हार्ट स्पेशलिस्ट डॉ. की सलाह- सर्दियो में अधिक क्यो होता है हार्ट अटैक?
हार्ट अटैक कैसे होता है?
हृदय को सप्लाई करने वाली तीनों में से किसी भी नस में अचानक रूकावट होने से दिल के उस एरिया की ब्लड़ सप्लाई पूरी तरह से बंद हो जाती है एवं हृदय का वह भाग खून की कमी के कारण डैमेज़ होना शुरू हो जाता है जिससे मरीज़ को छाती में दर्द, घबराहाट, पसीना जैसे लक्षण आने लगते हैं। कभी-कभी दाईं तरफ की नस बंद होने पर कुछ अलग तरह के लक्षण जैसे उल्टी, उबकाई, चक्कर, बेहोशी या अत्यधिक कमजोरी भी होती है। इस तरह के अलग लक्षण बूढ़े लोगों या महिलाओं में ज्यादा होते हैं। हालांकि ज्यादातर लोग हार्ट अटैक के शुरूआती लक्षणों को गैस या एसिडिटी मानकर इग्नोर करते हैं।
क्यों दिल की नसों में अचानक ब्लॉकेज आ जाती है?
दिल की नसों की अंदर की दीवारें कई कारणों से डैमेज हो कर संकरी हो जाती हैं एवं उस डैमेज संकरी नस के अंदर खून गाढ़ा होने पर थक्का (क्लोट) जम जाता है एवं यह थक्का उस नस मे खून के प्रवाह को ठीक उसी तरह रोक देता है जैसे नाली में कचरा आने पर आगे का फ्लो बंद हो जाए या बमुश्किल आगे बढ़े।
किन कारणों से दिल की नसों में खून का थक्का जमता है?
अन्कन्ट्रोल्ड शूगर/बीपी, तंबाकू, सिगरेट, स्ट्रेसफुल सीडेन्टरी लाइफस्टाइल, अधिक चर्बी वाला खानपान जैसे अंडे, मीट इत्यादि से हमारा खून पानी की तरह पतला न रहकर शहद की तरह गाढ़ा होकर इन डैमेज्ड़ रक्त शिराओं में कचरे की तरह अट जाता है एवं नस के अचानक बंद होने से दिल का वह भाग डैड़ होना शुरू हो जाता है। नस जितनी शुरूआत से बंद होती है या जितनी बड़ी नस बंद होती है उतना ही ज्यादा दिल का बडा भाग डैमेज होने का रिस्क होता है, छोटी मोटी ब्रान्च बंद होने से श्माइनर अटैकश् एवं बड़ी नस या नस के शुरूआत से ही बंद होने से मेजर श्हार्ट अटैकश् हो जाता हैं।
युवावस्था जैसे 25 से 35 साल की उम्र के बीच ज्यादातर हार्ट अटैक ज्यादा स्मोकिंग करने (चेन स्मोकिंग) की वजह से होते हैं कुछ केस में स्ट्रोंग फैमिली हिस्ट्री जैसे कम उम्र में ही मां-बाप या ताऊ-चाचा को बिना अन्य कारण के ही हार्ट अटैक होने पर यंग-एज में ही हार्ट अटैक हो सकते हैं।
हार्ट अटैक से कैसे बचें?
दिल की नसों में अकस्मात ब्लॉकेज को रोकने के लिए बीपी, शूगर, वजन को कंट्रोल रखने, तम्बाकू, स्मोकिंग पूरी तरीके से छोड़ने, अधिक चर्बी युक्त खानपान जैसे अंडे, मीट छोडनें, नियमित शारीरिक व्यायाम, योग, संतुलित-संयमित, स्ट्रैस रहित लाइफ स्टाइल अपनाने, मौसम के ताजे फलों व हरी सब्जियां को लेने की सलाह दी जाती है। जिन मरीजों को अटैक हो चुका है उन्हे लाइफ लौंग खून पतला करने की गोली (एस्प्रिन इत्यादि) लेने की सलाह भी दी जाती हैं।
ज्यादातर हार्ट अटैक रात्रि, सुबह या सर्दियों में ही क्यों होते हैं?
सर्दियों में अधिक ठंड की वजह से एवं रात्रि में नींद की कुछ स्टेज़िज़ में हमारे शरीर की वैस्कुलर टोन बढ़ जाती है जिससे सारी रक्त शिराएं तन कर बीपी को बढ़ाती हैं एव नसों में स्पाज़्म कर हार्ट अटैक का रिस्क कई गुना बढ़ा देती हैं।
हार्ट अटैक से मृत्यु क्यों और कैसे होती है ?
