लद्दाख क्राइसिस पर मनमोहन का मशवरा

लद्दाख क्राइसिस पर मनमोहन का मशवरा

नई दिल्ली पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लद्दाख में चीनी सैनिकों के हमले के बाद कहा है कि पूरे राष्ट्र को एकजुट होकर चीन को जवाब देना चाहिए। उन्होंने कहा कि 15-16 जून की रात गलवान घाटी में 20 साहसी जवानों ने सर्वोच्च कुर्बानी दी है। देश के इन सपूतों ने अंतिम समय तक देश की रक्षा की। जवानों को श्रद्धांजलि देते हुए उन्होंने कहा कि जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि आज हम इतिहास के नाजुक मोड़ पर खड़े हैं। हमारी सरकार के निर्णय और कदम तय करेंगे कि भविष्य की पीढ़िया हमारा आंकलन कैसे करें। आज जो देश का नेतृत्व कर रहे हैं, उनके कंधों पर कर्तव्य का गहन दायित्व है। हमारे प्रजातंत्र में यह दायित्व प्रधानमंत्री का है।

मनमोहन सिंह ने नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार को कुछ सुझाव भी दिये हैं। डॉ मनमोहन सिंह मुख्य रूप से एक अर्थशास्त्री हैं इससे पूर्व भी उन्होंने मोदी सरकार को सुझाव दिये थे। प्रधानमंत्री के रूप में काम करने का भी उनके पास 10 सालों का तजुर्बा है।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मौजूदा केंद्र सरकार को समय-समय पर आईना दिखाते रहे हैं। देश के तमाम बड़े मसलों पर मनमोहन सिंह सरकार को नसीहत के साथ-साथ दुष्परिणामों को लेकर आगाह भी करते रहे हैं। अब जबकि देश सीमा पर चीन की धोखेबाजी झेल रहा है तो ऐसे वक्त में राहुल गांधी समेत कांग्रेस पार्टी के साथ मनमोहन सिंह ने भी केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को घेरा है. मनमोहन सिंह ने तंज कसते हुए कहा कि भ्रामक प्रचार कभी भी कूटनीति और मजबूत नेतृत्व का विकल्प नहीं हो सकता है।

डॉ. मनमोहन सिंह का यह बयान ऐसे वक्त में आया है जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार गलवान विवाद पर सीधे पीएम मोदी को घेर रहे हैं। यहां तक कि राहुल गांधी पीएम मोदी को चीन के साथ भारतीय जमीन सरेंडर करने वाला तक बता रहे हैं। इसके अलावा जवानों की शहादत किस क्षेत्र में हुई, इसे लेकर भी वो सवाल उठा रहे हैं। अब राहुल के साथ मनमोहन सिंह भी आ गए हैं। हालांकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने डा. मनमोहन सिंह को जवाब दिया कि कांग्रेस ने ही चीन के सामने 43000 किमी. का भारतीय हिस्सा सन् 62 में सरेन्डर कर दिया था।

15 जून को लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों की दगाबाजी में शहीद हुए भारतीय वीरों को सलाम करते हुए पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह ने सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरा। मनमोहन सिंह ने कहा, आज हम इतिहास के एक नाजुक मोड़ पर खड़े हैं. हमारी सरकार के निर्णय व सरकार द्वारा उठाए गए कदम तय करेंगे कि भविष्य की पीढ़ियां हमारा आकलन कैसे करें। जो देश का नेतृत्व कर रहे हैं, उनके कंधों पर कर्तव्य का गहन दायित्व है. हमारे प्रजातंत्र में यह दायित्व देश के प्रधानमंत्री का है।

पीएम मोदी को कर्तव्य की याद दिलाते हुए मनमोहन सिंह ने उन्हें अपने बयानों को लेकर भी नसीहत दी है। मनमोहन सिंह ने कहा है कि प्रधानमंत्री को अपने शब्दों व ऐलानों द्वारा देश की सुरक्षा एवं सामरिक व भूभागीय हितों पर पड़ने वाले प्रभाव के प्रति सदैव बेहद सावधान होना चाहिए।

पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने ये भी कहा कि हम सरकार को आगाह करेंगे कि भ्रामक प्रचार कभी भी कूटनीति तथा मजबूत नेतृत्व का विकल्प नहीं हो सकता है। साथ ही पिछलग्गू सहयोगियों द्वारा प्रचारित झूठ के आडंबर से सच्चाई को नहीं दबाया जा सकता है।

