लैंसेट का फर्जीवाड़ा

लैंसेट का फर्जीवाड़ा
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नई दिल्ली। विश्व कोरोना वायरस संक्रमण से त्राहि-त्राहि कर रहा है। परंतु मानवता की सेवा करने की बजाय विश्व की महाशक्तियां दवा मार्केट की गला काट प्रतिस्पर्द्ध। में उतरी नजर आ रही हैं। विश्व बैंक की भूमिका लगातार सवालों के दायरे में रही है। भारतीय दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन (एचसीक्यू) पर विश्व बैंक का पक्षपाती रवैया सामने आया है, उसने पहले एचसीक्यू को प्रतिबंधित करने के बाद इससे प्रतिबंध हटा लिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस एडहैनम धेव्रेयसस ने कहा कि विशेषज्ञों ने इस दवा के सुरक्षा सम्बन्धी डाटा के अध्ययन के बाद पुनः परीक्षण की संस्तुति कर दी है। डब्ल्यू एच ओ को संचालित करने वाले कार्यकारी समूह ने परीक्षण में शामिल सभी दवाओं के समूहों को जारी रखने की अनुशंसा कर दी है। परिणामतः कोरोना की दवाओं के परीक्षण में शामिल रोगियों को पुनः हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन दवा दी जाने लगेगी अर्थात जिन रोगियों ने स्वयं पर कोरोना दवाओं के परीक्षण की सहमति दे रखी है, उन्हें चिकित्सक यह दवा दे सकेंगे। महानिदेशक का यह भी कहना है डब्ल्यू एच ओ की सुरक्षा निगरानी कमेटी ने एच सी क्यू के वैश्विक डाटा का परीक्षण कर लिया है। ध्यान रहे डब्ल्यूएचओ ने एक सप्ताह पूर्व एच सी क्यू के क्लीनिकल ट्रायल पर रोक लगा दी थी। उसने मेडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के आधार पर यह निर्णय लिया था। लैंसेट की रिपोर्ट का दावा था कि एच सी क्यू दवा को कोविड-19 में लेने से कोई फायदा नहीं नुकसान ज्यादा है। रिपोर्ट के बाद डब्ल्यूएचओ ने इस दवा के क्लिनिकल ट्रायल पर रोक लगा दी। लैंसेट में प्रकाशित इस शोध रिपोर्ट पर भारत की प्रतिष्ठित संस्था सीएसआईआर यानि काउन्सिल आफ साइन्टिफिक एण्ड इण्डस्ट्रियल रिसर्च के महानिदेशक डा. शेखर मांडने ने डब्ल्यूएचओ व लैंसेट को पत्र लिखकर इस रिपोर्ट व परीक्षण रोके जाने का विरोध किया था। सीएसआईआर के महानिदेशक ने विश्लेषण के समय पर प्रश्नचिन्ह लगाया। लैंसेट के शोध के अनुसार ये शोध 20 दिसम्बर से 14 अप्रैल के बीच का है । जबकि इसके पूर्व 31 दिसम्बर तक निमोनिया के लक्षण जैसी बीमारी की बात कही जा रही थी। विश्व में कोरोना का मरीज चीन के वुहान में जनवरी में सामने आया जिसके आधार पर डब्ल्यूएचओ ने दुनिया को इस बीमारी के बारे में बताया। सीएसआईआर ने विस्तार से बिन्दुवार इस शोध की प्रामाणिकता को संदिग्ध करार दिया। उसने कहा कि इस शोध में बहुतेरे सवाल ऐसे हैं जिससे पता चलता है कि यह अध्ययन सही नहीं है। विज्ञान के आधार पर इस शोध के जो निष्कर्ष है, वह सही नहीं है। स्मरण रहे जब कोरोना के इलाज में कोई दवा कारगर नहीं हो रही थी तब अनेक डाक्टरों ने एचसीक्यू को कोरोना संक्रमितों पर प्रयोग किया, जिससे रोगियों में आशाजनक सुधार हुआ। इससे विश्व में इसकी मांग बढ़ी। भारत में इसके प्रचुर भण्डार को देखते हुए अनेक देशों ने भारत से इस दवा की मांग की। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने तो इस दवा के लिए दबाव भी बनाया। भारत ने मानवता की सेवा का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हुए अनेक देशों को निःशुल्क तथा अन्य देशों को लागत मूल्य पर हाइड्राक्सीक्लोरोक्विन दवा भेजी। लैंसेट रिसर्च के निष्कर्ष से पता चलता है कि इसके निष्कर्ष पूर्वाग्रही है। ये दवा किन रोगियों यानी माइल्ड या मॉडरेट या सीरियस पेशेंट या किसी ऐसे रोगी को दी गयी है जो क्रिटिकल है और कब इस पर ज्यादा कुछ नहीं कहती। इसके विपरीत शोध में लिखा गया था कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा देने से कोई लाभ नहीं बल्कि रोगी को नुकसान होता है। यह निष्कर्ष किस आधार पर लैंसेट ने निकाला, इसका उल्लेख नहीं किया गया। विश्व में कोरोना संक्रमण से किनती मौतें एचसीक्यू की वजह से हुईं , इसका कोई आंकड़ा नहीं है। भारत में एचसीक्यू आईसीएमआर गाइड लाइन के अनुसार