इंसानियत के लिए धब्बे का दिन

इंसानियत के लिए धब्बे का दिन

हिरोशिमा। साल 1945 में 6 अगस्त के दिन अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा पर परमाणु हमला किया था। अमेरिका ने लिटिल बॉय बम गिराकर हिरोशिमा शहर पर भयंकर तबाही मचाई थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिरोशिमा पर परमाणु बमबारी की यह 75वीं वर्षगांठ है। युद्ध के इतिहास में यह पहली बार था जब किसी देश के खिलाफ परमाणु बम का इस्तेमाल किया गया था। इस घटना ने लगभग 90 फीसद शहर को मिटा दिया और इस परमाणु हमले में 1,40,000 लोग मारे गए थे और इतने वर्षों के बाद भी शहर पर इसके निशान ताजा है। गौरतलब है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के अंत में अमेरिका ने जापान पर दो परमाणु हमले किए थे। पहला हिरोशिमा में और दूसरा नागासाकी में। हिरोशिमा दिवस एक शोक दिवस है क्योंकि इसी दिन मानव के वैमनस्य ने एक लाख से अधिक आत्माओं का एक अनुस्मारक बना दिया था। इसलिए ये दिवस है परमाणु हथियारों के खतरे और परमाणु ऊर्जा के खतरों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए याद करने का ताकि हम फिर से वो गलती न करें। इस दिन परमाणु हथियारों के खतरे और परमाणु ऊर्जा के खतरों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए याद किया जाता है। इस मानवीय संहार और विनाशता को ध्यान में रखते हुए हिरोशिमा दिवस मनाया जाता है।

बात है द्वितीय विश्व युद्ध की और वह दौर था 1939-1945 का। इस वक्त पूरा विश्व तीन हिस्सों में बंटा हुआ था-सहयोगी, एक्सिस ब्लॉक्स और तटस्थ देश। विचारधारात्मक संघर्ष, इस युद्ध का मुख्य कारक था। लाखों लोग इस युद्ध के बलि चढ़ रहे थे लेकिन युद्ध था कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। फिर वो दिन आया जिसने न ही इस युद्ध को रोका अपितु मानव इतिहास को नरसंहार के कठघरे में खड़ा कर दिया। वो वर्ष था 1945 और तारीख थी अगस्त माह की छह तारीख को एनोला गे नामक एक अमेरिकी बी-29 बमवर्षक ने 'लिटिल ब्वॉय' नामक परमाणु बम हिरोशिमा पर बरसाया था। अमेरिकी बॉम्बर प्लेन बी-29 ने जमीन से तकरीबन 31000 फीट की ऊंचाई से परमाणु बम गिराया था। जिस जगह पर बम गिराया गया था, उसके आसपास की हर चीज जलकर खाक हो गई थी। जमीन लगभग 4,000 डिग्री सेल्सियस गर्म हो उठी थी। उस परमाणु हमले में लगभग 1.4 लाख लोग मारे गए थे जो लोग बम हमले से बच गए थे, रेडिएशन की चपेट में आने के कारण बाद में मर गए थे।

जापान पर किसी देश द्वारा होने वाला यह सबसे बड़ा हमला था परंतु इस हमले के बाद भी अमेरिका शांत नहीं हुआ और वह निरंतर अपने कई प्रकार के बमों के प्रभावों को आजमाता रहा। हिरोशिमा को तबाह करने के बाद अमेरिका ने नागासाकी पर 'फैट मैन' नामक प्लूटोनियम बम गिराया जिसमें अनुमानित 74 हजार से ज्यादा लोग मारे गये। इस अमानवीय आपदा का परिणाम आज भी इस नगर के लोग भुगत रहे हैं। इसी का परिणाम है कि जापान ने परमाणु हथियार कभी निर्माण न करने की नीति स्थापित की और आर्थिक व सामरिक संबंधों का नया अध्याय जोड़ने में लगा है।

जापान के हिरोशिमा की धरती के बारे में तो यह भी नहीं कहा जा सकता कि यह लाखों लोगों के खून से सनी है क्योंकि जिस तरह वे लाखों लोग मारे गए, उनका खून भी भाप बनकर उड़ गया था, जो बचा वह इंसानियत की राख थी। इंसानियत के इस सबसे बड़े कत्ल को भूलना नहीं चाहिए क्योंकि अगर हम भूल गए तो ऐसा मुमकिन कि इतिहास दोहराने से हम हिचकेगे नहीं। आज जिस तरह का माहौल है उससे परमाणु युद्ध का खतरा लोगों के जेहन में डर पैदा कर देता है. परमाणु और पारंपरिक हथियारों के बीच जो अंतर अब खत्म हो रहा है वो इस खतरे को और बढ़ा ही रहा है। परमाणु और गैर-परमाणु हथियार कभी भी पूरी तरह से एक-दूसरे से अलग नहीं थे। कहा जाता है कि परमाणु बम का निर्माण 1941 में तब शुरू हुआ जब नोबेल विजेता वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलीन रूजवेल्ट को इस प्रोजेक्ट को फंडिंग करने के लिए राजी किया। उस समय खुद आइंस्टीन ने भी नहीं सोचा होगा कि उसके इतने घातक परिणाम होंगे।

