परिवारों को जोड़ती है किस्सागोई की परंपरा

परिवारों को जोड़ती है किस्सागोई की परंपरा

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि कहानी, कथाएं और किस्सागोई की परंपरा परिवारों को जोड़ती है इसलिए इसे अनवरत जारी रखने की जरूरत है।

पीएम नरेंद्र मोदी ने रेडियो पर प्रसारित अपने मासिक कार्यक्रम 'मन की बात' में परिवारों में कहानी सुनाने की परंपरा का जिक्र करते हुए कहा रविवार को कि कोरोना संकट के दौरान जब दो गज की दूरी अनिवार्य जरुरत बन गई है और तो इसी संकट काल किस्सागोई की हमारी परंपरा ने परिवार के सदस्यों को आपस में जोड़ने और करीब लाने का काम भी किया है। परिवार में एक साथ लम्बे समय तक मिलकर कैसे रहना है और हर पल खुशी में कैसे बिताना है ,उसकी कमी कहीं -कहीं महसूस हुई है लेकिन संकट की इस घड़ी में हर परिवार में कोई-न-कोई बुजुर्ग, परिवार के बड़े व्यक्ति कहानियां सुनाया करते थे और घर में नई प्रेरणा तथा नयी ऊर्जा भर देते हैं।

उन्होंने कहा कि इस दौर में हमें जरूर एहसास हुआ होगा कि हमारे पूर्वजों ने परिवार में कहानियां सुनाने, कथाएं कहने और किस्सागोई की जो विधायें बनाई थी वह आज भी महत्वपूर्ण हैं। परिवार में कहानी सुनाने की इस कला की हमारे यहां उतनी ही प्राचीन परंपरा है जितनी पुरानी मानव सभ्यता है।

पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि कहानियां लोगों के रचनात्मक और संवेदनशील पक्ष को सामने लाती हैं और उसे प्रकट करती हैं। इसकी ताकत उस समय ज्यादा महसूस होती है जब कोई मां अपने छोटे बच्चे को सुलाने के लिए या उसे खाना खिलाने के लिए कहानी सुना रही होती है।

उन्होंने इस बात पर हैरानी जताई कि अब बच्चों में कहानियों का आकर्षण कम हो गया है। उन्होंने कहा "मैं अपने जीवन में बहुत लम्बे अरसे तक एक परिव्राजक के रूप में रहा। घुमंत ही मेरी जिंदगी थी। हर दिन नया गांव, नये लोग, नये परिवार लेकिन जब मैं परिवारों में जाता था तो मैं बच्चों से जरूर बात करता था और कभी-कभी बच्चों को कहता था कि चलो भई मुझे कोई कहानी सुनाओ, तो मैं हैरान होता जब बच्चे मुझे कहते थे, नहीं अंकल कहानी नहीं हम चुटकुला सुनायेंगे। मुझे भी वे यही कहते थे कि अंकल आप हमें चुटकुला सुनाओ यानी उनको कहानी से कोई परिचय ही नहीं था। ज्यादातर उनकी जिंदगी चुटकुलों में समाहित हो गई थी।"

मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि तीन–चार साल पहले ही, महाराष्ट्र में, फल और सब्जियों को एपीएमसी कानून के दायरे से बाहर किया गया था। इस बदलाव ने महाराष्ट्र के फल और सब्जी उगाने वाले किसानों की स्थिति बदली है पुणे और मुंबई में किसान साप्ताहिक बाज़ार खुद चला रहे हैं। इन बाज़ारों में, लगभग 70 गांवों के, साढ़े चार हज़ार किसानों का उत्पाद, सीधे बेचा जाता है - कोई बिचौलिया नहीं है। ग्रामीण-युवा, सीधे बाज़ार में, खेती और बिक्री की प्रक्रिया में शामिल होते हैं - इसका सीधा लाभ किसानों को होता है, गाँव के नौजवानों को रोजगार में होता है। तमिलनाडु के थेनी जिले के केला किसानों ने मिल करके अपना एक समूह बनाया है। बड़ा लचीली व्यवस्था है, और वो भी पांच–छ: साल पहले बनाया है। इस किसान समूह ने लॉकडाउन के दौरान आसपास के गांवों से सैकड़ों टन सब्जियां, फल और केले की खरीद की, और चेन्नई में बेचा . नौजवानों को उन्होंने रोजगार दिया, और बिचौलियें नहीं होने के कारण, किसान को भी लाभ हुआ, और, उपभोक्ता को भी लाभ हुआ। लखनऊ में किसानों का एक समूह है। किसानों के खेतों से, सीधे, फल और सब्जियाँ ली, और, सीधे जा करके, लखनऊ के बाज़ारों में बेची - बिचौलियों से मुक्ति हो गई और मन चाहे उतने दाम उन्होंने प्राप्त किये।

पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि गुजरात में बनासकांठा के रामपुरा गांव में इस्माइल भाई एक किसान है। उन्होंने नये तरीके से खेती शुरु की।वे अपने खेत के आलू, सीधे, बड़ी-बड़ी कंपनियों को बेचते हैं, बिचौलियों का नामों-निशान नहीं, और परिणाम - अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।

मणिपुर की रहने वाली बिजयशान्ति एक नये तरीके के चलते ख़ूब चर्चा में है, उन्होंने कमल की नाल से धागा बनाने का स्टार्टअप शुरू किया है। इसके कारण कमल की खेती और कपडा उद्योग में एक नया ही रास्ता बन गया है।

गौरतलब है कि हाल ही में संसद में कृषि संबंधी दो विधेयक पारित किए गए हैं जिनका देश के कई हिस्सों में भारी विरोध हो रहा है। इन विधेयकों के प्रावधानों के अनुसार किसान अपनी उपज देश में कहीं भी बेच सकता है।

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