नेपाल के बाद चीन का नया शिकार बनता बांग्लादेश!

नेपाल के बाद चीन का नया शिकार बनता बांग्लादेश!

नई दिल्ली। चीन नेपाल के बाद बांग्लादेश को भी भारत के विरुद्ध इस्तेमाल करने पर आमादा है। एक नई चाल चलते हुए वह पाक व बांग्लादेश में मैत्री कराने का प्रयास करा रहा है। बांग्लादेश ने भारत को चिढ़ाने के लिए राम मंदिर निर्माण पर अपनी आपत्ति व्यक्त की है।

अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का भूमि पूजन पांच अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करने जा रहे हैं। बांग्लादेश के राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान है कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के विपक्षियों को यह एक राजनीतिक अवसर प्रदान करेगा। बांग्लादेश के विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमेन ने मंदिर निर्माण की ओर इशारा करते हुए कहा कि दोनों ही देश आपसी रिश्तों को बर्बाद नहीं होने देना चाहेंगे. यही वजह है कि भारत को किसी भी ऐसे डेवलपमेंट से बचना चाहिए, जिससे बांग्लादेश के साथ घ्रिश्तों में दरार पैदा कर दे। हम इसका आपसी संबंधों पर असर नहीं पड़ने देंगे। हालांकि, हम यह भी अनुरोध करते हैं कि भारत ऐसी किसी भी गतिविधि को रोके जो हमारे बीच के सुंदर और गहरे रिश्तों में कोई दरार पैदा करने वाली हों. दोनों ही देशों को इस बात का ख्याल रखना जरूरी है और मैं यह कहना चाहता हूं कि दोनों ही देशों को इस दिशा में पहल करनी चाहिए ताकि किसी तरह के व्यवधान को रोका जा सके।

मोमेन की भाषा दम्भपूर्ण लगती है। आम मुस्लिम बंगाली समाज पाक की भांति कट्टर नहीं होता। तो उन्हें भारत की गतिविधियों से क्या मतलब हो सकता है। ध्यान रहे इससे पूर्व भारत सरकार के सीएए के निर्णय पर पिछले साल दिसंबर में बांग्लादेश की तरफ से कड़ी प्रतिक्रिया आई थी. बांग्लादेश के विदेश मंत्री अब्दुल मोमिन और गृह मंत्री असदुज्घ्जमान खघन ने अपना भारत दौरा रद्द भी कर दिया था। बताया जाता है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के बीच विगत हफ्ते बातचीत हुई है। पाकिस्तान के एक प्रमुख अखबार ने इमरान-हसीना के बीच बातचीत को दुर्लभ करार दिया है। उसने बताया है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश किस प्रकार नजदीक आ रहे हैं। ढाका में चीन के बढ़ते प्रभाव की वजह से पाकिस्तान के साथ उसकी नजदीकी बढ़ी है। दोनों देशों के बीच रिश्तों में सुधार को लेकर जो कारण गिनाए गए हैं उनमें भारत के संशोधित नागरिकता कानून का भी जिक्र किया गया है।

चीन और दक्षिण एशिया की राजनीति पर पकड़ रखने वाले विशेषज्ञों के अनुसार पाकिस्तान और बांग्लादेश की इस दोस्ती के पीछे चीन ही है। चीन पिछले कई सालों से भारत के पड़ोसी देशों को कर्ज और निवेश के जरिए अपना औपनिवेश बनाने में जुटा है। पाकिस्तान तो उसका सदाबहार मित्र है ही। विगत कुछ हफ्तों से नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों को भी अपने एजेंडे में शामिल करने के लिए उसने पूरा जोर लगा दिया है। इस बातचीत पर बांग्लादेश के विदेश मंत्री एके अब्दुल मेनन ने सफाई देते हुए कहा, उन्होंने (इमरान खान) कोविड-19 और बाढ़ की स्थिति पर बातचीत के लिए फोन किया। यह कुछ और नहीं, सामान्य शिष्टाचार बातचीत थी। यह अच्छा है यदि वे (पाकिस्तान) हमसे रिश्ते सुधार सके। परन्तु ही मेनन ने यह भी कहा कि मुक्ति युद्ध के दौरान पाकिस्तान द्वारा 30 लाख बांग्लादेशियों का नरसंहार और लाखों महिलाओं का बलात्कार को देश भूला नहीं है। 1971 मुक्ति युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने नरसंहार किया, लेकिन इसके लिए अभी तक माफी नहीं मांगी है। हम सभी के साथ दोस्ती रखना चाहते हैं, लेकिन यह कैसे संभव है यदि वह माफी नहीं मांग सकते हैं।

