चीन भी कर रहा है डिप्लोमेसी

चीन भी कर रहा है डिप्लोमेसी

नई दिल्ली रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कहते हैं कि चीन से निपटने के लिए सेना को पूरी छूट दे दी गयी है लेकिन कूटनीति की लड़ाई सेना नहीं लड सकती है। वर्तमान में सवाल मौजू है कि क्या हम चीन के बारे में गफलत में रहे ? हमने उसके विश्वासघात को सन् 1962 में देखा था। इसके बाद भी चीन लगातार इस तरह से रणनीति बनाता रहा जिससे छोटे छोटे कई देश आर्थिक रूप से उसके गुलाम हो गये। हमारे देश के आसपास भी चीन अपना ऐसा ही जाल बुनता चला गया। खांटी समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडिस ने यह चेतावनी बहुत पहले दी थी कि हमारा दुश्मन नम्बर एक पाकिस्तान नहीं बल्कि चीन है। उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया गया। इसी बात को समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने भी कई बार कहा है। अभी कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि चीन को हम तीन मोर्चों पर मात देंगे। पीएम मोदी ने कहा कि लद्दाख की गलवान घाटी में भारतीय सेना के 20 जवानों की शहादत का बदला तीन मोर्चों पर लेने की तैयारी है। सैन्य मोर्चा, कूटनीतिक मोर्चा और आर्थिक मोर्चा। अपनी बात को स्पष्ट करते हुए मोदी ने कहा था कि जहां तक सैन्य मोर्चे का सवाल है तो चीन से लगी सीमा पर भारतीय सैनिक दुश्मनों को जवाब देने के लिए तैयार हैं। कूटनीतिक मोर्चे पर भारत को हर उस देश का समर्थन मिल रहा है जो चीन के अतिक्रमणकारी नीति से परेशान है और आर्थिक मोर्चे पर देश के 135 करोड़ लोग अब भारतीय बाजार से चीन को भगाने के लिए मुहिम छेड़ चुके हैं। भारत की यह रणनीति तो ठीक है लेकिन दुश्मन को कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए, खासतौर पर तब, जब सामने चीन जैसा महाधूर्त देश हो।

चीन गलवान घाटी को अपना बता रहा है। भारत से कहता है कि उसे तीन मोर्चों पर लड़ना होगा- नेपाल, पाकिस्तान और चीन से। इसके साथ ही भारत के पड़ोसी बांग्लादेश पर भी चीन डोरे डाल रहा है। इसलिए भारत के लिए सतर्क रहने की जरूरत है।लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन की हिंसक झड़प को लेकर भारतीय विदेश मंत्रालय ने बयान जारी किया है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि गलवान घाटी क्षेत्र के संबंध में स्थिति ऐतिहासिक रूप से स्पष्ट है। लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल के संबंध में अतिशयोक्तिपूर्ण और अटपटे दावों को स्वीकार करने के लिए चीनी पक्ष के प्रयास अब स्वीकार्य नहीं हैं। ये दावे चीन की अपनी पिछली स्थिति के अनुसार नहीं हैं। गलवान घाटी क्षेत्र की घटनाओं पर चीनी प्रवक्ता के 19 जून के बयान पर विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारतीय सैनिक गलवान घाटी सहित भारत-चीन सीमा के सभी क्षेत्रों में एलएसी से पूरी तरह परिचित हैं। वे इसका सावधानीपूर्वक पालन करते हैं, जैसा कि वे किसी और क्षेत्र में करते हैं। विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारतीय पक्ष ने कभी भी एलएसी पर कोई कार्रवाई नहीं की। वास्तव में, वे बिना किसी घटना के लंबे समय से इस क्षेत्र में गश्त कर रहे हैं। भारत द्वारा निर्मित सभी बुनियादी ढांचे स्वाभाविक रूप से एलएसी में भारत के हिस्से में हैं।

इस प्रकार चीन के एक सवाल का जवाब तो भारत ने दे दिया है लेकिन बांग्लादेश को लेकर चीन के कूटनय का भी जवाब देना है। चीन ने बांग्लादेश को बड़ी राहत देते हुए उसके 97 फीसद उत्पादों को सीमा शुल्क से मुक्त कर दिया है। चीनी टैरिफ कमीशन के फैसलों के हवाले से खबरों में कहा गया है कि इस घोषणा के बाद कुल 8256 बांग्लादेशी प्रोडक्ट शुल्क मुक्त हो जाएंगे। अस्ल में, इससे पहले एशिया पैसिफिक व्यापार समझौते (आप्टा) के तहत 3095 बांग्लादेशी प्रोडक्ट चीन के बाजारों के लिए ड्यूटी फ्री थे। चीन के 97 फीसद प्रोडक्ट संबंधी फैसले के बाद और 5161 प्रोडक्ट ड्यूटी फ्री हो जाएंगे। कोविड 19 का प्रभाव कई देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। बांग्लादेश इनमें से एक है। ऐसे में बांग्लादेश की मदद करने के कदम को चीन का एक बड़ा पैंतरा माना जा रहा है। सिर्फ बांग्लादेश ही नहीं बल्कि अन्य कुछ और देशों को भी चीन इस तरह लुभाने की कोशिश कर सकता है। दुनिया भर में कोविड 19 को लेकर उसके खिलाफ अमेरिका और उसके समर्थक जो जाल बुन रहे हैं, उसके खिलाफ यह चीन की लामबंदी हो सकती है।

