छू लेने दो नाजुक होठों को... गाने की दिलचस्प कहानी

छू लेने दो नाजुक होठों को... गाने की दिलचस्प कहानी

मुंबई। फिल्म काज के गीत 'छू लेने दो नाजुक होठों' गाने को मोहम्मद रफी ने गाया था। इस गाने को कुछ इस अंदाज में गाया जाना था, जिसे लगे कि गाने वाला पूरा मदहोशी में है लेकिन रफी साहब शराब से कोसों दूर ही रहते थे। फिर भी उन्होंने गाने को इस अंदाज में गाया कि यह हिंदी संगीत के इतिहास के क्लासिक्स में शामिल हो गया।

इस गाने में जितनी गहरी साहिर की शायरी है, उतनी ही गहरी रफी साहब की आवाज। गुलशन नंदा के उपन्यास माधवी पर आधारित यह फिल्म 1965 की सबसे कामयाब फिल्मों में से एक थी। काजल के लिए मीना कुमारी को बेस्ट एक्ट्रेस के फिल्म पुरस्कार, जबकि पद्मिनी को बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस के फिल्मफेयर अवॉर्ड से नवाजा गया। इस गाने में राजकुमार को मदहोशी में दिखाया जाना था। साहिर लुधियानवी को यह गाना लिखने का जिम्मा सौंपा गया। फिल्म के म्यूजिक डायरेक्टर ने धुन तैयार की और मोहम्मद रफी इस गाने को गाने वाले थे। ऐसे में साहिर लुधियानवी से कहा गया कि वे इस गाने को केवल दो-तीन शायरी में ही लिख दें। साहिर लुधियानवी ने ऐसा ही किया। पर गाना इतना शानदार बना कि निर्माता इसे और लंबा करना चाहते थे। पर साहिर लुधियानवी को उस दौर में ढूंढना लगभग मुश्किल हो जाता था। वे गाना लिखने के बाद अपनी ही दुनिया में खो जाते थे। इस वजह से यह गाना उतना ही रह गया। (हिफी)

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