महामारी के दौर में पढ़ाई बनी समस्या
नई दिल्ली। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जब आर्थिक पैकेज की घोषणा की थी, तो उसमें डिजिटल पढ़ाई को बढ़ावा देने के लिए पीएम ई-विद्या कार्यक्रम का भी एलान किया गया था। इसके तहत ई-पाठ्यक्रम, शैक्षणिक चैनल और सामुदायिक रेडियो का इस्तेमाल करके बच्चों तक पाठ्य सामग्री पहुंचाने की बात कही गयी थी।
देश में कोरोना संकट के बीच कुछ राज्य अभी यह विचार कर रहे हैं कि कॉलेजों और स्कूलों को कब खोला जाए। इस बीच हरियाणा सरकार ने इस संबंध में फैसला ले लिया है। हरियाणा ने जुलाई से स्कूलों में और अगस्त से कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाई शुरू करने का फैसला किया है। राज्य के शिक्षा मंत्री कंवर पाल गुज्जर ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा, "हम चरणबद्ध तरीके से स्कूली शिक्षा शुरू करने जा रहे हैं। इसके तहत कक्षा 10वीं से 12वीं तक के स्कूल में 1 जुलाई से और कक्षा 6वीं से 9वीं तक के लिए 15 जुलाई से शिक्षण कार्य शुरू होगा।" उन्होंने कहा, "कक्षाएं शिफ्ट में लगेंगी, ताकि एक कक्षा के आधे छात्र पहली पाली में आएं और बाकी दूसरी कक्षा में आएं। हम अभी तक पाली की समयसीमा तय नहीं कर पाए हैं।" इस बीच, बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन हरियाणा (बीएसईएच) के अध्यक्ष जगबीर सिंह ने कहा कि 12वीं कक्षा के छात्रों को 1 जुलाई से 15 जुलाई तक अपनी लंबित परीक्षाओं के लिए उपस्थित होना होगा। कोरोना के फैलाव के साथ ही मार्च में स्कूलों को बंद कर दिया गया था। अधिकांश स्कूलों में सत्र पूरा नहीं हो पाया। अनेक स्कूलों, इंजीनियरिंग कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में फाइनल परीक्षाएं नहीं हो पायी हैं। यहां तक कि सीबीएसइ जैसा बोर्ड भी अपनी परीक्षाएं पूरी नहीं कर पाया है। लॉकडाउन को लेकर हुई ताजा घोषणा के अनुसार, यदि सब कुछ ठीक रहा, तो जुलाई में स्कूल खोलने पर विचार किया जा सकता है।
मौजूदा दौर में बच्चों को पढ़ाना आसान नहीं रहा है। कुछ समय पहले तक माना जाता था कि बच्चे, शिक्षक और अभिभावक, ये शिक्षा की तीन महत्वपूर्ण कड़ी हैं। हमारी शिक्षा व्यवस्था इन तीनों कड़ियों को जोड़ने में ही लगी थी कि इसमें डिजिटल की एक और कड़ी जुड़ गयी है। बेशक शिक्षा व्यवस्था की सर्वाधिक महत्वपूर्ण कड़ी शिक्षक हैं, लेकिन वर्चुअल कक्षाओं ने इंटरनेट को भी शिक्षा की एक अहम कड़ी बना दिया है। लॉकडाउन में डिजिटल पढ़ाई एक महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में उभरी है। वर्चुअल क्लास रूम को लेकर खासी चर्चा हो रही है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे देश में एक बड़े तबके के पास न तो स्मार्ट फोन है, न ही कंप्यूटर और न ही इंटरनेट की सुविधा। जाहिर है, अब ऐसे अभिभावकों पर बच्चों को ये सुविधाएं उपलब्ध कराने का दबाव रहेगा। गरीब तबका इस मामले में पहले से पिछड़ा हुआ था। कोरोना ने इस खाई को और चैड़ा कर दिया है। देश के सभी बच्चों के लिए ऑनलाइन शिक्षा फिलहाल संभव नहीं है। नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के आंकड़ों के मुताबिक केवल 23.8 फीसदी भारतीय घरों में इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है। इसमें ग्रामीण इलाके बहुत पीछे हैं। शहरी घरों में यह उपलब्धता 42 फीसदी है, जबकि ग्रामीण घरों में यह 14.9 फीसदी ही है।
