बुढ़ाना में RLD के भाईचारा सम्मेलन से बिगड़ ना जाए रालोद का गणित
मुज़फ्फरनगर। यूपी के विधानसभा चुनाव नजदीक है, ऐसे में रालोद ने 2013 से बिगड़े सामाजिक सिस्टम को कड़ी मेहनत के बाद दुरुस्त कर भाईचारा सम्मेलन शुरू कर दिए है मगर 23 अगस्त को बुढ़ाना में रालोद के एक नेता द्वारा आयोजित भाईचारा सम्मेलन से रालोद का सियासी गणित बिगड़ सकता है। इसकी वजह भी 2013 के मुज़फ्फरनगर में हुए दंगे है। क्यों बिगड़ सकता है रालोद का गणित पढ़िए खोजी न्यूज़ की स्पेशल स्टोरी...........
गौरतलब है कि यूपी वेस्ट में राष्ट्रीय लोकदल मुस्लिम मजदूर एवं किसान के बलबूते मजबूत दखल रखता था। खासकर इस बेल्ट में मुस्लिम जाट समीकरण ऐसा था कि वह किसी भी सीट पर कैंडिडेट की जीत सुनिश्चित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। यहां तक की यूपी वेस्ट में कई बड़े मुस्लिम चेहरे चौधरी चरण सिंह और चौधरी अजीत सिंह के मुस्लिम जाट समीकरण के बलबूते बन पाए थे। सहारनपुर के रसीद मसूद हो या मुजफ्फरनगर के मुनव्वर हसन , अमीर आलम खान, राव राफे खां या मेरठ के मंजूर अहमद , हाजी अख़लाक़ हो या बागपत के नवाब कोकब हमीद। रालोद के इसी समीकरण के बलबूते वह बड़े नेता के तौर पर स्थापित हुए।
2013 के दंगों के बाद जब जाट एवं मुस्लिम के बीच एक बड़ी खाई पैदा हुई तो इसकी वजह से राष्ट्रीय लोकदल को बहुत बड़ा नुकसान हुआ और जाट समाज का एक बहुत बड़ा तबका भारतीय जनता पार्टी के खेमे में चला गया। दरअसल 2013 के दंगों के समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। जब दंगे हुए तो जाट समुदाय में एक मैसेज गया था कि आजम खान और जिले के एक नेता ने कवाल काण्ड के कथित हत्यारोपियों को जानसठ थाने से छुड़ाने में अग्रणी भूमिका निभाई है। भाजपा नेताओं ने 2014 के लोकसभा तथा 2017 के विधानसभा चुनाव में इन्ही नेताओं द्वारा जाटों के खिलाफ कार्यवाई करवाने का आरोप लगाकर जाटों की वोट हासिल की थी। रालोद का मुस्लिम जाट समीकरण बिगड़ा , यही वजह रही 2017 का विधानसभा चुनाव या 2014 एवं 2019 का लोकसभा चुनाव, वेस्ट यूपी में राष्ट्रीय लोकदल और महागठबंधन को हार का मुंह देखना पड़ा।
2014 में बागपत तो 2019 में चौधरी अजीत सिंह को अपने ऐसी मजबूत वोट बैंक के बिखराव के चलते हार का सामना करना पड़ा। इस पूरे एपिसोड में दोनों नेता जाटों के निशाने पर रहे, जिस वजह से जाट समाज का एक बड़ा तबका उनसे दूरी बना कर रखे हुए था जबकि 2013 के दंगों के बाद चौधरी अजीत सिंह एवं उनके बेटे जयंत चौधरी लगातार मुस्लिम जाट एवं अति पिछड़े का समीकरण को साधने में जुटे हुए थे। चौधरी अजीत सिंह के देहांत से पहले चाहे वह हाथरस की घटना हो जिसमे जयंत चौधरी पर लाठीचार्ज हो या किसान आंदोलन में दोनों पिता-पुत्र के राकेश टिकैत और किसानों के साथ खड़े होने की वजह अथवा सीएए को लेकर हुए प्रदर्शन के बाद एकतरफा कार्रवाई का विरोध इसके साथ साथ जयंत चौधरी का लगातार पब्लिक के बीच जाना हो। इन सभी की वजह से राष्ट्रीय लोकदल का वोट बैंक जाट मुस्लिम फिर से एक प्लेटफार्म पर दिखाई देने लगा और इसकी शुरुआत तब हुई, जब बाबू हुकुम सिंह के देहांत के बाद कैराना लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ तो समाजवादी पार्टी की तबस्सुम हसन ने गठबंधन के चलते रालोद के सिंबल पर चुनाव लड़ा जयंत चौधरी ने इस चुनाव में मेहनत की और नतीजा आया कि रालोद अपने पुराने वोट बैंक के बलबूते भाजपा की सत्ता होते हुए भी कैराना लोकसभा सीट का चुनाव जीत गया।
पुराने वोट बैंक को साधने में कामयाब रालोद के जयंत चौधरी ने 2022 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर वेस्ट यूपी में भाईचारा सम्मेलन इस मकसद से शुरू कराएं कि यूपी यूपी वेस्ट में फिर से रालोद का वोट बैंक एक मंच पर आए और रालोद विधानसभा चुनाव में जीत सके। कई जिलों में राष्ट्रीय लोकदल का भाईचारा सम्मेलन कामयाब रहा। उसके वोट बैंक जाट व मुस्लिम , पिछड़े अतिपिछड़ों ने एक साथ मंच पर आकर संदेश दिया कि वह फिर से वापस अपने पुराने घर रालोद में लौट चुके हैं।
अब रालोद के भाईचारा सम्मेलन में रोचक मोड़ तब आ गया, जब बुढ़ाना कस्बे में दंगो के दौरान जाटों के निशाने पर आये रालोद नेता ने 23 अगस्त को बुढ़ाना में रालोद का भाईचारा सम्मेलन करने का ऐलान किया। राजनीतिक सूत्रों के अनुसार दंगों के बाद इस नेता की कथित भूमिका से नाखुश जाट समुदाय इस भाईचारा सम्मेलन के आयोजक उसी नेता के होने से नाराज हो सकते हैं। अब यह तो 23 अगस्त को आयोजित भाईचारा सम्मेलन में आई भीड़ ही बताएगी कि बुढ़ाना के भाईचारा सम्मेलन से रालोद का सियासी गणित बिगड़ता है या नहीं। क्यूंकि जब 2019 में चौधरी अजीत सिंह गठबंधन के प्रत्याशी के रूप चुनाव लड़ रहे थे तब सियासी पंडितो ने उन्हें स्पष्ट बता दिया था कि आप नेता जी को अपने चुनाव प्रचार से दूर रखो, कहीं ऐसा ना हो जाट समुदाय नाराज हो जाए। तब रालोद ने इनको चुनाव प्रचार से दूर रहने की सलाह दी थी। बताया जाता है कि इस चुनाव में नेता जी प्रचार से दूर ही रहे थे।