सरकार की वादा खिलाफी पर HC ने मांगा जवाब
नैनीताल । उत्तराखंड परिवहन निगम (यूटीसी) की खराब माली हालत और कर्मचारियों के पांच महीने से लंबित वेतन के मामले में राज्य सरकार को शुक्रवार को उच्च न्यायालय में उस समय फजीहत झेलनी पड़ी जब निगम की ओर से दावा किया गया कि सरकार की ओर से मुख्यमंत्री राहत कोष से धन देने का वादा पूरा नहीं हो पाया है।
यूटीसी कर्मचारी यूनियन की ओर से दायर जनहित याचिका पर मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की युगलपीठ में सुनवाई हुई। निगम के प्रबंध निदेशक (एमडी) डाॅ. आशीष चौहान शुक्रवार को अदालत में वर्चुअली पेश हुए। एमडी की ओर से निगम की वित्तीय स्थिति को लेकर अदालत में रिपोर्ट सौंपी गयी।
चौहान की ओर से अदालत को बताया गया कि निगम की वित्तीय स्थिति बेहद खराब है। कोविड महामारी के चलते स्थिति और खराब हुई है। बसों का संचालन ठप है। फलस्वरूप निगम अपने कर्मचारियों को वेतन और अन्य देयकों का भुगतान नहीं कर पा रहा है।
चौहान की ओर से यह भी कहा गया कि इस साल जनवरी से मई तक के लंबित वेतन के भुगतान के लिये निगम को लगभग 91 करोड़ रुपये की धनराशि की जरूरत है। सरकार की ओर से हिल लाॅस और विभिन्न स्कीमों के तहत बकाया राशि का भुगतान नहीं किया गया है।
सरकार की ओर से अप्रैल में की गयी घोषणा के मुताबिक अभी तक चालीस करोड़ की धनराशि अवमुक्त नहीं की गयी है। इसमें से बीस करोड़ रुपये ऋण के रूप में और बाकी 20 करोड़ बतौर मुख्यमंत्री राहत कोष से देने का वादा किया गया था। सरकार की ओर से हालांकि मुख्य स्थायी अधिवक्ता सीएस रावत की ओर से अदालत को बताया गया कि निगम को 20 करोड़ की धनराशि अवमुक्त कर दी गयी है।
निगम की ओर से यह भी कहा गया कि हरिद्वार बाईपास रोड पर मौजूद निगम की पांच एकड़ भूमि को प्रदेश सरकार औने पौने दाम पर शहरी विकास विभाग को देना चाहती है। जिसका बाजार मूल्य 250 करोड़ है। अदालत ने इस पर रोक लगायी है।
इसके बाद अदालत ने सरकार से दो बिन्दुओं पर जवाब मांगा है। अदालत ने कहा कि सरकार बताये कि क्या घोषणा के मुताबिक 40 करोड़ रुपये की धनराशि अवमुक्त की गयी है या नहीं और दूसरे सरकार हरिद्वार बाईपास (प्रिंस चैक) पर मौजूद बेशकीमती जमीन को लेकर अपनी स्थिति साफ करे। इस मामले में अगली सुनवाई 25 जून को होगी।
वार्ता