क्या नेपाल की गुस्ताख़ी को नजरअंदाज करना भारी पड़ेगा ?
नई दिल्ली। विगत महीने से नेपाल लगातार भारत के विरुद्ध आक्रामक रवैया अपनाए हुए है। गलवान घाटी में चीन के छलपूर्वक किए गर हमले, उसमें भारतीय सैनिकों के अद्भुत पराक्रम के बाद भी नेपाल भारत को लगातार उकसा रहा है। इससे पता चलता है कि चीन का कितना भी बड़ा नुकसान हो, वह घात-प्रतिघात से बाज नहीं आने वाला है। परन्तु प्रश्न यह है कि चीन द्वारा सीमा पर किए जा रहे लगातार बदलाव की खबरों को नजरअंदाज करने के बाद भारत वही गलती नेपाल में क्यों कर रहा है ? बताया जा रहा है कि जिन भारतीय क्षेत्रों को नेपाल ने भारत की चेतावनियों को नजर अंदाज करते हुए अपने नक्शे में शामिल किया, उसके निकट हेलीपैड बनाया जा रहा है, सेना तैनात की जा रही है, यहां तक कि पूरी भारतीय सीमा पर सेना की तैनाती की जा रही है। भारत, चीन व नेपाल की सीमा के निकट चीनी सैनिक नेपाली सेना की वर्दी में देखे गए हैं। ताजा घटनाक्रम में नेपाल की एक भूमिगत कम्युनिस्ट पार्टी ने नेपाली गोरखा सैनिकों से भारतीय सेना की ओर से चीन के विरुद्ध लड़ाई में भाग न लेने की अपील की है। उसका कहना है कि भारत ने गोरखा रेजिमेंट के नेपाली नागरिकों से अपील की है कि वे अपनी छुट्टियां रद्द करके ड्यूटी पर वापस आएं। इसका मतलब है कि भारत हमारे नेपाली नागरिकों को चीन के खिलाफ सेना में उतारना चाहता है गोरखा सैनिकों को भारत द्वारा तैनात किया जाना नेपाल की विदेश नीति के खिलाफ जाएगा। नेपाल एक स्वतंत्र देश है और एक देश की सेना में काम करने वाले युवा का इस्तेमाल दूसरे देश के खिलाफ नहीं किया जाना चाहिए। यह पार्टी यूं तो अंडरग्राउंड है लेकिन वामपंथियों के बीच इसे काफी समर्थन प्राप्त है। ज्ञात ही गोरखा सैनिकों का सेना में एक अलग ही महत्व है। गोरखा सैनिकों के बारे में यह माना जाता है कि पहाड़ों पर उनसे बेहतर लड़ाई कोई और नहीं लड़ सकता है। भारत ही नहीं ब्रिटेन में भी गोरखा सैनिक वहां की सेना में शामिल है। जबकि नेपाल के नागरिकता कानून में बदलाव किया जा रहा है। बदलाव के तहत जब कोई भारतीय लड़की नेपाली युवक से शादी करेगी तो उसे उसके साथ 7 साल लगातार रहने के बाद ही नेपाल की नागरिकता मिलेगी। नेपाल के गृहमंत्री राम बहादुर थापा ने ऐलान किया कि नागरिकता कानून में बदलाव का प्रस्ताव भारत को ध्यान में रखकर है। भारत भी विदेशी लड़कियों को किसी भारतीय से शादी के सात साल बाद ही नागरिकता देता है। हमारा प्रस्ताव भी इसी आधार पर है। ऐसा लगता है कि नेपाली मंत्री को भारतीय कानून की जानकारी नहीं है ।नेपाली गृहमंत्री राम बहादुर थापा ने दावा तो कर दिया कि भारत में नेपाल से बहू बनकर आने वाली बेटियों को 7 साल बाद नागरिकता दी जाती है। परन्तु वास्तविकता इसके एकदम विपरीत है। 7 साल बाद नागरिकता देने का नियम नेपाल से भारत आने वाली बहू पर लागू नहीं होता है।