हेल्थ केयर वर्कर, फ्रंटलाइन वर्कर (जो कोरोना रोकथाम में सेवा दे रहे हैं), पुलिस व अर्द्धसैनिक बल (जो इस काम में हैं), इसके अलावा कन्फर्म केस के सम्पर्क में आए लोग व निकट सम्पर्क। इस दवा की मात्रा भी निर्धारित है। एचसीक्यू दवा से मलेरिया जैसी बीमारी की चिकित्सा की जाती है। इसका चिकित्सक गठिया व त्वचा रोग में भी प्रयोग करते हैं। ये दवा 70 वर्षों से प्रयोग की जा रही है। इसको किस प्रकार के रोगियों को दी जानी चाहिए, सभी डाक्टरों को पता है इस दवा के लाभ या दुष्प्रभाव क्या है, क्या सावधानी बरतनी है, छिपी नहीं है परंतु दवा मार्केट में ऐसी दवा या वैक्सीन उतारी जाय जिससे आर्थिक लाभ हो, ऐसी मन्शा मजबूत वैश्विक लावी की दिखाई पड़ती है। भारतीय चिकित्सकों व वैज्ञानिकों के प्रबल विरोध व तथ्यात्मक तर्कों के बाद डब्ल्यूएचओ ने अपने कदम पीछे खींचे परंतु उसने एचसीक्यू के क्लीनिकल परीक्षण को जारी रखने का पेंच फंसा दिया। तो क्या यह शोध घोटाला है? नामी गिरामी मेडिकल जसल लैंसेट ने मलेरिया दवा क्लोरोक्विन व हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वाइन पर किए गए चार लेखकों के फर्जी शोध पत्र को वापिस ले लिया है। ये लेखक दावा कर रहे थे कि अमेरिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा कोरोना आपदा के विरुद्ध युद्ध में गेम चेंजर्स के रूप में एचसीक्यू के प्रयोग किये जाने से रोगियों में मृत्यु दर बढ़ जाती है। इस शोध पत्र को तैयार करने में चार वैज्ञानिक शामिल थे। इनमें से प्रमुख रूप से डा. मन्दीप आर मेहरा, डा. अमित एन पटेल, डा. सपन देसाई तथा डा. फ्रैंक सशिट्जका समिल्लित थे। शोध पत्र फर्जी पाए जाने के बाद लैंसेट ने इस शोध पत्र को हटा लिया है। शोध पत्र प्रकाशन के समय पर सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि बार-बार दावा किया जा रहा था कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन दवा कोरोना संक्रमितों के उपचार में बेअसर है। इस दावे को वैज्ञानिक आधार प्रदान करने के लिए यह शोध पत्र लाया गया। जिसके आधार पर डब्ल्यूएचओ ने इस दवा पर प्रतिबंध लगा दिया । इसके पूर्व ऐसा ही एक शोध न्यू इंग्लैण्ड जर्नल ऑफ मेडिसिन द्वारा प्रकाशित किया गया था। अमेरिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प बताते हैं कि वे इस दवा का प्रयोग स्वयं कर रहे हैं , दावा कारगर है। अमेरिकन राष्ट्रपति की मार्केटिंग से दवा लॉबी नाखुश दिखी व इस दवा के विरोध में विभिन्न मंचों से आवाज उठाई गयी। फर्जी शोध पत्रों से पता चलता है कि मानवता को भी प्रायोजित प्रचार से शर्मसार किया जाता है। अमेरिका विश्व स्वास्थ्य संगठन पर आरोप लगाता रहता है कि उसने चीन के दबाव में विश्व को कोरोना वायरस की समय से जानकारी नहीं दी। उसने डब्ल्यूएचओ को दिया जाने वाला अपना अंशदान पिछले वर्ष 2019 की भांति इस वर्ष भी नहीं दिया। अंततः इस वैश्विक संगठनसे हटने की भी घोषणा कर दी। वैश्विक मीडिया में भारत की घटनाओं के बारे में अतिरंजित असत्य, भ्रामक, उत्तेजक समाचार कुछ भारतीय लेखकोंध्पत्रकारों को धनराशि देकर लिखवाने का आरोप लगाया जाता रहा है। लैंसेट में प्रकाशित शोध पत्र के फर्जी पाए जाने से ऐसा लगता है कि चिकित्सा क्षेत्र में दवा कंपनियां प्रचुर धनराशि के माध्यम से सशक्त लाबी खड़ी करती हैं, जो उन्हें लाभ पहुंचाए तथा प्रतिस्पर्धी दवा कंपनी के उत्पाद पर उसके उत्पाद की श्रेष्ठता स्थापित कर सकें। अमेरिका, ब्रिटेन, चीन दावा कर रहे हैं। कि करोना में प्रभावी दवा या वैक्सीन का आविष्कार अन्तिम चरण में है। दावे यथार्थ की कसौटी पर अभी कसे नहीं गये हैं परंतु ये अतिरंजित बयान मुनाफाखोरी की प्रवृत्ति को प्रदर्शित करते हैं। लैंसेट के शोध पत्र के आधार पर एचसीक्यू दवा से मौत का आंकड़ा बढ़ने का दावा टांय- टांय फिस्स हो गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की लैंसेट के विरुद्ध कार्रवाई पर चुप्पी शर्मनाक है।

मानवेन्द्रनाथ पंकज-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा

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