चुनौती और अवसर- अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत
नई दिल्ली। दीपावली पर गणेश जी और लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। पहले विघ्न विनाशक गणपति की पूजा करते हैं ताकि कोई बाधा न आए। गणेश जी प्रथम पूज्य हैं। बुद्धि को सही रखते हैं। बुद्धि ही ठीक नहीं रहेगी तो धन समृद्धि की देवी लक्ष्मी टिक ही नहीं सकतीं। हमारे देश के वित्त मंत्रालय को संभालने वाले इस बात को अच्छी तरह से समझ लें। लक्ष्मी जी की कृपा पूजा करने से पहले ही हो गयी है। अभी कुछ दिनों पूर्व सकल घरेलू उत्पाद बहुत कम हो गया था। कहा जा रहा था कि पिछले 25 साल में पहली बार जीडीपी में इतनी गिरावट आयी है। उत्पादन ही गिर गया तो टैक्स कहां से मिलता। सामान्य एवं सेवाकर (जीएसटी) का राज्यों को भुगतान करना मुश्किल हो गया था। लक्ष्मी जी की कृपा से पिछले साल अक्टूबर की तुलना में इस साल अक्टूबर में कुल जीएसटी रेवेन्यू में 10 फीसदी का इजाफा हुआ है। इस महीने के दौरान आयात के जरिए प्राप्त रेवेन्यू 9 फीसदी अधिक रहा है। घरेलू स्तर पर लेनदेन के आधार पर देखें तो जीएसटी रेवेन्यू में 11 फीसदी का इजाफा हुआ है। जुलाई, अगस्त और सितंबर की तुलना में जीएसटी रेवेन्यू का ग्रोथ क्रमशः 14 फीसद, 8 फीसद और 5 फीसद रहा है। इन आंकड़ों से माना जा सकता है। अर्थव्यवस्था अब धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही है। जीएसटी में यह बढ़त इसलिए आई है क्योंकि सरकार अनलॉक प्रक्रिया के तहत कई रियायतें दे रही है। इससे आर्थिक गतिविधियां भी रफ्तार पकड़ रही हैं। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय ट्रेड भी शुरू हो गया है। जानकार मानते हैं कि जीएसटी के रेवेन्यू में बढ़त का मतलब बिजनेस ऑपरेशन का आउटलुक अब ठीक हो रहा है।
इस साल फरवरी के बाद पहली बार अक्टूबर में कुल जीएसटी कलेक्शन 1 लाख करोड़ रुपये के पार पहुंचा है। अक्टूबर 2020 में कुल जीएसटी कलेक्शन 1,05,155 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया है। इसमें से 19,193 करोड़ रुपये सीजीएसटी अर्थात केन्द्र सरकार का टैक्स, 25,411 करोड़ रुपये एसजीएसटी अर्थात राज्यों से प्राप्त हुआ टैक्स और 52,540 करोड़ रुपये आईजीएसटी है। आईजीएसटी में 23,375 करोड़ रुपये वस्तुओं के आयात से वसूला गया है। सेस के तौर पर 8,011 करोड़ रुपये वसूला गया है, जिसमें से 932 करोड़ रुपये आयातित वस्तुओं पर लगाये गये सेस से वसूला गया है। अक्टूबर 2020 में महाराष्ट्र में जीएसटी कलेक्शन सबसे अधिक 15,799 करोड़ रुपए रहा। उसके बाद कर्नाटक में 6.998 करोड़ रुपये, तमिलनाडु में 6,901 करोड़ रुपये और यूपी में 5,471 करोड़ रुपये जीएसटी कलेक्शन किया गया। अक्टूबर 2019 के मुकाबले अक्टूबर 2020 में जम्मू कश्मीर में 21फीसद, हिमाचल प्रदेश में 3फीसद, पंजाब में 16 फीसद, उत्तराखंड में 10 फीसद, हरियाणा में 19 फीसद, राजस्थान में 22 फीसद, यूपी में 7 फीसद, बिहार में 7 फीसद, पश्चिम बंगाल में 15 फीसद, झारखंड में 23 फीसद, ओडिशा में 21 फीसद, छत्तीसगढ़ में 26 फीसद, मध्यप्रदेश में 17 फीसद और गुजरात मे 15 फीसद अधिक जीएसटी कलेक्शन किया गया, जबकि दिल्ली में 8 फीसदी कम जीएसटी कलेक्शन हुआ।
दरअसल कोरोना वायरस की चीनी आपदा विश्व के लिए चुनौती और अवसर दोनों ही लेकर आयी। हालांकि विश्व में जीडीपी के लिहाज से भारत का राहत पैकेज पांचवां सबसे बड़ा पैकेज है। जीडीपी के 21.5 फीसद के साथ, जापान प्रथम है। उसके बाद क्रमशः अमेरिका, स्वीडन और जर्मनी का स्थान है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 20 लाख करोड़ के पैकेज में आर्थिक राहत कम है, आर्थिक सुधार के वायदे अधिक। हालांकि ये सुधार स्वागत योग्य हैं, जो अर्थव्यवस्था को एक नई गति एवं बड़ी ऊंचाई प्रदान कर सकते हैं। पैकेज