'खालिस्तानी बोल' पर शिरोमणि अकाली दल खामोश, उठ रहे कई सवाल
नई दिल्ली । श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) अध्यक्ष की 'खालिस्तान' की खुली हिमायत का पंजाब में कहीं तीखा तो कहीं धीमा विरोध शुरू हो गया है। इतना तूफान खड़ा होने के बाद भी शिरोमणि अकाली दल, उसके सरपरस्त प्रकाश सिंह बादल और प्रधान सुखबीर सिंह बादल एवं राज्य के हर घटनाक्रम पर बयानबाजी के लिए तत्पर रहने वालीं केंद्रीय मंत्री हसरत कौर बादल फिलहाल खामोश हैं, लेकिन बादल दल से जुदा हुए पुराने खांटी अकाली सियासतदान, जत्थेदार के खालिस्तानी- अलगाववादी बयानों से सहमत नहीं हैं। अलबत्ता शुरू से ही अलगाववादी राजनीति करने और खालिस्तान का झंडा उठाने वाला अमृतसर अकाली दल जरूर खुलकर ज्ञानी हरप्रीत सिंह और भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल के साथ है। चर्मपंथी नेता और पूर्व सांसद सिमरनजीत सिंह मान इसकी अगुवाई करते हैं।
राज्यसभा सांसद और कुछ महीने पहले शिरोमणि अकाली दल (बादल) को छोड़कर टकसाली अकाली दल में शामिल होने वाले सुखदेव सिंह ढींडसा कहते हैं, ''समझ से परे है कि श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार और एसजीपीसी प्रधान ने अचानक यह मुद्दा क्यों उठाया? जबकि इस वक्त सबसे ज्वलंत मुद्दा फसलों के मंडीकरण के बहाने राज्यों से उनके अधिकार छीने जाने का है। इसके अलावा पानी, भाषा विवाद, राजधानी आदि प्रमुख मुद्दे हैं। खालिस्तान की बात करने की बजाय जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह और भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल को जरूरी और ज्वलंत मुद्दे उठाने चाहिएं।'' अकाली-बीजेपी गठबंधन सरकार में वित्त मंत्री रहे और अपने पिता की राह पर चलते हुए बादल दल को अलविदा कहने वाले परमिंदरजीत सिंह ढींडसा भी ठीक ऐसा ही मानते हैं। उन्हें इस प्रकरण पर बादलों की चुप्पी बेहद संदेहास्पद लगती है। वह कहते हैं कि सीनियर-जूनियर दोनों बादलों को सामने आकर धुंधलका साफ करना चाहिए। तख्त श्री दमदमा साहिब के समानांतर जत्थेदार बलजीत सिंह दादूवाल का साफ मानना है कि एक बार फिर पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने अपनी राजनीति के लिए श्री अकाल तख्त साहिब का दुरुपयोग किया है। दादूवाल के मुताबिक, ''बीजेपी अब बादलों को किनारे कर रही है। इसलिए मोदी सरकार और बीजेपी को डराने के लिए बादलों ने श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार का इस्तेमाल किया है। ज्ञानी हरप्रीत सिंह और भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल अपने दम पर इतना बड़ा कदम नहीं उठा सकते। यह सब उन्होंने बादलों की हिदायत और शह पर किया है। कौम के आगे खालिस्तान से भी अहम मसले दरपेश हैं। जत्थेदार को पहले उन पर बोलना चाहिए।''
अकाली-बीजेपी गठबंधन सरकार में महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे और बाद में बादलों से अलहदा हो गए टकसाली अकाली दल के महासचिव सेवा सिंह सेखवां की टिप्पणी गौरतलब है, ''अगर जत्थेदार ने अपने जमीर की बात की है तो मामला अलग है और अगर उन्होंने किसी और के 'मन की बात' की है तो मामला सिरे से दूसरा हो जाता है। श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार और एसजीपीसी प्रधान के बयान बहुत बड़ा रहस्य खड़ा कर गए हैं।'' बंदी सिख रिहाई संघर्ष समिति के संयोजक भाई गुरदीप सिंह बठिंडा के अनुसार इस पूरे प्रकरण में बादलों की भूमिका सरासर संदेहास्पद है। ऐसा मानने वाले