रेस्क्यू में वसुधैव कुटुम्बकम् के अनुसरण ने बढ़ाई भारत की साख

रेस्क्यू में वसुधैव कुटुम्बकम् के अनुसरण ने बढ़ाई भारत की साख

नई दिल्ली। अपने देश के नागरिकों को बचाने व संकट से निकालने का काम हर देश की सरकारें करती हैं, वो कार्य भारत की सरकार ने भी किया लेकिन इस रेस्क्यू ऑपरेशन की विशेषता यह थी कि कोविड जैसी गंभीर महामारी के दौरान वंदे भारत मिशन में 1 लाख 1 हजार विदेशी नागरिकों को उनके देश तक पहुंचाने की व्यवस्था समूचे विश्व में लगे लॉकडाउन के बाद की गई। यही वो कार्य है जो मानवता का संदेश देने के साथ वसुधैव कुटुम्बकम् को प्रदर्शित करता है। वैसे देखा जाए तो पिछले 8 वर्षों में यह कार्य एक बार नहीं बल्कि आधा दर्जन से अधिक बार हुआ है जो मानवता की जीती-जागती मिसाल है।

अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् महाउपनिषद् में वर्णित यह श्लोक भारतीय संस्कृति की संपूर्ण व्याख्या करता है। इसका अर्थ है कि यह मेरा है, यह पराया है, ऐसे विचार तुच्छ या निम्न कोटि के व्यक्ति के होते हैं। उच्च चरित्र वाले व्यक्ति संसार को ही अपना कुटुम्ब मानते हैं। इसी धारणा में विश्व कल्याण की अवधारणा शामिल है। भारतीय संस्कृति प्राचीनकाल से ही सहिष्णुता, उदारता और लचीलेपन का संदेश देती रही है। हमारी संस्कृति आदिकाल से ही समस्त विश्व को एक ही वसुंधरा का पुत्र बताते हुए एक परिवार मानती आई है। भारत वसुधैव कुटुम्बकम् को लगातार चरितार्थ कर रहा है। इससे भारत की ख्याति पूरे विश्व में बढ़ रही हैं।

वर्ष 2014 के बाद भारत ने विदेशों में कई बड़े रेस्क्यू ऑपरेशन किए हैं। विश्व में कोविड महामारी के दौरान देश ने अब तक का अपना सबसे बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया। वर्ष 2020 में समूचे विश्व ने कोविड महामारी के पांव पसराने के बाद अपने-अपने देशों में लॉकडाउन लगा दिया। इससे विदेशों में कार्यरत 45 लाख से अधिक भारतीय 98 देशों में फंस गए। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, नागर विमानन मंत्रालय व पोत परिवहन मंत्रालय की संयुक्त टीम रेस्क्यू ऑपरेशन कर 45 लाख 82 हजार 43 नागरिकों को विदेशों से भारत लाने में सफल रही। वंदे भारत मिशन के नाम से चले इस रेस्क्यू ऑपरेशन में न सिर्फ हवाई यात्राएं बल्कि नौसेना के जहाजों का भी प्रयोग किया गया। 15 चरणों में चले इस ऑपरेशन में 30 हजार से अधिक उड़ाने हुईं। वैसे तो अपने देश के नागरिकों को बचाने व संकट से निकालने का काम हर देश की सरकारें करती हैं। वो कार्य भारत की सरकार ने भी किया, लेकिन इस रेस्क्यू ऑपरेशन की विशेषता यह थी कि कोविड जैसी गंभीर महामारी के दौरान वंदे भारत मिशन में 1 लाख 1 हजार विदेशी नागरिकों को उनके देश तक पहुंचाने की व्यवस्था समूचे विश्व में लगे लॉकडाउन के बाद की गई। यही वो कार्य है जो मानवता का संदेश देने के साथ वसुधैव कुटुम्बकम् को प्रदर्शित करता है। वैसे देखा जाए तो पिछले 8 वर्षों में यह कार्य एक बार नहीं बल्कि आधा दर्जन से अधिक बार हुआ है जो मानवता की जीती-जागती मिसाल है। मौजूदा समय में चल रही यूक्रेन-रूस युद्ध के दौरान भी इसी तरह का मामला पेश आया था। युद्ध में भारत के 20 हजार से अधिक लोग फंस गए थे। इसमें भारत ने युद्ध के दौरान ही ऑपरेशन गंगा के तहत हंगरी, स्लोवाकिया, पोलैंड और रोमानिया के रास्ते 46 विशेष विमानों से भारत समेत पड़ोसी मुल्क के नागारिकों को बचाया था। इसमें बांग्लादेश व श्रीलंका समेत अन्य पड़ोसी देशों के लोग शामिल थे। भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का दावा तो यहां तक है कि प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप के कारण जंग को रुकवाकर रेस्क्यू ऑपरेशन किया गया था। अभी हाल ही में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत आई थीं। उन्होंने रुस-यूक्रेन जंग के दौरान बांग्लादेशियों को सुरक्षित उनके देश पहुंचाने व बंग्लादेश को कोविड 19 की वैक्सीन उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त किया था और भारत को अपना टेस्टेड मित्र बताया था।