चीन के मसले पर सर्वदलीय बैठक के बाद पीएम मोदी ने स्पष्ट कहा था कि हमारी सीमा में न तो कोई घुसा है और न ही किसी ने हमारी किसी पोस्ट पर कब्जा किया है। पीएम मोदी के इस बयान पर विपक्षी दलों ने सवाल उठाए तो पीएमओ को सफाई जारी करनी पड़ी। पीएमओ की तरफ से बताया गया कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी सेना की हरकतों की वजह से विवाद हुआ है। ये विवाद अब भी जारी है। सीमा पर तनाव है. हालांकि, सरकार ने अब कई सख्त फैसले लिये हैं और सेना से कहा है कि अगर बात जान पर आती है तो किसी करार की फिक्र न करें और अपना बचाव करें. मनमोहन सिंह ने भी सरकार से मांग की है कि प्रधानमंत्री वक्त की चुनौतियों का सामना करें और सैनिकों की कुर्बानी की कसौटी पर खरा उतरें, इससे कुछ भी कम जनादेश से ऐतिहासिक विश्वासघात होगा।

डाॅ. मनमोहन सिंह कटु सत्य बोलते हैं। आर्थिक संकट पर भी उन्होंने कहा था कि मौजूदा संकट को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करने का मेरा कोई इरादा नहीं है। मेरा विश्वास है कि यह पवित्र कर्तव्य है कि भारत की जनता को सच बताया जाए। और सच यह है कि मौजूदा संकट गहरा और चिंताजनक है। जिस भारत को हम जानते हैं और जिस पर हमें गर्व है वह हमारे हाथों से तेजी से फिसलता जा रहा है। जानबूझकर भड़काए गए साम्प्रदायिक तनाव, आर्थिक कुप्रबंधन और बाहरी स्वास्थ्य संकट भारत की प्रगति व वैश्विक मंच पर उसकी हैसियत को कम करता जा रहे हैं। सामाजिक शत्रुता, आर्थिक मंदी और वैश्विक स्वास्थ्य संकट भारत के लिए एक बड़े खतरे की घंटी है। सामाजिक अराजकता और आर्थिक बर्बादी हमने खुद अपने आप को दिए हैं जबकि कोरोना वायरस का खौफ बाहरी कारणों से है। मुझे इस बात की चिंता है कि ये तीनों संभावित खतरे न सिर्फ भारत की आत्मा को तहस-नहस कर देंगे, बल्कि दुनिया के नक्शे पर भारत की आर्थिक और लोकतांत्रिक प्रसिद्धि को भी कम करेंगे। मनमोहन सिंह ने कहा देश के अंदर मौजूदा हिंसा को सही ठहराने के लिए अतीत में हुई हिंसा का उदाहरण देना बेकार है। और न ही आज के संदर्भ में इसका कोई अर्थ है। कुछ साल पहले तक भारत को दुनिया में एक ऐसे मुल्क के तौर पर जाना जाता था जहाँ उदारवादी, लोकतांत्रिक तरीके से भारतीय अर्थव्यवस्था प्रगति कर रही थी जबकि आज उसकी पहचान एक ऐसे देश की हो गई है जो बहुसंख्यकवादी राज्य में तब्दील हो चुका है और उसकी अर्थव्यवस्था बदहाल हो गई है। ऐसा कुछ सालों में ही हुआ है।

पूर्व पीएम ने कहा है कि ऐसे वक्त में जबकि अर्थव्यवस्था असफल हो रही है, सामाजिक तनाव और अस्थिरता आर्थिक मंदी पर बुरा असर डालेंगे। अब यह बात मान ली गई है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत निजी क्षेत्रों में नये निवेश के नहीं आने की वजह से हुई है। निवेशक, उद्योगपति और उद्यमी नये प्रोजेक्ट लेने से हिचकिचा रहे हैं और खतरा उठाने की उनकी क्षमती भी खत्म हो गई है। सामाजिक अस्थिरता और साम्प्रदायिक तनाव ने उनके डर को और खतरा उठाने की उनकी अक्षमता को और बढ़ा दिया है। आज सामाजिक सौहार्द और आर्थिक विकास की सबसे बड़ी जरूरत है और यही आज खतरे में है। हम कितना ही टैक्स की दरों में बदलाव करें, कॉरपोरेट जगत पर सहूलियतों की कितनी ही बरसात कर लें लेकिन भारतीय और विदेशी उद्योगपति तब तक निवेश नहीं करेंगे जब तक इस बात का खतरा बरकरार रहेगा कि कहीं किसी पड़ोस में अचानक हिंसा फूट पड़ेगी। संभवतः उनका इशारा चीन और नेपाल की तरफ है।

वह कहते हैं इन घावों पर कोरोना वायरस का संकट भी जुड़ गया है जिसकी शुरुआत चीन में हुई थी। अभी यह साफ नहीं है कि वैश्विक स्वास्थ्य संकट किस हद तक दुनिया में फैलेगा और क्या असर डालेगा लेकिन यह बात साफ है कि हमें इससे लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार रहना होगा। किसी भी राष्ट्र के लिए स्वास्थ्य संकट से बड़ा कोई दूसरा खतरा नहीं हो सकता। हम सब लोगों को मिलकर इस खतरे का सामना करना होगा।

~अशोक त्रिपाठी (हिफी)

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