के माध्यम से सरकार साहसिक आर्थिक सुधारों के माध्यम से आपदा को अवसर में बदलने के अभियान पर बढ़ चली है। कोरोना के बाद की दुनिया एक बदली हुई नयी दुनिया होगी, जिसमें भारत के आर्थिक विकास के नये एवं तेज अवसर उपलब्ध होने की संभावना है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की आर्थिक घोषणाएं, राहत के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था में एक मूलभूत नीतिगत परिवर्तन की ओर इंगित करती हैं। इनमें से अधिकतर सुधार विदेशी निवेश को आकर्षित करने की लालसा से प्रेरित दिखते हैं। कोरोना के लिए विश्व के अधिकतर देश चीन को दोषी ठहरा रहे हैं। अमेरिका और अन्य विकसित देशों ने इसके लिए चीन को सबक सिखाने की ठान ली है। ये देश अपनी कम्पनियों को अब चीन से स्थानान्तरित करना चाहते हैं। यह भारत के लिए एक स्वर्णिम अवसर हो सकता है। इसी के लिए आर्थिक सुधार के कदम उठाने की तैयारी है। जैसा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, 'आपदा भारत के लिए संकेत, संदेश और अवसर लेकर आई है।' दुनिया की सोच में बड़ा बदलाव हुआ है। कोरोना ने स्थानीय निर्माण, स्थानीय बाजार, स्थानीय सप्लाई चेन की अहमियत अमेरिका से लेकर भारत तक को समझाई है। लोकल ने ही हमारी मांग पूरी की है। कोरोना ने आत्म निर्भरता का पाठ सिखाया है। वैश्वीकरण आज चुनौती का सामना कर रहा है। विश्व अपने आप को कई वर्षों तक कोरोना के साथ जीने के लिए तैयार कर रहा है। भारत ने समय पर लाकडाउन किया, लेकिन जान और जहान दोनों को साथ लेकर चलने के लिए लॉकडाउन-4 में ढिलाई दी गयी। इससे आर्थिक गतिविधियां तेज हुईं।
निश्चित रूप से हमारा देश एक गहरे आर्थिक संकट में फंसा है। कोरोना ने इसमें घी का काम किया है। भारत में नोटबंदी और जीएसटी से भी अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई। मोदी सरकार ने कुछ समय तक 'मेक इन इंडिया', स्टार्ट अप, स्मार्ट सिटी, पांच ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था जैसे आश्वासनों से संभलने की कोशिश की, लेकिन लुढ़कती 4.5 फीसद विकास दर ने सभी को चिंता में डाल दिया था। लाॅकडाउन से कारखाने-व्यवसाय बन्द हैं। हालात के शिकार और सरकार तथा मालिकों दोनों से निराश, प्रवासी अब गांव छोड़कर कभी शहर नहीं जाने की कसम खा रहा है लेकिन वर्तमान ग्रामीण अर्थव्यवस्था में यह संभव नहीं है।
भारतीय रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड के एक सदस्य ने भी कहा था कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा घोषित राहत पैकेज आर्थिक सुधार की प्रक्रिया में बैंकों को शामिल करने में विफल रहा है। आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड के सदस्य सतीश मराठे ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, राहत पैकेज कल्पनाशील और भविष्य की ओर देखने वाला है, हालांकि ये आर्थिक सुधार में बैंकों को अग्रणी भूमिका के साथ शामिल करने में विफल रहा। सीतारमण ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अर्थव्यवस्था की मदद के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा के बाद कई उपायों की घोषणा की थी। मराठे ने रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के शोध विश्लेषकों के एक नजरिए को साझा किया, जिसमें इस पैकेज से मिलने वाले तात्कालिक फायदों के बारे में संदेह जताया गया है। उन्होंने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा घोषित ऋण स्थगन के लिए तीन महीने की मोहलत पर्याप्त नहीं है। उन्होंने बैंकिंग क्षेत्र के हितों के लिए कुछ सुझाव भी दिए, जिसमें एनपीए और प्रावधान में छूट शामिल है। बहरहाल, अर्थव्यवस्था में सुधार के लक्षण दिखाई दे रहे हैं। (मोहिता-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)