घटता जीवन- गलत जीवनशैली बनी गर्दन और रीढ के लिए घातक
नयी दिल्ली। दुघर्टनाओं और गलत जीवनशैली के कारण देश में गर्दन एवं रीढ़ की हड्डी(स्पाइनल कॉर्ड) के क्षतिग्रस्त होने की समस्याएं बढ़ रही हैं। देश में करीब 15 लाख लोगों को गर्दन अथवा स्पाइनल काॅर्ड में चोट लगने के कारण विकलांगता का जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है। अनुमानों के अनुसार देश में हर साल स्पाइनल काॅर्ड के चोटिल होने के 20 हजार से अधिक मामले आते हैं।
ऊंचाई से गिरने, खेल-कूद और मार-पीट जैसे कई कारणों से गर्दन क्षतिग्रस्त हो सकती है और कई बार इसकी वजह से मौत भी हो सकती है। इसके अलावा गलत तरीके से व्यायाम करने और सोने–उठने–बैठने के गलत तौर-तरीकों से भी गर्दन दर्द की समस्या हो सकती है।
नयी दिल्ली के फोर्टिस एस्कार्ट्स हार्ट रिसर्च इंस्टीच्यूट के ब्रेन एवं स्पाइन सर्जरी विभाग के निदेशक डा. राहुल गुप्ता के अनुसार गर्दन हमारे शरीर का महत्वपूर्ण हिस्सा है। गर्दन की गतिशीलता की मदद से ही हम आगे-पीछे देखते हैं, कम्प्यूटर आदि पर काम करते हैं या किसी से बात करते हैं। गर्दन में हमारे शरीर का बहुत ही नाजुक अंग है, जिसे स्पाइनल काॅर्ड कहा जाता है, जो कई कारणों से चोटिल हो सकता है।
अगर गर्दन में चोट बहुत हल्की हो तो आराम करने या फीजियोथिरेपी से राहत मिल जाती है लेकिन कई लोगों के लिए गर्दन में चोट विकलांगता का भी कारण बन जाता है। ऐसे में जरूरी है कि गर्दन में चोट या गर्दन की किसी भी समस्या की अनदेखी नहीं करें। अगर आराम करने या दवाइयों के सेवन से भी गर्दन दर्द बढ़ता जाए या गर्दन दर्द बांहों और पैरों तक फैल जाए अथवा सिर दर्द, कमजोरी, हाथों और पैरों में सुन्नपन और झुनझुनी आए तो तुरंत न्यूरो एवं स्पाइन विशेषज्ञ से जांच और इलाज कराएं।
डा. राहुल गुप्ता बताते हैं कि कई बार जब गर्दन की हड्डी में ज्यादा कैल्शियम जमा हो जाता है जिससे हड्डी का क्षेत्र कम हो जाता है और स्पाइनल कार्ड के लिए जगह नहीं होती है। ऐसे में हल्की चोट लगने से भी स्पाइनल कार्ड क्षतिग्रस्त हो सकता है। इसके अलावा वहां पर खून की नस- वर्टेव्रल आर्टरी होती है और उसमें भी अगर चोट लगे तो गर्दन में दर्द हो सकता है। सर्वाइकल काॅर्ड में चोट लगने से गर्दन में दर्द की समस्या बहुत ही आम है और इससे काफी लोग ग्रस्त रहते हैं। लेकिन अगर क्वाड्रिप्लेजिया पैरालाइसिस होने पर मरीज को ताउम्र विकलांग जीवन व्यतीत करना पड़ सकता है। उसे बिस्तर पर ही रहने को मजबूर होना पड़ सकता है, उसे बेड सोर यानी बिस्तर पर लंबे समय तक सोने से होने वाले घाव सकते हैं और सांस लेने में तकलीफ हो सकती है और वह रोजमर्रा के कामकाज एवं दिनचर्या के लिए अपने परिजनों पर ही पूरी तरह से निर्भर हो जाता है।
जारी वार्ता