Lock Down की मार, Educated Youth मनरेगा में खोज रहे काम
नई दिल्ली । देश के 35 राज्यों व केंद्र शासित राज्यों में मनरेगा के तहत पंजीकृत परिवारों की कुल संख्या 13 करोड़ 68 लाख है जिसमें 26 करोड़ 65 लाख मजदूर शामिल हैं। मतलब कि मनरेगा के तहत पंजीकृत परिवारों में हर परिवार से दो-तीन लोग शामिल हैं।
कोरोना संकट और उसके चलते सरकार के अचानक लॉकडाउन के कदम ने शिक्षित-नौकरीपेशा युवाओं के एक बड़े वर्ग को संकट की स्थिति में ला खड़ा किया है। लॉकडाउन से पहले तक अच्छी-खासी डिग्रियों की बदौलत बड़े शहरों में ठीक-ठीक कमाने वाले ऐसे कई युवा अब गांवों में मनरेगा के तहत काम करने को मजबूर हैं। ऐसे कई युवा गांवों में मनरेगा के तहत काम ढूंढ़ रहे हैं। उनका कहना है कि उनके पास यही एक विकल्प है। लॉकडाउन के चलते बड़े शहरों से पलायन करके पैतृक गांव पहुंचने वालों में सिर्फ मजदूर ही नहीं बल्कि अच्छे खासे पढ़े-लिखे युवक भी हैं। इन युवकों के पास फिलहाल सरकार की मनरेगा योजना ही अपना और अपनों का पेट भरने का एकमात्र सहारा बची है हलांकि यूपी की योगी सरकार ने वापस लौटे लोगों की योग्यता के हिसाब से काम उपलब्ध कराने का दावा किया था लेकिन आर्थिक तंगी के चलते ये लोग मनरेगा में काम करने को मजबूर हैं। इसे लेकर यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने योगी सरकार पर जमकर निशाना साधा है।
मायावती ने कहा, ''जब प्रवासी मजदूर आ रहे थे तब खासकर उत्तर प्रदेश सरकार ने इस बात पर जोर दिया था कि प्रवासी लोगों का उनकी योग्यता के हिसाब से रजिस्ट्रेशन होना चाहिए और इन्होंने रजिस्ट्रेशन कराया भी लेकिन उसके बावजूद भी देखने को मिल रहा है कि जो लोग बड़ी-बड़ी डिग्री लेकर प्रदेश में आए हैं आज वो मनरेगा के तहत गड्ढे खोद रहे हैं।'' उन्होंने कहा कि सरकार को सोचना चाहिए कि जब लोग बड़ी-बड़ी डिग्री लेकर गड्ढे खोदेंगे तो इसका शिक्षा पर कितना बुरा प्रभाव पड़ेगा। लगातार ऐसी खबरें सामने आ रही हैं कि मनरेगा में काम कर रहे लोगों में इंग्लिश से एमए और बीबीए कर चुके ऐसे युवा भी शामिल हैं, जो लॉकडाउन से पहले बड़ी कंपनी में काम करते थे। तो वहीं उत्तर प्रदेश के रहने वाले रौशन कुमार एमए पास हैं और लॉकडाउन से पहले वह एक अच्छी नौकरी करते थे। उनकी तनख्वाह भी अच्छी-खासी थी लेकिन कोरोना महामारी से पैदा संकट में उनकी नौकरी चली गई। लॉकडाउन के चलते उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। अब वह मनरेगा में काम ढूंढ़ रहे हैं। उनका कहना है कि उनके पास रोजगार का कोई विकल्प नहीं बचा है। कुछ ऐसी ही कहानी बीबीए कर चुके सत्येंद्र कुमार की भी है। सत्येंद्र के अनुसार देश में मंदी के चलते बीबीए करने के बावजूद भी उनके पास कोई नौकरी नहीं थी लेकिन उन्होंने किसी तरह करके 6-7 हजार की एक नौकरी का इंतजाम किया था और उसी से जिंदगी गुजार रहे थे लेकिन लॉकडाउन के कारण वह नौकरी भी चली गई। अब गांव लौट चुके सत्येंद्र को प्रधान ने मनरेगा में काम दिलाने में मदद की है। इन युवाओं का कहना है कि कोरोना के चलते किए गए लॉकडाउन ने उनकी जिंदगी के कई सपनों को कुचल दिया। अब तो दो वक्त की रोटी के लिए भी भटकना पड़ रहा है।
