शौंक ही नहीं समय की जरूरत है 'सी प्लेन'

शौंक ही नहीं समय की जरूरत है सी प्लेन

नई दिल्ली। सरकार देश भर में सीप्लेन सेवाओं के लिए 14 और वॉटर बेस बनाने की योजना तैयार कर रही है। हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के केवड़िया में 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' और अहमदाबाद के साबरमती रिवरफ्रंट के बीच इस तरह की सेवा का उद्घाटन किया।

शिपिंग मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार सरकार का लक्ष्य क्षेत्रीय हवाई संपर्क की उड़ान योजना के तहत देशभर में 14 ऐसे वॉटर बेस बनाने का है। एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया और नागर विमानन मंत्रालय ने भारतीय आंतरिक जलमार्ग प्राधिकरण से हाइड्रोग्राफिक सर्वे करने के लिए कहा है। साथ ही बाद में यात्रियों के आवागमन की सुविधाएं और विमानों के लिए जेटी विकसित करने में मदद के लिए भी कहा है। पोत परिवहन मंत्री मनसुख मांडविया ने पिछले हफ्ते कहा था कि सी-प्लेन सेवा की शुरुआत गुजरात में करने के बाद गुवाहाटी, उत्तराखंड और अंडमान एवं निकोबार में इसकी नियमित सेवाएं शुरू की जाएंगी। सरकार की योजना से लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार, असम, महाराष्ट्र और उत्तराखंड में इस सेवा का लाभ मिलने की संभावना है।

गुजरात में विधानसभा चुनाव के समय सी प्लेन सामने आया था। संयोग की बात कि बिहार में विधान सभा चुनाव और 50 से ऊपर सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं तब फिर सी प्लेन सामने आया। इस बार सी प्लेन बडा संदेश देता हुआ आया है लेकिन काफी समय बाद दिखाई पड़ा, इसलिए जान लेना जरूरी है कि सी-प्लेन क्या होता है? दरअसल यह एक तरह का हवाई जहाज होता है, जिसे उड़ान भरने के लिए रनवे की जरूरत नहीं होती। यह जहाज पानी से भी टेक ऑफ और लैंडिंग कर सकता है। हवाई सेवा का यह अंग बन रहा है लेकिन हवाई अड्डे की जरूरत नहीं। जल परिवहन का एक साधन भी है। सरदार वल्लभ भाई पटेल की 145वीं जन्म तिथि पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केवड़िया साबरमति एयरोड्रोम्स और सीप्लेन सेवा की शुरुआत की थी। यह सीप्लेन सेवाएं गुजरात के दो बड़े प्रोजेक्ट्स से जुड़ेंगी। इस सेवा के जरिए अहमदाबाद और केवड़िया में साबरमति रोवर फ्रंट की 200 किमी की दूरी को कम समय में पूरा किया जा सकेगा। पहले सड़क मार्ग के जरिए इस दूरी को तय करने में 4 घंटे का वक्त लगता था, लेकिन हवाई जहाज के जरिए इसे 45 मिनट में पूरा कर लिया जाएगा।

भारत में आंतरिक जल परिवहन जरूरत भी है क्योंकि भारत एक नदियों का देश है। अतः यहां जल परिवहन की व्यापक संभावनाएं हैं। नदियां और नहर प्रणालियां आंतरिक जल परिवहन मार्ग का कार्य करती है तथा देश के आंतरिक क्षेत्रों को बड़े तटीय बंदरगाहों से जोड़ती है। देश में आंतरिक जल मार्गों की सर्वाधिक लम्बाई उत्तर प्रदेश में है। रेलवे के आगमन से पूर्व ही आंतरिक जल परिवहन का महत्वपूर्ण स्थान था। आंतरिक जल परिवहन एक सस्ता, ईधन प्रभावी तथा पर्यावरण अनुकूल तरीका है, जो भारी वस्तुओं की दुलाई हेतु उपयुक्त होता है और साथ ही रोजगार निर्माण की व्यापक क्षमता रखता है। हालांकि भारत के कुल यातायात में आंतरिक जल परिवहन का अंश केवल एक प्रतिशत है। भारत में नदी तंत्रों का 14500 किलोमीटर क्षेत्र नौचालन योग्य है। भारत में कई महत्वपूर्ण आंतरिक जलमार्ग हैं। जैसे- गंगा-भागीरथी (हुगली का ऊपरी प्रवाह)। इस भाग में क्रमिक ढाल एवं सुगम प्रवाह मौजूद है तथा सघन जनसंख्या का जमाव भी है। दूसरा है ब्रह्मपुत्र एवं उसकी सहायक नदियां जैसे महानदी, कृष्णा एवं गोदावरी के डेल्टाई प्रवाह। बराक नदी (उत्तर-पूर्व में) गोवा-मांडोवी एवं जुआरी की नदियां।केरल के कयाल। नर्मदा एवं ताप्ती की निचली रीच।पश्चिमी तट पर पश्चिम की ओर प्रवाहित होने वाली नदियों की संकरी खाड़ियां, जैसे-काली, शरावती एवं नेत्रवती। नहरें, जैसे-बकिंघम नहर- कृष्णा डेल्टाई की कोम्मानूर नहर से लेकर माराक्कानम (चेन्नई के 100 किमी. दक्षिण में) तक। कुम्बेरजुआ नहर-गोवा में मांडोवी एवं जुआरी को जोड़ती है। वेदारण्यम नहर वेदारण्यम को नागपट्टनम बंदरगाह से जोड़ती है।

