चुनाव प्रबंधन के लिए मुश्किलें तो खड़ी करेगा ही, लोगों को भी वोट डालने के लिए परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। अमेरिका में इस तरह के खतरों से बचने के लिए कई राज्यों ने वोटिंग पाबंदियों में ढील देने की बात कही है लेकिन इसके बाद भी लोगों के लिए वोट डालना इस बार कुछ मुश्किल काम हो सकता है। जॉर्जियों में हजारों मतदाताओं को शुरू में वोट डालने के लिए घंटों तक लाइन में लगना पड़ा था। इसमें पोलिंग बूथों की कम संख्या, बूथ में काम करने वालों की कमी, कम्प्यूटर में समस्या जैसी परेशानी भी शामिल थी। मेसैचुसैट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के एक सर्वे के मुताबिक गैर गोरे वोटर्स ने 2016 में वोट देने के लिए औसतन 16 मिनट तक इंतजार किया था, जबकि सफेद वोटर्स ने केवल 10 मिनट तक इंतजार किया था। इसके अलावा रोज ही वेतन वालों को कोई मुआवजा नहीं दिया गया जिन्हें वोट देने के लिए लंबे समय तक लाइन में लगना पड़ा। कोरोना काल में लाइन लगने के नए नियम होंगे और वह इंतजार बढ़ा सकते हैं।


इतना ही नहीं मतदाताओं के लिए वोट देने के लिए एक फॉर्म का प्रिंटआउट निकालना आवश्यक होना भी उन लोगों के लिए मुश्किलें पैदा करेगा जिनके पास प्रिंटर नहीं है। इसमें सभी गरीब मतदाता आ जाएंगे। इसी तरह से पेनसिलवानिया के स्टेट सुप्रीम कोर्ट ने यह नियम लागू किया है कि बिना गुप्त लिफाफे में जिसमें मतदाता की पहचान छुपाई गई हो, डाक से भेजे गए मत अवैध घोषित कर दिए जाएंगे। मतदान के लिए कम रह गए समय के लिहाज से यह फैसला एक और परेशानी का कारण हो सकता है। इसके अलावा वोटर आईडी का आवश्यक होना और अन्य मतदान कानून भी कई मतदाताओं के लिए वोट डालने के लिए मुश्किलें पैदा कर सकते हैं लेकिन विशेषज्ञ इसे बड़ी समस्या नहीं मानते। उन्हें कोरोना के कारण बहुत सी बड़ी समस्याएं पैदा होने की आशंका दिख रही है।

इस सबके बावजूद अमेरिका मतदान के इस नये तरीके को क्यों नहीं अपनाता है, यह सवाल भारत में भी बीच बीच में उठता रहता है। बहुत पहले भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने ईवीएम पर सवाल उठाया था लेकिन 2014 के बाद भाजपा का सत्ता प्राप्त करने का ग्राफ जब ऊपर चढने लगा, तब से ईवीएम की निष्पक्षता पर सवाल गैरभाजपा दल ही लगाते हैं।