हार्ट अटैक के दौरान एवं ज्यादातर शुरूवाती घंटों में नस के बंद होने से हार्ट के डैमेज हुए पार्ट द्वारा हार्ट की धड़कन का अनियमित होना (वीटी/वीएफ) ही ज़्यादातर दिल के दौरे में मृत्यु का कारण होता है। नस में खून दौरा पुनः स्थापित होने से यह खतरा खत्म या बहुत कम रह जाता है। कुछ मामलों में दिल की नस के शुरूआत से ही बंद होने पर हार्ट का बड़ा भाग डैमेज हो जाता है एवं मरीज का बीपी बहुत ज्यादा गिर जाता है ऐसे में मरीजों को बीपी बढ़ाने के इंजेक्शन (आईनोट्रौप्स) चलाने पड़ते हैं। कभी-कभी इमरजेंसी में बढ़ी हुई अनियमित धड़कन (वीटी/वीफ) को बिजली का झटका (डीसी शौक) देकर नियमित किया जाता है। कुछ मरीजों में दाएं तरफ की नस बंद होने से धड़कन कम भी हो जाती है जिसे श्हार्ट ब्लॉकश् कहते हैं ऐसे में कभी-कभी धड़कन बढ़ाने के लिए मशीन (टैम्परेरी पेसमेकर) भी लगानी पड़ती है। अमूमन दाईं तरफ की नस बंद होने से होने वाले हार्ट अटैक, बाँई तरफ की नस के बंद होने वाले हार्ट अटैक से कम खतरनाक होते हैं।
हार्ट अटैक मे मृत्यु कैसे होती है?
दिल की किसी नस में खून का थक्का बनने / अटकने से नस बंद हो जाती है (हार्ट अटैक) एवं दिल का कुछ पार्ट ब्लड़ सप्लाई ना मिलने से डैमेज़ होने लगता है जिस कारण दिल की धड़कन अनियमित होकर (वीटी/वीएफ) दिल का धड़कना रूक जाता है (कार्डियक अरेस्ट), जिससे ब्रेन में ब्लड़ का फ्लो रूक जाता है, अगर तुरंत ही (10 से 20 मिनट के अंदर) हार्ट की पम्पिंग दोबरा ना चलाई जाए तो मरीज की मृत्यु (ब्रेन डैड) हो जाती है, जिसे सड्न कार्डियक डैथ कहा जाता है।
क्या रूके हुए हार्ट को दोबारा चलाया जा सकता है?
हार्ट-अटैक से अचानक बंद हुए हार्ट एवं मरीज की मृत्यु (ब्रेन-डैड) होने तक के बीच के छोटे से समय (10 से 20 मिनट) में मरीज के छाती के बायीं तरफ (दिल के ऊपर) विशेष मशीन (डी-फिब्रिलेटर) से बिजली का झटका देकर (डीसी-शौक/डीफिब्रिलेशन), हार्ट की धड़कन को कुछ केसिज़ में दोबारा से चलाया एवं मरीज को बचाया भी जा सकता है।
क्यों मरीज की छाती बार-बार दबाई जाती है?
परंतु जब तक मरीज को बिजली का झटका देने वाली मशीन उपलब्ध हो (जो कि अस्पताल की इमरजेन्सी या इमरजेन्सी एंबुलेन्स में ज्यादातर होती है) तब तक मरीज की बायीं छाती को बार-बार दबाकर (प्रति मिनट लगभग सौ बार), हार्ट को आर्टिफीशियल तरीके से पम्प कराते हुए एंबुलेन्स या अस्पताल तक पहुंचाया जाता जिससे ब्रेन में खून तथा खून में पहले से घुली हुई एवं कुछ समय के लिए प्रर्याप्त ऑक्सीजन का दौरा बना रहें। वहां पहुंचते ही मरीज की छाती पर, ईसीजी मॉनिटर करके डीसी शौक (बिजली का झटका) दिया जाता हैं एवं बेसुध पडे मरीज की सांसो को कृत्रिम तरीके से चलाने के लिए एक प्लास्टिक की ट्यूब सांस की नली में डाल दी जाती है (एन्डोट्रेकियल इन्ट्यूबेशन) एवं एक बड़े से गुब्बारे नुमा पम्प (अंबु-बैग) को उस ट्यूब से कनेक्ट कर बार-बार फुला एवं पिचका कर कृत्रिम सांस दिलाया जाता है। इस बीच एक टीम वर्क की तरह काम करते हुए दूसरे डॉक्टर/स्टॉफ, नस में कैनुला लगाकर नोरएड्रिनलीन इत्यादि इमरजेंसी दवाओं के इंजेक्शन भी लगाते हैं एवं वेन्टिलेटर की उपलब्धता होने पर मरीज को वेन्टिलेटर पर शिफ्ट कर देते हैं। आजकल तो यह इमरजैन्सी ट्रेनिंग (सी.पी.आर), पैरामैडिकल स्टॉफ, पुलिस एवं स्कूल कोर्स तक मे है।
डॉ॰ अनुभव सिंघल
ह्दय रोग विशेषज्ञ (कार्डियोलोजिस्ट)
एमडी (मेडिसिन-गोल्ड मेडल)
डीएम-कार्डियोलॉजी (एसजीपीजीआई, लखनऊ)