नेपाल ने तीन दिन पहले ही भारत की आपत्ति को दरकिनार करते हुए विवादित नक्शे को कानूनी अमलीजामा पहनाया था। नेपाली संसद के उच्च सदन से संविधान संशोधन विधेयक को मंजूरी मिलने के बाद नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने हस्ताक्षर कर इसे संविधान का हिस्सा घोषित कर दिया। बता दें कि इस नए नक्शे में नेपाल ने लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को अपने क्षेत्र में दिखाया है। जानकारी मिल रही है कि नेपाली जनता में नेपाल सरकार के विरुद्ध आक्रोश उभर रहा है । मधेशी समुदाय चीन पर नेपाल की बढ़ती निर्भरता से चिंतित है। नागरिकता कानून में संशोधन के जरिए नेपाल सरकार तराई क्षेत्र में प्रभावी मधेशी समुदाय को सबक सिखाना चाह रही है। भारत से उनका रोटी-बेटी का नाता है। यह भी उल्लेखनीय है कि तीन भारतीय क्षेत्रों पर दावा करने के बाद अब नेपाल ने बिहार में पूर्वी चंपारण जिले के मोतिहारी के कुछ हिस्सों में अपना दावा ठोका है। दरअसल नेपाल ने जिले के ढाका ब्लॉक में लाल बकैया नदी पर तटबंध का निर्माण के काम को रूकवा दिया है। नेपाल ने दावा किया है कि निर्माण का कुछ हिस्सा उसके क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में है। 12 जून को नेपाल सशस्त्र पुलिस ने सीतामढ़ी जिले की सीमा के पास एक युवक की गोली मारकर हत्या कर दी और दो अन्य को घायल कर दिया था।
ज्ञात हो मई के प्रारम्भ में नेपाल में राजनीतिक संकट गहरा गया था और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने सार्वजनिक रूप से प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के त्यागपत्र की मांग प्रारम्भ कर दी थी। बताया जा रहा है कि इस संकट से बचने के लिए ओली ने चीन से गुहार लगाई थी, और उसी अहसान का बदला वह भारत के विरुद्ध चीन का एजेंडा लागू कर चुका रहे हैं।
सूत्र बताते हैं कि इस सारे घटनाक्रम में चीन की युवा राजदूत की भूमिका सामने आ रही है। कहा जा रहा है कि नेपाल में चीन की राजदूत होउ यानिकी ने ओली की सरकार को बचाने के लिए कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ कई बैठकें कीं और संकट को हल किया। इसके बदले में उसने चीन को निशाना बनाने वाले एक अंतरराष्ट्रीय आंदोलन के खिलाफ नेपाल का समर्थन भी मांगा था। अधिसंख्य राजनीतिक विश्लेषकों का विचार है कि भारत के साथ विवाद के पीछे नेपाल नहीं, बल्कि व्यक्तिगत रूप से ओली हैं जिन पर रिमोट कंट्रोल चीनी राजदूत का है। केपी शर्मा ओली ने नेपाल पर एकछत्र राज के लिए कई चालें चलीं. उन्होंने अपने करीबी विश्वासपात्र को राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठाया। जब माधव नेपाल और प्रचंड द्वारा पार्टी में उनके नेतृत्व का विरोध किया गया, तो ओली ने चीनी राजदूत से सहायता मांगी। उन्होंने माधव नेपाल और प्रचंड पर दबाव बनाकर ओली के रास्ते के कांटे साफ किये। यांगी पहले पाकिस्तान में तीन साल काम कर चुकी हैं। वहां पर उनके काम को देखते हुए उन्हें नेपाल में स्वतंत्र रूप से काम करने का मौका दिया गया। युवा यांगी का ओली के आवास और कार्यालय में बेरोक-टोक जाना-आना है।
यह भी माना जाता है कि चीन ने नेपाल की दो सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टियों के गठबंधन में अहम भूमिका निभाई। सन् 2018 में केपी शर्मा ओली और पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड ने नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के निर्माण के लिए हाथ मिलाया था। यहीं से नेपाल की राजनीति में नई दिल्ली के बजाय बीजिंग का प्रभाव बढ़ना शुरू हुआ। प्रश्न यह है क्या भारतीय विदेश मंत्रालय इन सारे घटनाक्रम पर नजर नहीं रख रही है? सेना के पराक्रम से राजनीतिक हाराकिरी को कब तक बर्दाश्त किया जाएगा?
(मानवेन्द्र नाथ पंकज-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)