बहुतेरे सिख सियासतदान हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील कुमार जाखड़ का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब राष्ट्रवाद पर शिरोमणि अकाली दल के साथ अपनी विचारधारात्मक नीति स्पष्ट करें। इससे पहले लुधियाना से कांग्रेस सांसद और दिवंगत मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के पोते रवनीत सिंह बिट्टू जत्थेदार की खालिस्तान की हिमायत के पीछे बादलों की सीधी साजिश की बात कह चुके हैं। वह फिर पूछते हैं कि इतने बड़े मसले पर प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर सिंह बादल और शिरोमणि अकाली दल खामोश क्यों हैं? इस बीच सूत्रों से हासिल जानकारी के मुताबिक बीजेपी आलाकमान ने खालिस्तान प्रकरण पर सुखबीर सिंह बादल और हरसिमरत कौर बादल से फोन पर बात की है। इस बातचीत का विस्तृत विवरण नहीं मिल पाया है।
जिक्रेखास है कि पंथक सियासतदानों के पसंदीदा (सबसे ज्यादा प्रसार संख्या वाले) प्रमुख पंजाबी अखबार 'अजीत' ने भी खालिस्तान की हिमायत के लिए श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह की कड़ी आलोचना की है। संपादक बरजिन्दर सिंह हमदर्द द्वारा लिखी संपादकीय टिप्पणी का शीर्षक है, 'गैर-जिम्मेदाराना बयानबाजी।' उन्होंने लिखा है कि, ''हम समझते हैं कि ज्ञानी हरप्रीत सिंह का यह बयान जनमानस को भ्रमित करने वाला तथा उनमें अनावश्यक असमंजस पैदा करने वाला है। किसी सरकार ने उनको खालिस्तान थाली में परोस कर नहीं देना न ही उनमें (सिंह साहिब) में ऐसी हिम्मत ही दिखाई देती है कि वह खालिस्तान के लिए सिर-धड़ की बाजी लगा कर मैदान में उतर आएं। यदि ऐसा नहीं है तो बेहद जिम्मेदारी वाले पद पर बैठकर उनको ऐसा बयान देने से गुरेज करना चाहिए। भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल तो अब तक अपने आकाओं के इशारे पर ही चलते नजर आए हैं। यदि उनको खालिस्तान संबंधी ऐसा इशारा ऊपर से मिला है तो इस बारे में अकाली दल (बादल) के नेताओं को हर हाल में लोगों के सामने इस मामले के प्रति अपना पक्ष पेश करना चाहिए।'' ज्ञानी हरप्रीत सिंह तथा भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल केंद्र सरकार की सिखों के प्रति नीतियों से बहुत नाराज हुए नजर आते हैं परंतु बीबी हरसीमरत कौर बादल आज भी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन सरकार में मंत्री हैं। ज्ञानी हरप्रीत सिंह के पास इस मसले पर समूचे सिखों का प्रतिनिधित्व करने का कोई अधिकार नहीं। आज सिख जगत पंजाब तक ही नहीं, देश नहीं, पूरी दुनिया में फैला हुआ है और अपने कर्मों से अपने-अपने स्थान पर यश अर्जित कर रहा है। इसलिए समूचे सिख जगत को एक ऐसी मांग से जोड़ना (जिसकी रुपरेखा कभी भी स्पष्ट रुप में सामने नहीं आई और न ही जिम्मेदार सिख नेतृत्व ने कभी पूरे सिख पंथ को इस संबंधी विश्वास में लिया है) बड़ी नाइंसाफी है। श्री दरबार साहिब सिखों के लिए ही नहीं, दुनिया भर के अधिकतर लोगों के लिए एक पवित्र आस्था का केंद्र है। सिख विचारधारा तथा दर्शन किसी एक धार्मिक भाईचारे या जाति तक ही सीमित नहीं हुई अपितु समूची मानवता को अपने आगोश में लेने की भावना की अभिव्यक्ति है। यदि आज सिख संस्थाओं के नियुक्त किए गए प्रमुख ही संकीर्ण सोच अपना कर इनका प्रचार करने लगें तो निसंदेह वे सिख विचारधारा को नजरअंदाज कर के इसके नैतिक मूल्यों से पीछे हट रहे हैं। इसके लिए सिख जगत उनको माफ नहीं करेगा। 'अजीत' का उक्त संपादकीय बहुत कुछ कहता है।
~ केशव कांत कटारा
(हिफी)