हिमाचल का मक्का और कृषि बिल

हिमाचल का मक्का और कृषि बिल

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के आकलन क्या कसौटी पर खरे नहीं उतर रहे हैं? यह सवाल हिमाचल प्रदेश में मक्के की फसल को लेकर उठ रहा है। मक्के के किसान पीएम मोदी और कृषि मंत्री तोमर के आश्वासन पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। हाल ही में पारित किये गये कृषि सुधार कानूनों को लेकर छिड़ी सियासी लड़ाई के बीच हिमाचल में मक्के के दाम में आधे से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई है। प्रदेश के मैदानी भागों में मक्के और गेहूं का भी नकदी फसल में शुमार हैं, लेकिन इस बार किसानों को मक्के के उचित दाम नहीं मिल पाए हैं। कुछ लोगों का मानना है कि कोरोना संकट के चलते मक्के के दामों में भारी कमी दर्ज की गई है। कांगड़ा, ऊना, पांवटा साहिब सहित कई मैदानी क्षेत्रों में मक्के के दाम 24 रुपये प्रति किलो से गिरकर 10 रुपये तक पहुंच गए हैं। इसी के बाद एमएसपी और देश के अंदर कहीं भी उपज बेचने के लिए बनाए गये कानूनों को लेकर फिर से बहस छिड़ गयी है। ध्यान रहे कि कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020 मोदी सरकार ने पारित किया है। इस बिल में प्रावधान है जिससे किसानों और व्यापारियों को मंडी से बाहर फसल बेचने की आजादी होगी। कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों और किसान संगठनों के अलावा सरकार के सहयोगी दल की सांसद ने भी इस्तीफा देकर विरोध किया। सरकार अपने दावे पर कायम है लेकिन हिमाचल प्रदेश में मक्के के किसानों को जवाब देना मुश्किल हो रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं सरकार की स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा था कि राजनीतिक पार्टियां विधेेयक को लेकर दुष्प्रचार कर रही हैं। उन्होंने कहा कि किसानों को एमएसपी का फायदा नहीं मिलने की बात गलत है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बिहार की कई परियोजनाओं का शुभारंभ करते हुए पीएम मोदी ने कहा था कि जो लोग दशकों तक देश में शासन करते रहे हैं, सत्ता में रहे हैं, देश पर राज किया है, वो लोग किसानों को भ्रमित कर रहे हैं, किसानों से झूठ बोल रहे हैं। इसी संदर्भ में ग्रामीण विकास तथा पंचायती राज मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था, किसानों के पास मंडी में जाकर लाइसेंसी व्यापारियों को ही अपनी उपज बेचने की विवशता क्यों, अब किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा।उन्होंने कहा था कि करार अधिनियम से कृषक सशक्त होगा व समान स्तर पर एमएनसी, बड़े व्यापारी आदि से करार कर सकेगा तथा सरकार उसके हितों को संरक्षित करेगी। किसानों को चक्कर नहीं लगाना पड़ेंगे,निश्चित समयावधि में विवाद का निपटारा एवं किसान को भुगतान सुनिश्चित होगा। उन्होंने यह भी कहा था कि नए प्रावधानों के मुताबिक किसान अपनी फसल किसी भी बाजार में अपनी मनचाही कीमत पर बेच सकेगा। इससे किसानों को अपनी उपज बेचने के अधिक अवसर मिलेंगे।

उधर, कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल और किसान संगठनों का आरोप है कि नए कानून के लागू होते ही कृषि क्षेत्र भी पूँजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा और इसका नुकसान किसानों को होगा। केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद हरसिमरत कौर बादल ने भी ट्वीट किया, मैंने केंद्रीय मंत्री पद से किसान विरोधी अध्यादेशों और बिल के खिलाफ इस्तीफा दे दिया है। कृषि मामलों के जानकार देवेंद्र शर्मा ने भी कहा था कि किसानों की चिंता जायज है। एक समाचार चैनल से बात करते हुए उन्होंने कहा था कि किसानों को अगर बाजार में अच्छा दाम मिल ही रहा होता तो वो बाहर क्यों जाते। उनका कहना था कि जिन उत्पादों पर किसानों को एमएसपी नही मिलती, उन्हें वो कम दाम पर बेचने को मजबूर हो जाते हैं। ध्यान रहे कि पंजाब में होने वाले गेहूँ और चावल का सबसे बड़ा हिस्सा या तो पैदा ही एफसीआई द्वारा किया जाता है या फिर एफसीआई उसे खरीदता है। साल 2019-2020 के दौरान रबी के मार्केटिंग सीजन में, केंद्र द्वारा खरीदे गए करीब 341 लाख मीट्रिक टन गेहूँ में से 130 लाख मीट्रिक टन गेहूँ की आपूर्ति पंजाब ने की थी।

