हठधर्मी को छोड़ करें बात
लखनऊ। यह आंदोलन दरअसल किसानों का नहीं है। किसान और मजदूर ज्यादा दिन आंदोलन कर ही नहीं सकते। हममें से कयी लोग यह अनुभव कर चुके होंगे कि निजी क्षेत्र में कार्य के दौरान मालिक ने कितना शोषण किया और भुगतान भी नहीं दिया। डीएलसी अर्थात सहायक श्रमायुक्त के कार्यालय में महीनों दौडने के बाद मजदूर के सामने दो वक्त की रोटी के जुगाड की समस्या आ जाती है। वह इन्कलाब जिंदाबाद का नारा लगाना भूल जाता है। इसी तरह किसान को भी अपने खेतों से फुर्सत नहीं मिलती। इन दिनों तो गेहूं की फसल बोने की तैयारी चल रही है। किसान आंदोलन करेगा तो उसका खेत कैसे तैयार होगा। हां, यह सच है कि सरकार के ये कानून उसकी समझ में नहीं आ रहे हैं। किसान दस बीस कुंटल धान, मक्का गेंहूं पैदा करता है और अपने खाने के लिए रखने के बाद उपज को बेचना चाहे तो उसे कभी भी न्यूनतम समर्थन मूल्य अर्थात एमएसपी नहीं मिल पाता। गांव के बनिये अथवा विचैलिये के हाथ कम दाम पर बेचना पडता है। तुरंत नकद भुगतान भी नहीं मिलता बल्कि उधारी पर बिकता है। इस बात को सभी जानते हैं, सरकार में बैठे लोग भी इस सच्चाई से वाकिफ हैं। ऐसे लोग आंदोलन क्या करेंगे?
आंदोलन कर रहे किसान मठाधीश हैं। इसीलिए सरकार से बातचीत के दौरान किसान नेताओं ने कहा कि हमारे पास एक साल की सामग्री है। हम पिछले कई दिनों से सड़क पर हैं। अगर सरकार चाहती है कि हम सड़क पर रहें, तो हमें कोई समस्या नहीं है। हम अहिंसा का रास्ता नहीं अपनाएंगे। इंटेलिजेंस ब्यूरो आपको सूचित करेगा कि हम विरोध स्थल पर क्या कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम कॉरपोरेट फार्मिंग नहीं चाहते हैं। इस कानून से सरकार को फायदा होगा, किसान को नहीं। ये कथित किसान हठ करने की हैसियत रखते हैं और सरकार को तो हठ करने का अधिकार मिल ही जाता है। सरकार चुनाव में पराजित नेता को जब मंत्री बना सकती है, तब जनता के सामने हठ ही दिखाया जाता है कि देखो तुमने चुनाव में नहीं जिताया लेकिन हम सदन में बैठे हैं। किसान और नेता दोनों हठ छोडे तभी बात बन सकती है।
केंद्र सरकार के तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों ने आठ दिसम्बर को 'भारत बंद' का ऐलान कर दिया है और चेतावनी दी कि यदि सरकार उनकी मांगें नहीं मानती है तो वे राष्ट्रीय राजधानी की तरफ जाने वाली और सड़कों को बंद कर देंगे। सरकार के साथ पांचवें दौर की बातचीत से पहले ही किसानों ने अपना रुख और सख्त कर लिया था। वार्ता की टेबल पर पहुंचते ही किसान नेताओं ने कहना शुरू कर दिया कि बात बहुत हो चुकी, अब सरकार लिखकर दे। सूत्रों ने अनुसार सरकार ने गतिरोध खत्म करने के लिए उन प्रावधानों का संभावित हल तैयार कर लिया है, जिन पर किसानों को ऐतराज है।