केवल आठ फीसदी घर ऐसे हैं, जहां कंप्यूटर और इंटरनेट दोनों की सुविधा उपलब्ध है। देश में मोबाइल की उपलब्धता 78 फीसदी आंकी गयी है, पर इसमें भी शहरी और ग्रामीण इलाकों में भारी अंतर है। ग्रामीण क्षेत्रों में 57 फीसदी लोगों के पास ही मोबाइल है। कुछ समय पहले शिक्षा को लेकर सर्वे करने वाली संस्था 'प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन' ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट 'असर' यानी एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट जारी की थी। इसके अनुसार, 59 फीसदी युवाओं को कंप्यूटर का ज्ञान ही नहीं है। लगभग 64 फीसदी युवाओं ने कभी इंटरनेट का इस्तेमाल ही नहीं किया है। देश में प्राइवेट और सरकारी स्कूलों की सुविधाओं में भारी अंतर है। प्राइवेट स्कूल मोटी फीस वसूलते हैं और उनके पास संसाधनों की कमी नहीं है। वे तो वर्चुअल क्लास की सुविधा जुटा लेंगे, लेकिन सरकारी स्कूल तो अभी तक बुनियादी सुविधाओं को ही जुटाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वे कैसे ऑनलाइन क्लास की सुविधा जुटा पायेंगे। बिहार की 10वीं बोर्ड में टॉप करने वाले हिमांशु राज का उदाहरण हमारे सामने है। रोहतास जिले के इस मेधावी बालक ने 500 में से 481 अंक हासिल कर एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। यह बालक 14.95 लाख बच्चों में अव्वल आया है, जिसकी जितनी भी सराहना की जाए, कम है।
हाल में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जब आर्थिक पैकेज की घोषणा की थी, तो उसमें डिजिटल पढ़ाई को बढ़ावा देने के लिए पीएम ई-विद्या कार्यक्रम का भी एलान किया गया था। इसके तहत ई-पाठ्यक्रम, शैक्षणिक चैनल और सामुदायिक रेडियो का इस्तेमाल करके बच्चों तक पाठ्य सामग्री पहुंचाने की बात कही गयी थी। यह भी घोषणा की गयी है कि पहली से लेकर 12वीं तक की कक्षाओं के लिए एक-एक डीटीएच चैनल शुरू किया जायेगा। हर कक्षा के लिए छह घंटे का ई-कंटेंट तैयार किया जा रहा है और इसे छात्रों तक पहुंचाने के लिए रेडियो, सामुदायिक रेडियो और पॉडकास्ट सेवाओं का भी इस्तेमाल किया जायेगा। साथ ही मानव संसाधन मंत्रालय ने देश के 100 शीर्ष विश्वविद्यालयों को ऑनलाइन कोर्स शुरू करने की मंजूरी भी दी है। दूरदर्शन पर पहले भी ज्ञान-दर्शन जैसे कार्यक्रम आया करते थे, लेकिन वे बहुत सफल नहीं रहे।
सरकार की घोषणाओं में विभिन्न माध्यमों से ऑनलाइन पढ़ाई पर जोर दिया गया है, मगर यक्ष प्रश्न यह है कि जहां इंटरनेट, टीवी और निरंतर बिजली उपलब्ध न हो, वहां बच्चे इन सुविधाओं का कैसे लाभ उठा पायेंगे। डिजिटल शिक्षा को बढ़ाना सराहनीय कदम हैं, लेकिन इसके समक्ष चुनौतियां बहुत हैं। शिक्षा और रोजगार का चोली-दामन का साथ है। यही वजह है कि हर माता-पिता बच्चों की शिक्षा को लेकर बेहद जागरूक रहता है। उनकी आकांक्षा रहती है कि उनका बच्चा अच्छी शिक्षा पाए, ताकि उसे रोजगार मिल सके। वे बच्चों की शिक्षा के लिए पूरी जमा पूंजी दांव पर लगा देने को तैयार रहते हैं। साथ ही किसी भी देश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति भी उस देश की शिक्षा पर निर्भर करती है। अच्छी शिक्षा के बगैर बेहतर भविष्य की कल्पना नहीं की जा सकती। अगर शिक्षा नीति अच्छी नहीं होगी, तो विकास की दौड़ में वह देश पीछे छूट जायेगा। ये बातें हम सब बखूबी जानते हैं। बावजूद इसके, पिछले 70 वर्षों में हमने अपनी शिक्षा व्यवस्था की घोर अनदेखी की है। कोरोना ने अब शिक्षा के समक्ष एक नयी चुनौती ला खड़ी की है, लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि शिक्षा पर सभी का समान अधिकार है और यह सर्वसुलभ होनी चाहिए।
( हिफी, हिंदुस्तान समाचार )