प्रदर्शनकारियों को यह डर है कि एफसीआई अब राज्य की मंडियों से खरीद नहीं कर पाएगा, जिससे एजेंटों और आढ़तियों को करीब 2.5 फीसद के कमीशन का घाटा होगा। साथ ही राज्य भी अपना छह प्रतिशत कमीशन खो देगा, जो वो एजेंसी की खरीद पर लगाता आया है। देवेंद्र शर्मा कहते हैं कि इसका सबसे बड़ा नुकसान आने वाले समय में ये होगा कि धीरे-धीरे मंडियां खत्म होने लगेंगी। इन कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले भी मानते हैं कि अध्यादेश जो किसानों को अपनी उपज खुले बाजार में बेचने की अनुमति देता है, वो करीब 20 लाख किसानों- खासकर जाटों के लिए तो एक झटका है ही। साथ ही मुख्यतौर पर शहरी कमीशन एजेंटों जिनकी संख्या तीस हजार बताई जाती है, उनके लिए और करीब तीन लाख मंडी मजदूरों के साथ-साथ करीब 30 लाख भूमिहीन खेत मजदूरों के लिए भी यह बड़ा झटका साबित होगा।

माना जा रहा है कि किसान नहीं, बाजार के लिए ये विधेयक लाए गये थे। इसीलिए दो राज्यों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के प्रावधान पर देवेंद्र कहते हैं कि हमारे देश में लगभग 86 प्रतिशत छोटे किसान एक जिले से दूसरे जिले में अपनी उपज नहीं बेच पाते, किसी दूसरे राज्य में जाने का सवाल ही नहीं उठता। ये बिल बाजार के लिए बना है, किसान के लिए नहीं बनाया गया है। इस बिल के मुताबिक किसान इससे नई तकनीक से जुड़ पाएंगे, पाँच एकड़ से कम जमीन वाले किसानों को कॉन्ट्रैक्टर्स से फायदा मिलेगा। किसानों को लगता है कि इस प्रावधान से किसान अपनी ही जमीन पर मजदूर हो जाएगा। अभी वह अपने को कम से कम खेत का मालिक तो महसूस करता है।

अब हिमाचल प्रदेश में मक्का के दाम गिरने पर राज्य योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष रमेश धवाला ने भी चिंता जाहिर कीहै। उन्होंने कहा कि प्रदेश के ऊपरी क्षेत्रों में जहां सब्जी और फल प्रति व्यक्ति आय बढ़ाती है तो वहीं निचले क्षेत्रों में मक्के और गेहूं का योगदान है, फिर भी यहां पर इस बार अच्छे दाम नहीं मिल पाए हैं। हालांकि, उन्होंने इसे कृषि सुधार कानूनों का असर न बताते हुए कहा कि नए कानूनों के तहत किसान-बागवान कहीं पर भी अपना उत्पाद बेच सकता है। विपक्ष इन कानूनों को लेकर बेवजह हो हल्ला मचा रहा है। राज्य योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष एवं ज्वालामुखी से विधायक रमेश धवाला ने मक्के के गिरते दामों के बीच हिमाचल में बीयर फैक्टरी खोलने की सरकार को सलाह दी है। धवाला ने कहा कि इस बारे में वे सीएम जयराम ठाकुर से भी बात करेंगे और इंडस्ट्री मिनिस्टर को भी इस दिशा में कदम बढ़ाने चाहिए। वह कहते हैं कि जहां पर मक्के-गेहूं की अच्छी फसल होती है, वहां पर बीयर फैक्टरी के लिए जगह ढूंढनी चाहिए। इससे किसानों को मक्के और गेहूं के अच्छे दाम मिल सकेंगे। (अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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