चीनी माल बाजार से कैसे होगा बाहर!

चीनी माल बाजार से कैसे होगा बाहर!

लखनऊ। भारत सरकार ने चीनी आयात को नियंत्रित करना शुरू कर दिया है। चायनीज एप टिकटाॅक पर रोक लगा दी गयी है। चीन की सहायता से बन रही परियोजनाओं पर पुनर्विचार हो रहा है। स्वदेश निर्मित माल के उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है।

चीनी माल के बहिष्कार की मांग हो रही है। परन्तु चीनी माल की पैठ देश में इतनी गहरी है जिसे एकदम हटाया नहीं जा सकता है। चीनी माल सस्ता है क्योंकि चीन में बड़े पैमाने पर बनाया जाता है, जिस कारण माल की अदद कीमत कम होती है। स्वदेशी निर्मित माल की कीमत अधिक होगी। चीन ने दुनिया भर के बाजार में कब्जा कर रखा है। सस्ता होने के कारण चीनी माल स्वदेशी माल को बाहर कर देता है। भारत में इलैक्ट्रोनिक व आटो स्पेयर पार्टस का उसका हिस्सा अधिक है। अगर चीनी माल का मोह छोड़ दिया जाय तो कीमतें उछाल पर आ जायेेगी। फार्मेसी दवाओं के मूल्य बढ़ जायेंगे। मोबाईल के 90 फीसदी पाट्र्स चीन से आते है। चीन भारत से कच्चा माल मंगाता है। खिलौने, मूर्तिया व भारत के धार्मिक महत्व की चीजें चीन से आ रही है। चीनी माल पर लोग टूट पड़ते हैं।

भारत में टीवी का व्यापार 25 हजार करोड रूपये है। इसमें 12 हजार करोड़ रूपये चीन का हिस्सा है। भारत में चीन का निर्यात 15 अरब डालर का था लेकिन 62 अरब डालर का सामान आयात किया जाता है। भारत ने आक्रामक चीन को सबक सिखाने के लिए चीन को आर्थिक क्षेत्र में पटकने की तैयारी कर ली है पर डगर मुश्किल जरूर है। चीन का माल सस्ता होता है लेकिन घटिया होता है। अगर स्वदेशी स्तर पर कमर कस ली जाये तो चीन पर हम निर्भर नहीं रहेंगे। चीन की जितनी परियोजनायें भारत में चल रही हैं। उन पर पुनर्विचार हो रहा है। कई परियोजनाओं पर कार्य स्थगित हो गया है। चीन ने कई राज्यों में करोड़ों का निवेश किया है। कई कंपनियो पर बंदी की तलवार लटक जायेगी और बेरोजगारी बढ़ जायेगी।

चीन व्यापार के मामले में चालाक प्रकृति का है। वह दुनिया का ऐसा मुल्क है जो वक्त की नजाकत को पहचानता है। वह लोगों की जरूरत के अनुसार माल तैयार कर मुनाफा कमाता है। कोरोना ने चीन की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया है जिसकी क्षतिपूर्ति पर अपनी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने में लगा है। भारत से भौगोलिक निकटता का उसे लाभ मिल रहा है। खाद्य पदार्थो, फास्टफूड, जोमेटो पर चीन का साम्राज्य है जिसने घर-घर में घुसपैठ कर ली है। चीनी निवेशकों ने भारतीय कंपनियों में चार अरब डालर का निवेश किया है।

वर्ष 2018 में भारत ने चीन से 78.81 अरब डालर का आयात किया था जबकि चीन से 18.83 अरब डालर का निर्यात किया था। पिछले साल जनवरी से नवंबर तक चीन से 68 अरब डालर का आयात किया था। भारत का निर्यात 16.32 अरब डालर था। भारत को चीन फेब्रिक मेटल, स्टोन जैसी हल्की चीजें भेजता था। चीन का भारत में इलैक्ट्रोनिक चीजें न्यूक्लियर रियक्टर, मशीनों आदि का आयात होता है। इस प्रकार भारत व चीन आर्थिक रूप से एक दूसरे पर निर्भर है।

स्थानीय स्तर पर बाजार चीन की गिरफ्त में है। स्थानीय व्यापारी बताते हैं कि स्मार्ट फोन के बाजार में 70 फीसदी टेलीविजन में 45 फीसदी, स्मार्ट टेलीविजन में 42 फीसदी, होम एप्लाइंस में 12 फीसदी, आटोमोबाइल में 25फीसदी बाजार पर चीन का कब्जा है। ऊर्जा के क्षेत्र में 90 फीसदी कब्जा है। चीनी खिलौना, रेडिमेड कपड़ों, जूते, चप्पल, चीनी मेड ही बिकते हैं। कम्प्यूटर, लेपटोप के 90 फीसदी पाट्र्स चीन से आते हैं। चीनी स्पेयर पाट्र्स से बना सामान ''मेड इन इंडिया'' नाम से बिकता है। चीनी व्यापार का साम्राज्य तोड़ना कठिन है। व्यापारी बताते हैं कि स्वदेशी माल मंहगा है। ग्राहक चीनी माल छोड़ना चाहता है पर सस्ता होने के कारण चीन का माल ही खरीदता है क्योंकि स्वदेशी व चीनी माल में तिगुना अंतर है। व्यापारियों के पास चीनी सामान करोड़ों का है। उसे उन्हें बेचना है। स्वदेशी माल का बाजार तैयार होने पर ही चीनी माल का बिकना बंद होगा।

(बृजमोहन पन्त-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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