तांडव तो डिंपल ही कर पायीं, सैफ रहे फीके

तांडव तो डिंपल ही कर पायीं, सैफ रहे फीके

मुंबई। तांडव, जैसे फिल्म का नाम प्रभावशाली है, वैसा ही सीरीज में अभिनय भी, लेकिन नाम के विपरीत कहानी धीमी है। ये वेब सीरीज एक राजनीतिक ड्रामा है। सीरीज में पूरी तरह से ये दिखाया गया है कि कैसे राजनीतिक समीकरण समय-समय पर बदलता है। राजनीति में धोखा और फरेब हर मोड़ पर कैसे होता है, ये इस कहानी में मुख्य तौर पर दिखाया गया है नेताओं का कुर्सी के लिए प्यार और फिर कुर्सी के लिए चाल चलने का खेल इस फिल्म में बखूबी दिखाया गया है सीरीज देख ये साफ होता है कि कुर्सी का ये खेल सही या गलत नहीं होता है, ये राजनीति है और ये ऐसे ही सत्ता और ताकत के लिए होती है।


अब बताते हैं कि कहानी कैसे शुरू होती है सीरीज के शुरू होते ही स्क्रीन पर लिखा दिखाई देता है, भाई हम तो धोखा खा गए कहानी जैसे ही शुरू होती है देश में दक्षिणपंथी पार्टी जन लोक दल (जेएलडी) का राज दिखाया जाता है। जन लोक दल तीसरी बार आम चुनाव जीतने वाली है और इस बार भी ये लगभग तय है कि देवकी नंदन (तिग्मांशु धूलिया) प्रधानमंत्री बनेंगे, लेकिन चुनाव के नतीजे आने से ठीक पहले देवकी नंदन की मौत की खबर आती है। ऐसे में अब प्रधानमंत्री पद का दावेदार देवकी नंदन का बेटा समर प्रताप सिंह (सैफ अली खान) है। मगर कहते हैं कि राजनीति में ऊंट किस करवट बैठेगा ये किसी को नहीं पता. राजनीतिक समीकरण ऐसे बदलता है कि तीस साल से देवकी नंदन की खास रहीं अनुराधा किशोर (डिंपल कपाडिया) पीएम बन जाती हैं। (हिफी)

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