वर्ष 2021 में ऑपरेशन देवी शक्ति में अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद हजारों भारतीयों समेत पाकिस्तान के नागरिकों को सुरक्षित निकाला गया था। भारत आने के इच्छुक कई अफगान सिख और हिंदू समाज के लोगों को भी इस ऑपरेशन में सुरक्षा की दृष्टि से लाया गया था। इसी तरह वर्ष 2015 में यमन सरकार और हूती विद्रोहियों के बीच संघर्ष शुरु हुआ। इसमें बमबारी और युद्ध क्षेत्र में 4 हजार 741 भारतीय फंस गए। भारत ने अपने देश के नागरिकों समेत 1947 विदेशियों को भी समुद्री और हवाई रास्ते से रेस्क्यू कर बाहर निकाला। विदेशियों में ब्रिटेन, फ्रांस, संयुक्त राज्य अमेरिका व पाकिस्तान समेत 26 देशों के नागरिक शामिल थे। इस रेस्क्यू का नाम ऑपरेशन राहत दिया गया था। यह ऑपरेशन इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि भारतीय राजनयिक फ्रांस, अमेरिका व अन्य ताकतवर देशों की अपेक्षा रेस्क्यू का मार्ग बनाने में सफल रहे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यक्तिगत रूप से सऊदी अरब के किंग सलमान से बात करते हुए भारतीय नागरिकों को वहां से निकालने के लिए सुरक्षित मार्ग दिए जाने की बात की थी। मोदी की बातों को किंग सलमान ने माना था जबकि अमेरिका और फ्रांस समेत अन्य ताकतवर देश इसमें फेल हो गए थे। बाद में भारतीय रेस्क्यू टीम ने प्रधानमंत्री की नीतियों का अनुसरण करके विदेशी नागरिकों को युद्ध क्षेत्र से सुरक्षित बाहर निकाला था। जर्मन राजदूत माइकल स्टेनर ने यमन में फंसे जर्मन नागरिकों को सुरक्षित निकालने के लिए भारत सरकार को धन्यवाद दिया था। इसी वर्ष 2015 में ही नेपाल में भंयकर भूकंप आया था। यह नेपाल का अब तक का दूसरा सबसे बड़ा भूकंप था। भूकंप के तुरंत बाद भारत ने ऑपरेशन मैत्री के तहत 5 हजार 88 भारतीयों को निकालने के साथ 785 विदेशियों को भी सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया। बाद में इन विदेशियों को ट्रांजिट वीजा भी दिया गया व नेपाल में बड़े पैमाने पर राहत सामग्री भी भेजी गई। यह तमाम रेस्कयू ऑपरेशन इस बात के गवाह हैं कि भारत ने अपने रेस्क्यू ऑपरेशन में सिर्फ अपने देश के नागरिकों को ही नहीं बल्कि फंसे सभी विदेशियों को निकालकर मानवता की रक्षा करते हुए भारतीय संस्कृति के मूल वसुधैव कुटुम्बकम् को फलीभूत किया। भारत की विदेश में बढ़ती लोकप्रियता व साख में एक बड़ी वजह ये रेस्क्यू ऑपरेशन भी हैं। इन तमाम ऑपरेशनों में विदेशियों से संबंध रखने वाले सभी देश भारत के प्रति कृतज्ञता जता चुके हैं। खासतौर से वो विदेशी नागरिक जो जिंदगी और मौत के बीच में फंसे हुए थे। रेस्क्यू टीम के निकालने के बाद वो भारत के वसुधैव कुटुम्बकम् के सिद्धांत के कायल हो गए और हमेशा से लिए उनके मन में भारत व भारतीयों के प्रति अथाह प्रेम उमड़ता रहेगा। (हिफी)

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