चौथे दौर की वार्ता के समय किसानों ने भावी कदम तय करने के लिए दिन के समय बैठक की। बैठक के बाद किसान नेताओं में एक गुरनाम सिंह चडोनी ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि यदि केंद्र सरकार 5 दिसंबर की वार्ता के दौरान उनकी मांगों को स्वीकार नहीं करती है, तो वे नए कृषि कानूनों के खिलाफ अपने आंदोलन को तेज करेंगे। भारतीय किसान यूनियन के महासचिव हरिंदर सिंह लखवाल ने कहा, आज की हमारी बैठक में हमने आठ दिसम्बर को 'भारत बंद' का आह्वान करने का फैसला किया और इस दौरान हम सभी टोल प्लाजा पर कब्जा भी कर लेंगे। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार एक मसौदा तैयार करेगी और हमें देगी। उन्होंने कहा कि वे अन्य राज्यों के किसान प्रतिनिधियों से भी सलाह लेंगे। एमएसपी पर भी चर्चाएं हुईं लेकिन हमने कहा कि हमें कानूनों को भी अपनाना चाहिए और उनको वापस लेने पर भी बात करनी चाहिए।
हठधर्मिता दोनों तरफ से दिखाई पड़ रही है इसीलिए भारत बंद (8 दिसंबर को) घोषित किया गया है। किसान नेता 5 दिसम्बर की बैठक में एक समय मौन धारण कर लिये और हाथ में तख्ती लेकर बता रहे थे कि कानून वापस लेने के लिए हां या ना में जवाब दिया जाए। शाम को बिना किसी नतीजा के वे विज्ञान भवन से बाहर निकल गए । किसानों का कहना था कि आज की बैठक बेनतीजा रही। किसान प्रतिनिधियों का कहना है कि वह केवल हां और नहीं में जवाब चाहते हैं। किसान नेता केवल कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े हैं। इस प्रकार केंद्र सरकार और किसान नेताओं के बीच पांचवे दौर की बैठक खत्म हो गई है। सरकार ने किसान नेताओं के सामने 9 दिसंबर को छठे दौर की बातचीत का प्रस्ताव रखा है।
बैठक के दौरान किसान नेताओं ने मौन धारण कर लिया था। किसान नेता तख्ती लेकर बैठ गए। उनका कहना था कि अब जवाब हां या नहीं में चाहिए जबकि बैठक के कमरे से कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पीयूष गोयल बाहर निकल गए थे। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने केंद्र के तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों से कहा कि सरकार संशोधन के लिए राजी है। सरकार की तरफ से साफ किया गया है कि तीनों कानूनों को पूरी तरह वापस नहीं लिया जा सकता।इस पर किसानों ने साफ किया, तीनों कानून वापस हों। समझ में नहीं आता कि इस प्रकार सरकार और किसान नेता हठ क्यों दिखा रहे हैं। कृषि मंत्री ने कहा कि सर्दी और कोरोना महामारी का समय है। इसलिए हम किसान संगठनों से अनुरोध कर रहे हैं कि बुजुर्गों और बच्चों को घर भेज दिया जाए। मोदी सरकार लगातार किसानों की भलाई के लिए काम कर रही है। इस सरकार में किसानों की आमदनी भी बढ़ी है। नरेंद्र तोमर ने कहा कि एपीएमसी और मजबूत हो, सरकार इसके लिए तैयार है। सरकार एपीएमसी पर किसानों की गलतफहमी दूर करने के लिए तैयार है। हम लोग चाहते थे कि कुछ और बिंदुओं पर सुझाव मिल जाएं लेकिन इस बैठक में ऐसा नहीं हो सका। इसलिए 9 दिसंबर को अगले दौर की बैठक होगी। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि किसान नेताओं के साथ अच्छे माहौल में चर्चा हुई। एमएसपी जारी रहेगी. अगर किसानों को किसी भी बिंदु पर शंका है तो सरकार उसका समाधान करने के लिए तैयार है। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा कि हमारी सरकार किसानों के प्रति प्रतिबद्ध थी, है और आगे भी रहेगी। उन्होंने कहा कि किसान नेताओं से अच्छे माहौल में बातचीत हुई है। किसानों से सभी पहलुओं पर चर्चा हुई है लेकिन एमएसपी जारी रहेगी। मतलब यह कि हम सब कुछ करने को तैयार हैं, पंचों की राय सिर माथे लेकिन खूंटा वहीं गड़ेगा। (हिफी)