न्यायिक व्यवस्था व प्रक्रिया में सुधार की जरूरत

न्यायिक व्यवस्था व प्रक्रिया में सुधार की जरूरत

लखनऊ। भारत के सभी न्यायालयों में लगभग 3 करोड़ मामले लंबित, वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर देश में प्रति 10 लाख लोगों पर केवल 18 न्यायाधीश, अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस को अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्याय दिवस के नाम से भी जाना जाता है। हर साल 17 जुलाई को पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस मनाया जाता है इस दिवस को मनाने का मुख्य कारण है अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न्याय की उभरती हुई प्रणाली को पहचानना। अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस लोगों को न्याय के समर्थन के लिए जागरूक और एकजुट करने के लिए मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य पीड़ितों को उनके अधिकारों के लिए बढ़ावा देना है। साथ ही गंभीर मुद्दों पर ध्यान देने के लिए दुनिया भर के लोगों को एकजुट करने और आकर्षित करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है। यह लोगों को कई गंभीर अपराधों से बचाने के लिए चेतावनी देता है। साथ ही जो लोग भी दुनिया में शांति और सुरक्षा को प्रभावित करते है उनके लिए ये एक बड़ी चेतावनी है।

अंतरराष्ट्रीय न्यायालय संयुक्त राष्ट्र का एक महत्वपूर्ण न्यायिक अंग है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना 1945 में हॉलैंड के शहर हेग में हुई थी। इसके बाद 1946 में इसने अपने काम शुरू कर दिए था। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के अनुसार इसका काम कानूनी विवादों का निपटारा करना है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी और फ्रेंच है। भारत सरकार ने भी कुलभूषण जाधव मामले में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था भारत का अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का मुख्य कारण पाकिस्तान द्वारा काउंसलर सेवा मुहैया कराने से इंकार करना था इतना ही नहीं पाकिस्तान सरकार ने कुलभूषण जाधव से जुड़े कानूनी दस्तावेज की कॉपी देने से इंकार कर दिया था साथ ही पाकिस्तान का कुलभूषण जाधव के परिवार को वीजा देने से इंकार कर दिया था इस लिए भारत सरकार को कुलभूषण जाधव मामले में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा।

अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस पर बात अगर भारत की बात करें तो अंग्रेजी की कहावत 'न्याय में देरी न्याय से वंचित होने के समान है' भारतीय संदर्भ में चरितार्थ होती है। हमारे देश में न्याय इतना विलंब से मिल पाता है कि वह अन्याय के बराबर ही होता है। छोटे-छोटे जमीन के टुकड़े को लेकर पचास-पचास साल मुकदमे चलते हैं। फौजदारी के मामलों में तो स्थिति और भी गंभीर है। अपराध में मिलने वाली सजा से ज्यादा तो लोग फैसला आने के पहले ही काट लेते हैं। यह सब केवल इसलिये होता है कि मुकदमों की सुनवाई और फैसले की गति बहुत धीमी है। भारत के सभी न्यायालयों में लगभग 3 करोड़ मामले लंबित है, इनमें से कई मामले लंबे समय से लंबित हैं। मामलों का लंबित होना पीड़ितों और ऐसे लोगों, जो किसी मामले के चलते जेल में कैद है किंतु उनको दोषी करार नहीं दिया गया है, दोनों के दृष्टिकोण से अन्याय को जन्म देता है। पीड़ितों के मामले में कुछ ऐसे संदर्भ भी रहे हैं जब आरोपी को दोषी ठहराए जाने में 30 वर्ष तक का समय लगा, हालांकि तब तक आरोपी की मृत्यु हो चुकी थी, तो वहीं दूसरी ओर भारत की जेलों में बहुत बड़ी संख्या में ऐसे विचाराधीन कैदी बंद है, जिनके मामले में अब तक निर्णय नहीं दिया जा सका है। कई बार ऐसी स्थिति भी आती है कई वर्ष जेल में रहने के बाद उसे न्यायालय से आरोप मुक्त कर दिया जाता है। इस स्थिति में यह कहना गलत नहीं होगा कि त्वरित सुधार किये जाने की आवश्यकता है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, उच्चतम न्यायालय में 58,700 तथा उच्च न्यायालयों में करीब 44 लाख और जिला अदालतों तथा निचली अदालतों में लगभग तीन करोड़ मुकदमे लंबित हैं। इन कुल लंबित मामलों में से 80 प्रतिशत से अधिक मामले जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में हैं। इसका मुख्य कारण भारत में न्यायालयों की कमी, न्यायाधीशों के स्वीकृत पदों का कम होना तथा पदों की रिक्त्तता का होना है। वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर देश में प्रति 10 लाख लोगों पर केवल 18 न्यायाधीश हैं। विधि आयोग की एक रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी कि प्रति 10 लाख जनसंख्या पर न्यायाधीशों की संख्या तकरीबन 50 होनी चाहिये। इस स्थिति तक पहुंचने के लिये पदों की संख्या बढ़ाकर तीन गुना करनी होगी।