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (जिसे ईवीएम भी कहा जाता है) इलेक्ट्रॉनिक साधनों का प्रयोग करते हुए वोट डालने या वोटों की गिनती करने के कार्य को करने में सहायता करती है।ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) को दो यूनिटों से तैयार किया गया है- कंट्रोल यूनिट और बैलेट यूनिट। इन यूनिटों को केबल से एक दूसरे से जोड़ा जाता है। ईवीएम की कंट्रोल यूनिट पीठासीन अधिकारी या मतदान अधिकारी के पास रखी जाती है। बैलेटिंग यूनिट को मतदाताओं द्वारा मत डालने के लिए वोटिंग कंपार्टमेंट के भीतर रखा जाता है। ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि मतदान अधिकारी आपकी पहचान की पुष्टि कर सके। ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) के साथ, मतदान पत्र जारी करने के बजाय, मतदान अधिकारी बैलेट बटन को दबाएगा जिससे मतदाता अपना मत डाल सकता है। मशीन पर अभ्यर्थी के नाम और प्रतीकों की एक सूची उपलब्ध होगी जिसके बराबर में नीले बटन होंगे। मतदाता जिस अभ्यर्थी को वोट देना चाहते हैं। उनके नाम के बराबर में दिए बटन दबा सकते हैं।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 24 अक्टूबर सुबह वेस्ट पाम बीच में मतदान किया और इसके बाद संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने ट्रंप के नाम के एक व्यक्ति को वोट दिया है। वेस्ट पाम बीच, ट्रंप के निजी मार-ए-लेगो क्लब के समीप है। वह न्यूयार्क में मतदान किया करते थे लेकिन पिछले साल अपना निवास स्थान बदल कर फ्लोरिडा कर लिया था। ट्रंप ने जिस पुस्तकालय में बने मतदान केंद्र में मतदान किया, उसके बाहर काफी संख्या में उनके समर्थक एकत्र थे। वे लोग और चार साल के नारे लगा रहे थे। राष्ट्रपति ने मतदान करने के दौरान मास्क पहन रखा था लेकिन संवाददाताओं से बात करने के दौरान इसे उतार लिया। उन्होंने इसे बहुत सुरक्षित मतदान बताया। डेमोक्रेट उम्मीदवार जो बाइडेन ने अभी तक मतदान नहीं किया है और उनके तीन नवंबर को चुनाव के दिन डेलवेयर में अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने की संभावना है। डेलवेयर में फ्लोरिडा की तरह पहले मतदान की पेशकश नहीं की गई है। ध्यान रहे 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप ने फ्लोरिडा में 49.02 प्रतिशत मतों से जीत दर्ज की थी, जबकि उनकी तत्कालीन डेमोक्रेटिक प्रतिद्वंद्वी हिलेरी क्लिंटन 47.82 प्रतिशत मतों पर सिमट गई थीं। हालिया रियल क्लियर पॉलिटिक्स पोलिंग औसत के अनुसार, डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बाइडन वर्तमान में फ्लोरिडा में ट्रंप से 1.4 प्रतिशत अंक या 48.2 प्रतिशत- 46.8 प्रतिशत की बढ़त से आगे चल रहे हैं।

मतदान के बाद राष्ट्रपति तीनों राज्यों में रैलियां करेंगे। ट्रंप ने इन तीनों क्षेत्रों में साल 2016 में जीत दर्ज की थी। हिल न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार 27अक्टूबर को जारी हालिया रॉयटर्स इप्सोस ओपिनियन पोल के अनुसार, बाइडन 49 प्रतिशत पंजीकृत मतदाताओं के समर्थन के साथ आगे चल रहे हैं, जबकि ट्रंप को 45 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिला है।

दुनियाभर में सौ से ज्यादा देश हैं, जहां लोकतांत्रिक ढंग से नेताओं के चुनाव का दावा किया जाता है। हालांकि केवल 25 देश ही हैं, जो सरकार चुनने के लिए ईवीएम यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल करते हैं या फिर कर चुके हैं। वोटों की गिनती के लिए भारत में प्रचलित ये शैली ढाई सौ साल पुराने लोकतंत्र यानी अमेरिका जैसे विकसित देशों में लोकप्रिय नहीं है। वे वोटिंग के लिए इलेक्ट्रॉनिक जरिया चुनने की बजाए बैलेट पेपर का इस्तेमाल करते हैं। अमेरिकी नागरिक को इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम पर उतना भरोसा नहीं अगर बात वोटिंग जैसी महत्वपूर्ण हो। हर बात पर इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम पर भरोसा करने वाले अमेरिकी नागरिक मानते हैं कि ईवीएम हैक किया जा सकता है और पेपर बैलेट ज्यादा भरोसेमंद है, जिसमें उनका वोट वहीं जाता है, जहां वे डालना चाहते हैं। (अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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