बेरूत में 'धमाके' से गिरी सरकार

नई दिल्ली। लेबनान की राजधानी बेरूत में बीते दिनों हुए भीषण धमाके के बाद जनता के आक्रोश का सामना कर रही सरकार ने इस्तीफा दे दिया है। इस धमाके में दो सौ से ज्यादा लोग मारे गए थे और हजारों घायल हो गए थे। सरकार द्वारा बेरूत पोर्ट पर बरती गई लापरवाही की वजह से लेबनान की जनता प्रचंड गुस्से में है। जनता के गुस्से के आगे झुकते हुए लेबनान की पूरी कैबिनेट ने ही इस्तीफा दे दिया है। हालांकि कैबिनेट के 3 मंत्री पहले ही इस्तीफा दे चुके थे और संसद के 7 सदस्यों ने भी पद छोड़ दिया है लेकिन बेरूत धमाके के बाद ही पूरे शहर में प्रदर्शन शुरू हो गया था और लोग हिंसक हो रहे थे। प्रदर्शनकारी घटना की जिम्मेदारी मौजूदा सरकार पर डाल रहे थे और उसके इस्तीफे की मांग कर रहे थे। जनता का कहना था कि दो-चार इस्तीफे से कुछ नहीं होगा इसके लिए पूरी सरकार जिम्मेदार है और जनता के भारी दबाव को देखते हुए पूरी सरकार ने इस्तीफा दे दिया। सरकार ने यह फैसला तब लिया है जब लोग देश के नेताओं पर लापरवाही और भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे हैं। प्रदर्शनकारी लगातार तीसरे दिन सड़कों पर उतरे थे और पुलिस से उनकी झड़प हुई थी।
10 अगस्त को कैबिनेट मीटिंग के बाद हसन दियाब की पूरी सरकार ने इस्तीफा दे दिया है। लेबनान के प्रधानमंत्री हसन दियाब ने टेलीविजन पर प्रसारित अपने भाषण में सरकार के इस्तीफे का ऐलान किया। 10 अगस्त को देश के नाम संक्षिप्त संबोधन में दियाब ने कहा वह 'एक कदम पीछे' जा रहे हैं ताकि वह लेबनान की जनता के 'साथ खड़े होकर बदलाव की लड़ाई लड़ सकंे।' उन्होंने अपने संबोधन में कहा, ''मैं आज अपनी सरकार के इस्तीफे की घोषणा करता हूं। ईश्वर लेबनान की रक्षा करे।'' दियाब ने आगे कहा, ''आज हम जनता और उनकी मांगों पर ध्यान दे रहे हैं और इस त्रासदी के लिए जिम्मेदार लोगों को दोषी ठहराने की मांग को मान रहे हैं।'' लेबनान के राष्ट्रपति माइकल आउन ने सरकार का इस्तीफा मंजूर कर लिया है। हालांकि राष्ट्रपति ने हसन दियाब से नई सरकार के गठन तक पद पर बने रहने को कहा है। अब लेबनान की मौजूदा सरकार कार्यवाहक भूमिका में आ चुकी है और जब तक नई सरकार का गठन नहीं हो जाता है, इसकी यही भूमिका रहेगी। बता दें कि बेरूत पोर्ट पर लगी एक सामान्य आग से पोर्ट पर रखे 2750 टन अमोनियम नाईट्रेट में धमाकों की श्रृंखला शुरू हो गई। ब्लास्ट में 200 लोगों की मौत हो चुकी है और जबकि घायलों की संख्या 7,000 से अधिक हो गई है। धमाके में देश का मुख्य बंदरगाह पूरी तरह से नष्ट हो गया था और करीब तीन लाख लोग बेघर हो गए थे। धमाके से लगभग 10 से 15 अरब अमेरिकी डॉलर का नुकसान होने का अनुमान है। सरकारी अधिकारियों के अनुसार धमाके के सिलसिले में लगभग 20 लोगों को हिरासत में लिया गया है जिनमें लेबनान के सीमा-शुल्क विभाग का प्रमुख भी शामिल हैं। अधिकारियों ने बताया है कि इस संबंध में दो पूर्व कैबिनेट मंत्रियों समेत कई लोगों से पूछताछ की गई है। लेबनान में सरकार के प्रति आक्रोश बीते लंबे समय से उपज रहा था।
लेबनान पहले से ही आर्थिक संकट का सामना कर रहा था लेकिन बेरूत धमाके के बाद स्थिति और बिगड़ गई थी। 2019 में सरकार की व्हाट्सएप कॉल पर टैक्स लगाने की योजना के विरोध में बड़े स्तर पर प्रदर्शन हुए थे। कोरोना वायरस महामारी के चलते ये प्रदर्शन रुक गए थे लेकिन वित्तीय स्थिति बद से बदतर होती गई। इसके बाद हुए विस्फोट ने जनता के गुस्से की आग में घी डालने का काम किया। वहीं, सरकार के खिलाफ लचर रवैये और भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे थे। राजधानी बेरूत में हुए धमाकों के बाद लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। जांच में यह बात सामने आ रही है कि कई साल से वह विस्फोटक केमिकल, अमोनियम नाइट्रेट, बंदरगाह पर पड़ा था और कई चेतावनी जारी किए जाने के बावजूद इसकी अनदेखी की गई। कई मुद्दों को लेकर नाराज चल रहे लोगों ने बेरूत पोर्ट पर धमाकों से नाराज होकर आक्रामक विरोध प्रदर्शन किए थे। सरकारी मंत्रालयों पर पत्थरबाजी की गई और कई जगहों पर पुलिस से झड़प भी हुई।