आंतरिक जल परिवहन की वर्तमान स्थिति को देखें तो गंगा-भागीरथी हुगली जलमार्ग है। इस जलमार्ग पर यात्रियों के अतिरिक्त खाद्यान्न, कोयला, धातु अयस्क, उर्वरक, कपड़ा एवं चीनी का परिवहन किया जाता है। ब्रह्मपुत्र जल मार्ग है। यहां जूट, चाय, लकड़ी, चावल, खाद्य तेल, मशीनरी तथा उपभोक्ता वस्तुओं का परिवहन किया जाता है। कृष्णा-गोदावरी डेल्टा है। कोरलक पश्चजल या कयाल में नारियल, मछली, सब्जियां,ईट व खप्पर तथा इमारती लकड़ी को परिवहित किया जाता है। कोचीन बंदरगाह पर आयातित होने वाले माल का 10 प्रतिशत इन्हीं जलमागों द्वारा ढोया जाता है। गोवा की नदियां भी परिवहन का साधन हैं। यहां लौह-अयस्क (मर्मगाव बंदरगाह को), मैगनीज अयस्क, मछली, नारियल एवं इमारती लकड़ी का परिवहन किया जाता है। देश में निर्मित विभिन्न क्षमताओं की नावों ने भी कागों और यात्रियों का परिवहन किया है।

सन् 1967 में कलकत्ता (कोलकाता) में केंद्रीय आंतरिक जल-परिवहन निगम की स्थापना के साथ ही अन्य स्थानों पर भी शाखायें स्थापित की गई थीं। इसकी मुख्य जिम्मेदारी देश के आंतरिक जलमार्गों से नावों द्वारा और भारत एवं बांग्लादेश के बीच मान्य मार्गों से सामान का परिवहन करना है। बांग्लादेश के साथ प्रोटोकॉल समझौता है। भारत-बांग्लादेश वाणिज्य और बांग्लादेश से प्रेषण या परिवहन के लिए एक-दूसरे के जलमार्गों का प्रयोग करने की अनुमति देता है।

शिपिंग और समुद्री आवागमन के उद्देश्य को पूरा करने के लिए वर्ष 1986 में इनलैण्ड वाटवेज अथॉरिटी ऑफ इण्डिया (आईडब्ल्यूएआई) की स्थापना की गयी। इसका मुख्यालय नोएडा (उत्तर प्रदेश) में है। आईडब्ल्यूएआई मुख्य रूप से राष्ट्रीय जलमार्ग के विकास, रख-रखाव और नियमन के लिए जिम्मेदार है। पांच जल-मार्ग (2010-11 तक) राष्ट्रीय जलमार्ग के तौर पर घोषित किए गए थे। इनमें 1986 में गंगा-भागीरथी-हुगली नदी तंत्र का 1620 किमी.लंबा इलाहाबाद-हल्दिया मार्ग है। इसी प्रकार1988 ई. में ब्रह्मपुत्र नदी (राष्ट्रीय जलमार्ग-2) का 891 किमी. लंबा सदिया-घुबरी मार्ग बना।1991 ई. में उद्योगमंडल कनाल (250 किलोमीटर) और चंपाकारा कनाल के साथ पश्चिम तटीय कनाल का कोट्टापुरम कनाल। यह राष्ट्रीय जलमार्ग-3 है। 2008 में गोदावरी और कृष्णा नदी पर 1028 किमी. लंबा जलमार्ग जो काकीनाडा और पुदुचेरी कनाल और कालुवैली टैंक पर बना है। 2008 में घोषित 585 किमी. लंबा जलमार्ग जो ब्रह्माणी नदी के तालचर घमारा कैनल, पूर्वी तटीय कैनल के गोयनखली छरबतिया, महानदी डेल्टा नदी-तंत्र के साथ मताई नदी पर फैले छरबतिया-घमारा मार्ग को अपने अंदर समेटता है। बराक नदी पर 121 कि.मी. का लखीमपुर-भंगा मार्ग देश का छठवां जलमार्ग है। इसके परिणामस्वरूप उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र, विशेष रूप से असम, नागालैंड, मिजोरम, मणिपुर, त्रिपुरा एवं अरुणाचल प्रदेश क्षेत्रों के जहाजरानी एवं माल परिवहन में एकीकृत विकास होगा। इसे केंद्रीय मंत्रिमण्डल ने जनवरी 2013 में छठवें जलमार्ग के तौर पर स्वीकृति प्रदान की थी। (हिफी)

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