75 साल बाद, दुनिया के नौ देशों के पास हजारों परमाणु बम हैं, जो बड़ी मात्रा में गैर-परमाणु बमों से लिपटे हुए हैं। एक आंकड़े के मुताबिक रूस के पास 7000, अमेरिका के पास 6800, फ्रांस के पास 300, चीन के पास 130, भारत के पास 120 तथा इजराइल के पास 80 परमाणु हथियार हैं। ऐसे में परमाणु युद्ध की विकरालता को समझा जा सकता है। परमाणु बमों की लगातार धमकियों से स्थिति और बिगड़ रही है। यही कारण है कि आईसीएएन की कार्यकारी निदेशक बिट्रिस फेन ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरियाई तानाशाह किम जोंग को कड़ा संदेश दिया है। उन्होंने कहा, "परमाणु हथियार अवैध हैं। इनकी धमकी देना भी गैरकानूनी है। परमाणु हथियार रखना और उसका विकास अवैध है। इसे रोकने की जरूरत है।"

महाशक्तियों के अंतर्द्वंद्व, विरोधाभासों एवं शक्ति प्रदर्शन के कारण दुनिया परमाणु युद्ध के मुहाने पर खड़ी है। पाकिस्तान और भारत, सऊदी अरब और ईरान, अमेरिका, चीन, रूस, इजराइल इत्यादि इत्यादि। वर्तमान में सभी देशों के एक दूसरे से संबंध किसी न किसी विषय को लेकर खराब चल रहे है। हर कोई विवादों को तूल दे रहा है। विवादित विषयों का संभव है कि बातचीत से समाधान निकल भी जाए परन्तु अहम की लड़ाई के चलते कोई भी बातचीत नहीं करना चाह रहा है। कुछ शक्तिशाली, विकसित देश सम्पूर्ण विश्व पर तानाशाही करते है। उनकी तानाशाही किसी से छुपी नहीं है। सभी जानते हैं कि कुछ राष्ट्र अध्यक्षों के भाषण और नीतियां विश्व अशांति की आग में घी का काम कर रही है। जहां एक ओर भारत पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों से परेशान है वहीं चीन भारत के खिलाफ अपने छुपे हुए मंसूबों के लिए पाकिस्तान को सहयोग कर पूरा कर रहा है।

वर्तमान में भारत और पाकिस्तान के रिश्ते भी युद्ध की संभावनाएं तलाश रहे हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री प्रतिदिन भारत को परमाणु बम युक्त युद्ध की धमकी दे रहे हैं। कभी नार्थ कोरिया का मिसाइल प्रशिक्षण करना, कभी अमेरिका के द्वारा दूसरे देश का ड्रोन मार गिराना, विश्व शान्ति के भंग होने का कारण बन रहा है। चीन की अर्थव्यवस्था विशाल से विशालकाय होती चली जा रही हैं। हिंद महासागर में चीन अपने पैर फैलता जा रहा है। चीन की इस नीति पर कई देशों ने सवालिया निशान उठाये है। चीनी सेना जो कि विश्व की दूसरी बड़ी सेना है। अमेरिका और जापान इसके खिलाफ भी है। एक संभावना बन रही है की अगले विश्व युद्ध का अखाड़ा हिंद महासागर हो सकता है। अमेरिकी विरोध स्वरूप रूस और ईरान भी उसका साथ दे सकते हैं। यूरोपियन यूनियन और सारा विश्व करीब-करीब अमेरिका के साथ खड़ा है। हर रोज एक नई बात को लेकर बढ़ता तनाव, आखिरकार एक दिन तृतीय विश्व युद्ध का रूप ले ही लेगा। स्थिति और हालात तो यही कहते हैं। ऐसे में एक आहट सुनाई दे रही है जो तीसरे विश्व युद्ध में बदलती है यह तो भविष्य के गर्भ में है। तीसरा विश्व युद्ध मानवता के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

(नाज़नींन-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

Next Story
epmty
epmty
Top