पिछले साल भारी जन आंदोलन और सरकार गिराने के बाद हसन की सरकार आई थी लेकिन एक साल के अंदर ही यह भी गिर गई है। देश की बिगड़ती आर्थिक हालत और गिरती मुद्रा के कारण आम जनों को हो रही परेशानियों के चलते सितंबर 2019 में सैकड़ों लोग राजधानी बेरूत की सड़कों पर उतरे और अगले करीब डेढ़ महीने तक वहां ऐसे हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए जिनके चलते 29 अक्टूबर को ततकालीन पीएम हरीरी ने अपनी पूरी सरकार समेत इस्तीफा दे दिया था। 19 दिसंबर को हिजबुल्लाह ने समर्थन देकर एक अंजान से व्यक्ति हसन दियाब को देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए आगे किया, जिसे प्रदर्शनकारियों ने फौरन रद्द कर दिया लेकिन इसी साल 21 जनवरी को लेबनान में एक नई सरकार बनी। यह एक ही पार्टी की सरकार है, जिसमें हिजबुल्लाह और उनके सहयोगी शामिल हैं और जो संसद में भी बहुमत में थे।
लेबनान की जनता इस कद्र गुस्से में है कि हर कोई सरकार से नाराज नजर आ रहा है। लोगों के गुस्से के बीच अंतरराष्ट्रीय नेताओं ने देश में राजनीतिक सुधार का आग्रह किया है। फ्रांस ने लेबनान में नई सरकार के 'तीव्र गठन' का आग्रह किया है। इससे पहले 6 अगस्त को फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने लेबनान का दौरा किया और कहा कि आने वाले दिनों में सहायता के लिए फ्रांस अंतरराष्ट्रीय आपातकालीन राहत प्रयासों के लिए सम्मेलन आयोजित करेगा। उन्होंने वादा करते हुए कहा, 'लेबनान अकेला नहीं है।' साथ ही उन्होंने कहा कि देश को अरबों डॉलर के बेलआउट की सख्त जरूरत है और देश अक्टूबर से ही राजनीतिक संकट से घिरा हुआ है। उन्होंने कहा जब तक देश तत्काल सुधारों को लागू नहीं करता वह 'डूबता ही रहेगा।' माक्रों ने लेबनानी नेताओं के बारे में बोलते हुए कहा कि, ''उनकी जिम्मेदारी बहुत बड़ी है। आने वाले हफ्तों में लेबनान की जनता के साथ रिश्तों को नया आयाम देना होगा जिससे वह प्रगाढ़ हो सके।'' माक्रों धमाके के बाद लेबनान का दौरा करने वाले पहले विदेशी राष्ट्रपति हैं। लेबनान के लोगों में सरकार के प्रति नाराजगी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लेबनान के करीब 44,000 लोगों ने एक ऑनलाइन याचिका देकर 'फ्रांस को अगले 10 साल के लिए शासन करने का आग्रह किया गया है।' अवाज नाम की वेबसाइट पर धमाके के बाद लोगों ने 5 अगस्त ऑनलाइन याचिका डाली थी। आवाज एक सामुदायिक याचिका वेबसाइट है। याचिका में लिखा गया है, ''लेबनान के अधिकारियों ने साफ तौर पर देश को सुरक्षित और प्रबंधित करने में असमर्थता दिखाई है। विफल होता सिस्टम, भ्रष्टाचार, आतंकवाद के साथ देश अपनी अंतिम सांस तक पहुंच गया है। हम मानते हैं कि लेबनान को एक स्वच्छ और टिकाऊ शासन स्थापित करने के लिए फ्रांस के शासनादेश में होना चाहिए।'' कई लेबनानियों को लगता है कि यह धमाका सरकारी सिस्टम के सड़ जाने का सबूत है। 1975-1990 के गृहयुद्ध के बाद से लेबनान सबसे गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है और इस कारण लाखों लोग गरीबी में धकेले जा चुके हैं।
(नाजनींन -हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा))