प्रियंका ने पूछा-एक वैक्सीन, एक देश मगर अलग-अलग दाम क्यों हैं?
नई दिल्ली। कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव एवं उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने आरंभ किये गये जिम्मेदार कौन? अभियान के अंर्तगत देश की कोरोना वैक्सीनेशन नीति पर गहरी चिंता जताते हुए कहा है कि जिस प्रकार की गति और बार बार बदले जा रहे नियमों के तहत देशवासियों को वैक्सीन लगाने का काम चल रहा है। उसके लिहाज से सभी लोगों को समय से वैक्सीन मिल पाना असंभव सा ही लग रहा है। क्योंकि वैक्सीनेशन किए जाने के मामले में केंद्र ने अपना पीछा छुड़ाते हुए इसकी जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर डाल दी है। एक देश में एक ही वैक्सीन के अलग-अलग दाम होने से वैक्सीनेशन की नीति और भी अधिक उलझ गई है।
मंगलवार को अपने फेसबुक अकाउंट पर पोस्ट करते हुए कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव एवं उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा है विशेषज्ञों का मानना है कि ज्यादा से ज्यादा और जल्द वैक्सीनेशन कोरोना को हराने के लिए जरूरी है। जिन देशों ने अपने यहाँ ज्यादा वैक्सीन लगवाई है। उनमें कोरोना की दूसरी लहर का कम प्रभाव पड़ा है। हमारे देश में दूसरी लहर, पहली लहर से 320 प्रतिशत ज्यादा भयानक साबित हुई है। यह पूरे विश्व का रिकॉर्ड है।
भारत के पास स्मालपॉक्स, पोलियो की वैक्सीन घर-घर पहुंचाने का अनुभव है, लेकिन मोदी सरकार की दिशाहीनता ने वैक्सीन के उत्पादन और वितरण दोनों को चैपट कर दिया है।
भारत की कुल आबादी के मात्र 12 पतिशत को अभी तक पहली डोज मिली है और मात्र 3.4 प्रतिशत आबादी पूरी तरह से वैक्सिनेटेड हो पाई है। 15 अगस्त 2020 के भाषण में पीएम मोदी ने देश के हर एक नागरिक को वैक्सिनेट करने की जिम्मेदारी लेते हुए कहा था कि "पूरा खाका तैयार है।"
लेकिन अप्रैल 2021 में, दूसरी लहर की तबाही के दौरान, पीएम मोदी ने सबको वैक्सीन देने की जिम्मेदारी से अपने हाथ खींचते हुए, इसका आधा भार राज्य सरकारों पर डाल दिया।
उन्होंने सरकार से पूछा है कि मोदी सरकार ने 1 मई तक मोदी सरकार ने मात्र 34 करोड़ वैक्सीन का ऑर्डर दिया था तो बाकी वैक्सीन आएँगी कहाँ से?
उन्होंने कहा है कि देश में वैक्सीन अभाव के चलते कई राज्य सरकारें ग्लोबल टेंडर निकालने को मजबूर हुईं है। मगर उन्हें खास सफलता नहीं मिली है। फाइजर और मोडरिना जैसी कम्पनियों ने प्रदेश सरकारों से डील करने से इंकार कर दिया है। उन्होंने कहा है कि वे केवल केंद्र सरकार के साथ वैक्सीन डील करेंगे।
कांग्रेस महासचिव ने कहा है कि आज वैक्सीन लगाने वाले काफी केन्द्रों पर ताले लटके हैं एवं 18-45 आयु वर्ग की आबादी को वैक्सीन लगाने का काम बहुत धीमी गति से चल रहा है। मोदी सरकार की फेल वैक्सीन नीति के चलते अलग-अलग दाम पर वैक्सीन मिल रही है। जो वैक्सीन केंद्र सरकार को 150रू में मिल रही है, वही राज्य सरकारों को 400रू में और निजी अस्पतालों को 600रू में। कांग्रेस महासचिव ने पूछा है कि वैक्सीन तो अंततः देशवासियों को ही लगेगी तो यह भेदभाव क्यों?
उन्होंने कहा है कि भारत की 60 प्रतिशत आबादी के पास इंटरनेट नहीं है और कईयों के पास आधार या पैन कॉर्ड भी नहीं होता। ऐप आधारित वैक्सीनेशन प्रणाली के चलते भारत की एक बड़ी जनसँख्या वैक्सीन लेने से वंचित है। सरकार ने इस बारे में अभी तक प्रयास शायद इसलिए नहीं किया है क्योंकि रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया मुश्किल होने से कम समय में ज्यादा लोगों को वैक्सीन लगवाने का बोझ हल्का हो सकता है।
अगर हम दिसम्बर 2021 तक हर हिंदुस्तानी को वैक्सिनेट करना चाहते हैं तो हमें प्रतिदिन 70-80 लाख लोगों को वैक्सीन लगानी पड़ेगी। लेकिन मई महीने में औसतन प्रतिदिन 19 लाख डोज ही लगी हैं।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने केंद्र से पूछा है कि वैक्सीन नीति को गर्त में धकेलने के बाद मोदी सरकार ने "सबको वैक्सीन देने" की जिम्मेदारी से हाथ क्यों खींच लिया? आज क्यों ऐसी नौबत आई कि देश के अलग-अलग राज्यों को वैक्सीन के ग्लोबल टेंडर डालकर आपस में ही प्रतिदंद्विता करनी पड़ रही है?
उन्होंने सरकार की नीति पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा है कि एक वैक्सीन, एक देश मगर अलग-अलग दाम क्यों हैं? न पर्याप्त वैक्सीन का प्रबंध है, न तेजी से वैक्सीन लगवाने की योजना है तो सरकार किस मुँह से कह रही है कि इस साल के अंत तक हर एक हिंदुस्तानी को वैक्सीन मिल चुकी होगी? अगली लहर से देशवासियों को कौन बचाएगा? इंटरनेट एवं डिजिटल साक्षरता से वंचित आबादी के लिए केंद्र सरकार ने वैक्सीनेशन की कोई योजना क्यों नहीं बनाई? क्या मोदी सरकार के लिए उनकी जानें कीमती नहीं हैं?