फारूक व महबूबा की शर्मनाक जिद

फारूक व महबूबा की शर्मनाक जिद

नई दिल्ली। हमें इस बात की परवाह भी नहीं है कि चीन और पाकिस्तान क्या बोलते हैं लेकिन हमारे कश्मीर में मुख्यमंत्री जैसे पद पर रह चुके डाॅ फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ऐसा कुछ न बोलें जिससे जम्मू कश्मीर में अशांति पैदा हो। महबूबा मुफ्ती को लम्बे समय तक इसीलिए नजरबंद रखना पड़ा था लेकिन नजरबंदी खत्म होते ही उन्होंने अनुच्छेद 370 और धारा 35-ए का राग छेड़ दिया है। इस प्रकार की जिद देश के लिए चिंता उत्पन्न करती है।

जिद अच्छी भी होती है और बुरी भी। हम समाजसेवा की जिद पकड़ लें तो महात्मा गांधी भी बन सकते हैं और कैकेयी की तरह जिद पकड़ लें तो अयोध्या उजाड़ हो जाएगी। जम्मू कश्मीर को लेकर हमारा पडोसी देश पाकिस्तान दुनिया भर में हायतौबा मचाया करता है। उसे अपने देश के मुहाजिर, वाल्टिस्तान के आंदोलन करते लोग और वे अल्पसंख्यक सिंधी नहीं दिखाई पड़ते जिनकी बेटियों को अगवा करके नाम और धर्म बदलवा कर निकाह कराया जाता है। पाकिस्तान को शह मिलती है पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे लोगों से, जो मंथरा की तरह जिद पकड़े हैं कि जम्मू कश्मीर में धारा 370 बहाल करवाकर ही दम लेंगे। फारूक अब्दुल्ला तो इसके लिए चीन तक की मदद लेने को तैयार हैं। चीन को भारत में जगह जगह अपना भू क्षेत्र दिखाई पड़ रहा है। अभी कुछ दिन पहले ही उसने कहा था कि भारत ने लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश घोषित किया है, इसकी वह मान्यता नहीं देता। चीन को ताइवान और तिब्बत में किसने मान्यता दी है? बहरहाल, हमें इस बात की परवाह भी नहीं है कि चीन और पाकिस्तान क्या बोलते हैं लेकिन हमारे कश्मीर में मुख्यमंत्री जैसे पद पर रह चुके डाॅ. फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ऐसा कुछ न बोलें जिससे जम्मू कश्मीर में अशांति पैदा हो। महबूबा मुफ्ती को लम्बे समय तक इसीलिए नजरबंद रखना पड़ा था लेकिन नजरबंदी खत्म होते ही उन्होंने अनुच्छेद 370 और धारा 35-ए का राग छेड़ दिया है। इस प्रकार की जिद देश के लिए चिंता उत्पन्न करती है।

