चुनावी प्रक्रिया में मुसलमानों को शामिल करें- राकांपा (एपी) उपाध्यक्ष
पुणे। देश में राजनीतिक प्रक्रिया से मुस्लिम समुदाय को बाहर करने की शिकायत करते हुए महाराष्ट्र राष्ट्वादी कांग्रेस पार्टी (अजीत पवार) के उपाध्यक्ष सलीम सारंग ने मंगलवार को मांग किया कि मुसलमानों को चुनावी प्रक्रिया में शामिल करने के लिए राजनीतिक दलों को सक्रिय कदम उठाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मुसलमानों को उम्मीदवारी प्रदान करें और सुनिश्चित करें कि उनके मुद्दों को विधायी एजेंडे में संबोधित किया जाए।
हाल के वर्षों में भारत के राजनीतिक परिदृश्य में, विशेष रूप से महाराष्ट्र में मुस्लिम समुदाय के प्रति उपेक्षा की चिंताजनक प्रवृत्ति के बारे में उन्होंने कहा कि राजनीतिक प्रतिनिधित्व की कमी और प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा मुसलमानों को कम उम्मीदवारी देने के कारण उनका हाशिए पर जाना स्पष्ट है। उन्होंने एक प्रेस बयान में कहा कि पर्याप्त मुस्लिम आबादी के बावजूद, किसी भी प्रमुख पार्टी ने लगातार मुस्लिम उम्मीदवारों को अच्छी संख्या में मैदान में नहीं उतारा है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक प्रक्रिया से यह बहिष्कार मुसलमानों को नीति को प्रभावित करने और समुदाय से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने के अवसर से वंचित करता है। सारंग ने कहा कि केंद्रीय स्तर पर स्थिति समान रूप से चिंताजनक है, क्योंकि वर्तमान केंद्र सरकार में एक भी मुस्लिम मंत्री नहीं है।
उन्होंने कहा कि सत्ता के उच्चतम स्तर पर यह अनुपस्थिति मुस्लिम समुदाय को हाशिए पर डाल रही है, राष्ट्रीय निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में योगदान करने की उनकी क्षमता को बाधित करती है। उन्होंने कहा कि राज्य और केंद्रीय दोनों स्तरों पर प्रतिनिधित्व की कमी राजनीतिक उपेक्षा की व्यापक प्रवृत्ति को उजागर करती है। यह कहते हुए कि यह असमानता भारत सरकार और मुस्लिम समुदाय दोनों द्वारा आत्मनिरीक्षण की मांग करती है, मुस्लिम वेलफेयर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने सरकार से समावेशी प्रतिनिधित्व के महत्व को पहचानने का आग्रह किया ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि राष्ट्र की विविध आवाज़ें सुनी जाती हैं।
उन्होंने सुझाव दिया कि इसके साथ ही मुस्लिम समुदाय को राजनीतिक गतिविधियों में अधिक भागीदारी, अधिकारों की वकालत और चिंताओं को व्यक्त करने में एकजुट होकर राजनीतिक प्रक्रिया में ज्यादा सक्रिय रूप से शामिल होना चाहिए जो भारतीय राजनीति में उनकी उपस्थिति और प्रभाव को बढ़ाने के उनके प्रयासों में मदद कर सकता है। उन्होंने कहा कि केवल सरकार द्वारा सचेत प्रयासों और समुदाय द्वारा सक्रिय भागीदारी के माध्यम से ही इस अंतर को पाटा जा सकता है, जिससे भारत में वास्तव में प्रतिनिधित्व और लोकतांत्रिक राजनीतिक माहौल को बढ़ावा मिलता है।