गौरतलब है कि एक रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन से पहले उत्तर प्रदेश में गांव में मनरेगा के तहत औसतन एक दिन में बीस लोग काम करते थे तो वहीं लॉकडाउन से पैदा हालात में यह संख्या बढ़कर 100 हो गई है। खास बात ये है कि इनमें से हर पांचवा मनरेगा मजदूर डिग्रीधारी है, जो लॉकडाउन के चलते अपनी नौकरी गंवा चुका है। प्रदेश की योगी सरकार ने मनरेगा स्कीम के तहत 30 लाख लोगों को रोजगार दिलाने का प्रबंध किया है। हालात से साफ है कि कोरोना संकट के बीच सिर्फ प्रवासी मजदूर ही काम की तलाश नहीं कर रहे हैं, बल्कि अच्छे-खासे पढ़े-लिखे लोग भी हैं जो काम की तलाश में हैं और विकल्पों के अभाव के चलते वह मनरेगा योजना के तहत बतौर दिहाड़ी मजदूर काम करने को मजबूर हैं। ऐसे में सरकारी स्तर से रोजगार की बात करें तो मनरेगा ही एक ऐसी योजना बची है जिसमें इन मजदूरों व उनके परिवार वालों के पेट भरने की गुंजाइश दिखती है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार कुल मिलाकर इस वक्त लगभग 40 लाख मजदूर हैं जिनके पास एकमात्र विकल्प है कि वे मनरेगा योजनाओं में कार्य कर अपने परिवार का पालन पोषण कर सकें। यह मौका भी उनके पास मानसून के पहले तक अर्थात 15 जून तक ही है। राष्ट्रीय स्तर की बात करें तो देश के 35 राज्यों व केंद्र शासित राज्यों में मनरेगा के तहत पंजीकृत परिवारों की कुल संख्या 13 करोड़ 68 लाख है। जिसमें 26 करोड़ 65 लाख मजदूर शामिल हैं। मतलब कि मनरेगा के तहत पंजीकृत परिवारों में हर परिवार से दो-तीन लोग शामिल हैं लेकिन सरकारी परिभाषा के हिसाब से कुल 7.61 करोड़ परिवार ही ऐसे हैं जो विगत 3 वर्षों के दौरान किसी मनरेगा योजना में कार्य किए हैं। इन्हें मनरेगा में 'एक्टिव जॉब कार्ड धारक' कहा जाता है। ऐसे कुल श्रमिकों की संख्या 11.7 करोड़ है। एक्टिव मजदूरों में 19 फीसदी दलित तथा 16.3 फीसदी आदिवासी हैं। 'एक्टिव जॉब कार्ड धारक' का फंडा यह है कि जिन मजदूरों का विगत 3 वर्षों के दौरान मनरेगा के मस्टर रोल (मजदूरों के कायों का लेखा-जोखा) में नाम नहीं है उन्हें एक्टिव जॉब कार्ड धारक नहीं माना जाता है। चाहे इस बीच सरकारी स्तर से भी मनरेगा का काम उन्हें नहीं दिया गया हो।
उल्लेखनीय है कि विगत 24 मार्च से 31 मई 2020 तक पूरे देश कोरोना संक्रमण के कारण पूर्ण तालाबंदी की गई, 31 मई को लाॅकडाउन खत्म हो गया और 1 जून से देश में आनलाॅक जारी है जिसके तहत धार्मिक स्थल, माॅल, रेस्टोरेंट जैसी कई और चीजें खुल गई हैं। भारत में कुल 66 दिन लॉकडाउन रहा जिसका सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव समाज के निचली कतार के लोगों पर पड़ा है जिसे आए दिन खबरों की सुर्खियों में देखा जा सकता है। रोजगार की तलाश में गए मजदूर देश के कई भागों में फंसे हुए हैं, जिनमें से कई लोगों ने अपनी जान इसलिए गवां दी क्योंकि उनके पास खाने के पैसे नहीं थे, यह किसी से छिपा नहीं है। एक अदृश्य भय ने इन मजदूरों को हजारों की तादाद में अपने अपने गृह राज्य जाने के लिए पैदल ही निकलने पर विवश कर दिया। जिसके कारण कई लोग रास्ते में ही काल के गाल में समा गए। देश में कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। भारत में अब कोरोना के मामले 2 लाख 50 हजार से ज्यादा हो गए हैं। इसके अलावा पिछले 24 घंटे में कोरोना ने नया रिकॉर्ड बनाते हुए 9983 लोगों को संक्रमित किया है और 206 लोगों की जान ले ली है। इसी के साथ भारत कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित 5 देशों में भी शामिल हो गया है। स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े के अनुसार अब तक देश में कोरोना के कुल मामले 2 लाख 56 हजार 611 हो गए हैं। वहीं कोरोना से 7135 लोग अभी तक अपनी जान भी गवां चुके हैं।
~ नाज़नीन (हिफी)