जम्मू-कश्मीर की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रमुख और राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को 14 महीने नजरबंद रखने के बाद रिहा कर दिया गया है। नजरबंदी से छूटते ही महबूबा ने 1 मिनट 23 सेकेंड का एक ऑडियो संदेश जारी किया। इसमें उन्होंने आर्टिकल 370 को लेकर कहा कि उस काले दिन का काला फैसला उनके दिमाग में खटकता रहा है। महबूबा मुफ्ती ने कहा, एक साल से ज्यादा समय तक हिरासत में रहने के बाद मुझे रिहा कर दिया गया है। उस काले दिन का काला फैसला मेरे दिल और रुह पर हर पल वार करता रहा। मुझे यकीन है कि ऐसी ही स्थिति जम्मू-कश्मीर के लोगों की रही होगी। अनुच्छेद-370 की बहाली के लिए संघर्ष होगा। जम्मू-कश्मीर प्रशासन के प्रवक्ता रोहित कंसल ने 13 अक्टूबर को महबूबा मुफ्ती की रिहाई की जानकारी दी थी। मुफ्ती को पिछले साल 5 अगस्त को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने के एक दिन पहले हिरासत में लिया गया था। रिहाई के बाद महबूबा मुफ्ती के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से उनकी बेटी इल्तिजा मुफ्ती ने ट्वीट किया- जैसे कि श्रीमती मुफ्ती की अवैध हिरासत समाप्त हो गई है, मैं उन सभी को धन्यवाद देना चाहूंगी जिन्होंने इन कठिन समय में मेरा समर्थन किया। मैं आप सभी का आभार मानती हूं। अब मैं इल्तिजा आपसे विदा लेती हूं। अल्लाह आपकी रक्षा करें। महबूबा मुफ्ती को हिरासत में लिए जाने के बाद 20 सितंबर 2019 से इल्तिजा ही उनके ट्विटर अकाउंट से ट्वीट कर रही थीं। पिछले करीब एक साल से भी ज्यादा समय से नजरबंद महबूबा मुफ्ती की रिहाई की मांग को लेकर उनकी बेटी इल्तिजा ने सुप्रीम कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया था जिस पर 29 सितंबर को सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने केंद्र से पूछा था कि केंद्र जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को कितने समय तक और किस आदेश से हिरासत में रखना चाहता है। अदालत ने केंद्र की ओर से अदालत में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा द्वारा दायर संशोधित आवेदन पर एक हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करने के लिए कहा था।

केंद्र सरकार ने पिछले साल 5 अगस्त को जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा वापस लेने से पहले नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और कई स्थानीय पार्टियों के नेताओं को हिरासत में लिया था, जिन्हें समय-समय पर शर्तों के साथ रिहा भी कर दिया गया। सरकार ने जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला को भी पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत हिरासत में लिया था। इस साल 13 मार्च को फारूक अब्दुल्ला और 24 मार्च को उमर अब्दुल्ला को रिहा कर दिया गया था। हालांकि महबूबा मुफ्ती की हिरासत की अवधि को लगातार बढ़ाया जा रहा था। जम्मू कश्मीर प्रशासन ने 31 जुलाई को मुफ्ती का डिटेन्शन पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) के तहत और तीन महीने के लिए बढ़ा दिया था। अब 13 अक्टूबर 2020 को उनकी नजरबंदी समाप्त कर दी गयी। अपेक्षा की जा रही थी कि पड़ोसी देश पाकिस्तान और वहां से प्रायोजित आतंकवाद से जुड़े लोगों ने जिस तरह कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रयोज्य करने के बाद राज्य में अशांति पैदा करने की कोशिशें कीं और कश्मीर की समझदार जनता ने उनको विफल कर दिया, उस माहौल को सुखद बनाने का प्रयास डॉ फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती भी करेंगी।

अफसोस, ऐसा नहीं हुआ। महबूबा मुफ्ती की जिद के बारे में संक्षिप्त चर्चा कर चुके, अब डाॅ. फारूक अब्दुल्ला जी का चीन प्रेम देख लीजिये। कहते हैं चीन ने अनुच्छेद 370 खत्म करने का विरोध किया था। अल्लाह करे उनकी ओर से भारत पर दबाव पड़े और अनुच्छेद 370 और धारा 35-ए को बहाल किया जा सके। वह कहते हैं कि 5 अगस्त 2019 को जो किया गया, वो ठीक नहीं किया गया। कश्मीर की आजादी के लिए युवकों ने हथियार उठाए हैं। डा फारूक अब्दुल्ला कहते हैं कि कश्मीर के लिए हुर्रियत के नेता एक हो जायं, यहां तक तो उनकी राजनीति चल सकती है लेकिन जब वह चीन की मदद लेने की बात कहते हैं तब लगभग एक हजार साल पहले के राजा जयचंद की याद आ जाती है। डाॅ. फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती यह बात अच्छी तरह से समझ लें कि भारत अब ऐसी गलती नहीं दोहराएगा। (अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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