उल्लेखनीय है कि ढाका के साथ रिश्ते को सामान्य बनाने के लिए इस्लामाबाद जोर लगा रहा है। बांग्लादेश पाक व चीन के नए बनते गठबंधन में तड़का लगाने का काम भारत की घरेलू राजनीति भी कर रही है। नेपाल की भांति बांग्लादेश भी भारत से तीन तरफ से थल सीमा से जुड़ा हुआ है। पश्चिम बंगाल सरकार ने पिछले तीन महीने से सड़क मार्ग से दोनों देशों के बीच होने वाले व्यापार पर पाबंदी लगा दी थी. पश्चिम बंगाल सरकार ने अपने फैसले के पीछे कोरोना संक्रमण के प्रसार को रोकना एक वजह बताई थी। राज्य सरकार केन्द्र सरकार से कोविड-19 महामारी के दौरान दोनों देशों के व्यापार से जुड़ी एक अलग साॅप बनाने की माँग कर रही थी। तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा नेपाल से सामानों की आवाजाही पर रोक व घेराबंदी की याद उक्त प्रकरण दिलाता है जिसकी कड़वाहट नेपाल अभी तक नही भूला है। ध्यान रहे राम मंदिर निर्माण पर बांग्लादेश की प्रतिक्रिया का जिस भारतीय अखबार ने उल्लेख्य किया है, वह समाचारों को शरारती टच देते हुए तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत करने के लिए कुख्यात है, इसकी खबरें विश्वसनीय नहीं होती हैं। उदाहरणार्थ-चाबहाररेल परियोजना पर इसकी रिपोर्ट पर भारत सरकार की जमकर लानत-मलानत की गई। परन्तु जब ईरान सरकार ने असलियत बताई तो पता चला कि वास्तविकता प्रकाशित रिपोर्ट से कोसों दूर है। परन्तु इस अखबार ने माफी न मांगकर अपने कूट इरादे स्पष्ट कर दिए। बात करें, ममता दी कि, सवाल यह है कि बांग्लादेशी या रोहिंग्या मुसलमान के स्वागत में पलक-पांवड़े बिछाने में कोई कसर न छोड़ने वाली दी ने बांग्लादेश को उकसावा देकर बचकाना हरकत क्यों की? बताया जाता है कि भारत से बांग्लादेश के आवागमन पेट्रापोल-बेनापोल होता है जो भारत बांग्लादेश सीमा पर स्थिति है, लेकिन वाघा-अटारी बॉडर जैसा इलाका नहीं है. यहां रहने वालों की आबादी बहुत ज्यादा है. कुछ-कुछ नेपाल की सीमा से सटे बिहार के रक्सौल जैसी । बंगाल सरकार की आपत्ति के बाद लैंड पोर्ट अथोरिटी ऑफ इंडिया ने फिर दोनों देशों के व्यापार के लिए नया रास्ता ढूंढा-घोजाडांगा सीमा। लेकिन यहां से गौ तस्करी काफी होती है और ये इलाका पूरी तरह से व्यापार के लिए विकसित भी नहीं हैं। पश्चिम बंगाल सरकार ने वहाँ भी आपत्ति जताई जिसके बाद केन्द्र सरकार ने ट्रेन का रास्ता चुना।

ज्ञात हो 12 जुलाई को आंध्र प्रदेश के गुंटूर से भारत ने बांग्लादेश को पार्सल ट्रेन से सूखी मिर्च की पहली सप्लाई भेजी। फिर 18 जुलाई को महाराष्ट्र के नासिक से प्याज भर कर स्पेशल ट्रेन रवाना किया। 10 दिन बाद यानी 27 जुलाई को भारत ने एक बार पुनः 10 डीजल लोको बांग्लादेश भेजा। 10 लोकोमोटिव बांग्लादेश को देने के निर्णय को भारत के भारत के विदेश मंत्री एस जय शंकर नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी का हिस्सा बताते हैै।

ध्यान रहेे गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों के बलिदान पर पूरे विश्व से प्रतिक्रिया आई परन्तु बांग्लादेश ने चुप्पी साधे रखी। उक्त घटनाक्रम से पता चलता है कि बांग्लादेश के इरादे भारत के प्रति नेक नहीं हैं। नोकरशाही के भरोसे बैठने की बजाय भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद से सीधी वार्ता कर गलतफहमियां दूर कर लेना उचित रहेगा। इस काम के लिए पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की सहायता लेना भी समीचीन होगा। अन्यथा पाक के साथ बांग्लादेश की युति नेपाल की भांति भारी पड़ सकती है। (मानवेन्द्र नाथ पंकज-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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