बीती 15 जून को सीमा पर बने चीनी खेमे ने भारतीय सैन्य दल पर हमला किया, जिसमें 20 जवान शहीद हुए। इसके अगले ही दिन चीन ने बांग्लादेश के साथ व्यापारिक रिश्ते मजबूत करते हुए 5000 से ज्यादा आइटमों पर सीमा शुल्क (टैरिफ) न लेने की बात कहकर बांग्लादेश का दिल जीत लिया। केवल एक व्यापारिक फैसले के तौर पर नहीं बल्कि चीन की इस चाल को रणनीतिक महत्व के कदम के तौर पर भी देखना जरूरी है।

यही स्थिति नेपाल की है। बरसों से नहीं बल्कि करीब दो सदियों से भारत के साथ दोस्ताना संबंध रखने वाले नेपाल ने हाल ही नया नक्शा जारी कर उन इलाकों को अपनी सीमा में बताया, जो भारत की सीमा में रहे हैं। इस मामले मे भी राजनीतिक जानकारों का मानना है कि नेपाल ने यह भारत विरोधी कदम चीन के इशारे पर उठाया। अब भारत के एक और पड़ोसी बांग्लादेश को चीन लालच देकर अपना हिमायती बनाने की चाल चल रहा है। हाल ही भारत ने कहा था कि वह झुकने वाला नहीं है और 1962 की तरह अब वह कमजोर भी नहीं है। यह ताकत भारत की भौगोलिक स्थितियों के कारण है या अन्तर राष्ट्रीय संबंधों के कारण? सवाल है कि चीन के साथ युद्ध के हालात में भारत के साथ कौन से देश दोस्ती निभा सकते हैं और चीन के साथ कौन देश खड़े होंगें । साल 1962 के युद्ध के समय चीन ने जीत की स्थिति में युद्धविराम घोषित किया था। इसी पारंपरिक आधार पर समझा जाता है कि भारत के खिलाफ चीन का पलड़ा भारी है लेकिन अमेरिका के बॉस्टन और वॉशिंग्टन में हुए ताजा अध्ययन की मानें तो पहाड़ी इलाकों की भौगोलिक स्थितियों में भारत बेहतर स्थिति में है. यानी हाल ही जहां संघर्ष हुआ, वहां भी भारत की भौगोलिक स्थिति मजबूत है लेकिन, यहां मुद्दे की बात अंतरराष्ट्रीय संबंधों की है। युद्ध दो देशों के बीच जरूर होगा, लेकिन दो देश अकेले अकेले नहीं लड़ेंगे। दुनिया के कई देश इन दोनों में से किसी एक का साथ देंगे। ऐसे में कौन किस पर भारी पड़ेगा, इसे समझना महत्वपूर्ण है।

हाल के कुछ सालों में भारत और अमेरिका सैन्य लिहाज से और नजदीक आए हैं। वॉशिंग्टन ने तो यहां तक कहा कि भारत उसका प्रमुख रक्षा साथी है और दोनों देशों के बीच कई स्तरों पर आपसी रक्षा संबंध हुए हैं ,इसलिए चीन के साथ हिमालय के क्षेत्र में युद्ध की स्थिति में अमेरिका इंटेलिजेंस और निगरानी के तौर पर भारत को युद्धभूमि के स्पष्ट ब्योरे देकर मदद कर सकता है।अमेरिका के अलावा, जापान, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत संयुक्त सैन्य अभ्यास कर चुका है। पाकिस्तान और रूस को चीन का रणनीतिक साथी माना जा रहा है लेकिन रूस अब तक तटस्थ रहा है। इस बार वह चीन का साथ दे सकता है या नहीं, इसे लेकर अब तक भी संशय ही है। इसके अलावा, उत्तर कोरिया और मिडिल ईस्ट के किसी देश का साथ चीन को मिलने के भी कयास लगाए जा रहे हैं। कोविड 19 महामारी के समय में अमेरिका ने चीन के खिलाफ कोरोना वायरस को चीनी वायरस कहकर एक वितंडावाद खड़ा किया है कि वैश्विक महामारी के लिए चीन जिम्मेदार है। ऐसे में अमेरिका के सहयोगी कई देश चीन के खिलाफ हैं।

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने मई के आखिर में एक नए अंतर्राष्ट्रीय मंच डी10 का आइडिया उछाला, जो अस्ल में 10 लोकतांत्रिक शक्तियों का गठबंधन होगा। ताजा खबर के मुताबिक इस गठबंधन में जी 7 के सात देश कैनेडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूके और अमेरिका तो शामिल होंगे ही, साथ में भारत, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया भी इसका हिस्सा होंगे। इस गठबंधन का मकसद पूरी तरह से साझा लाभ और चीन के खिलाफ रणनीतिक एकजुटता बताया जा रहा है। पीएम मोदी से यही अपेक्षा है कि भारत इस प्रस्ताव को ठुकराएगा नहीं, बल्कि इसमें सभी देशों से सैन्य सहयोग की संभावना भी ढूंढ़ सकता है। आपदा में अवसर की बात मोदी कह ही रहे हैं।

~ अशोक त्रिपाठी (हिफी)

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