भारत की न्याय प्रणाली विश्व की सबसे पुरानी प्रणालियों में से एक है, जो अंग्रेजों ने औपनिवेशिक शासन के दौरान बनाई थी। देश में कई स्तर की अदालतें मिलकर न्यायपालिका बनाती हैं। भारत की शीर्ष अदालत नई दिल्ली स्थित सर्वोच्च न्यायालय है और उसके तहत विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालय हैं। उच्च न्यायालयों के मातहत जिला अदालतें और उनकी अधीनस्थ अदालतें हैं, जिन्हें निचली अदालत कहा जाता है। इसके अलावा ट्रिब्यूनल, फास्ट ट्रैक कोर्ट, लोक अदालतें आदि मिलकर न्यायपालिका की रचना करते हैं। भारत में संविधान निर्माताओं ने शासन के तीनों अंगों- विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका को एक समान शक्तियां दी हैं। एक समान शक्तियां प्राप्त होने के बावजूद न्यायपालिका (सर्वोच्च न्यायालय) को ही संविधान का संरक्षक कहा गया है।

भारतीय न्याय व्यवस्था में भी कई त्रुटियां हैं इसकी एक बानगी तब देखने को मिली जब यह आवाज व्यवस्था के अंदर से आई। सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए जस्टिस दीपक गुप्ता ने अपने वर्चुअल विदाई समारोह का इस्तेमाल भारत की न्याय व्यवस्था की कमियों पर और उन्हें दूर करने के उपायों पर चर्चा शुरू करने के लिए किया। जस्टिस गुप्ता ने न्यायपालिका की चार दशक से भी ज्यादा सेवा की और इस दौरान बतौर जज उन्होंने कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए लेकिन अपने विदाई भाषण में उन्होंने अपनी जीवन यात्रा के बारे में बताने के साथ भारत की न्याय व्यवस्था को लेकर अपनी समीक्षा भी साझा की। जस्टिस गुप्ता के अनुसार देश का कानून और कानूनी प्रणाली अमीर और ताकतवर लोगों की तरफ झुके हुए हैं। उनका कहना है कि कोई अमीर और ताकतवर व्यक्ति अगर सलाखों के पीछे होता है तो वो कभी न कभी अपने मामले में सुनवाई को प्राथमिकता दिलवा ही लेता है और अगर वो बेल पर होता है तो वो सुनवाई को लटकता चला जाता है। उन्होंने कहा कि इसका खामियाजा गरीब वादी को उठाना पड़ता है क्योंकि वो इन अदालतों पर दबाव नहीं डलवा सकता और उसकी सुनवाई आगे खिसक जाती है। उन्होंने कहा कि अमीर और गरीब के इस संघर्ष में न्याय के तराजू के पलड़ों का हमेशा वंचितों की तरफ झुकाव होना चाहिए, तभी पलड़े बराबर हो पाएंगे। जस्टिस गुप्ता की इस बात को काफी सराहा गया है। जस्टिस गुप्ता की बातों से अंदाजा हो जाता है कि भारत में न्याय की क्या स्थिति है और न्याय प्रक्रिया कितनी जटिल है।

पुलिस, प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार, वकीलों की महंगी फीस, न्यायालयों में मुकदमों की संख्या व निर्णयों में विलंब के चलते न्याय पाना एक स्वप्न जैसा है। भारत में एक लोकोक्ति प्रचलित है कि मुकदमे में जीता हुआ व्यक्ति हारे हुए व्यक्ति के समान व हारा हुआ व्यक्ति मरे हुए व्यक्ति के समान हो जाता है। जाहिर है किसी भी लोकतांत्रिक देश में न्याय सस्ता, सरल व सुलभ होना चाहिए और राज्य को इसके लिए निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए ताकि न्याय प्रत्येक नागरिक तक पहुंचे और यह केवल अमीर और प्रभावशाली व्यक्तियों तक सिमटकर न रह जाए।

(नाज़नींन-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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