पंजाब-हरियाणा में एसवाईएल नहर को लेकर रार
नई दिल्ली। सतलुज यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर पर मंगलवार को पंजाब, हरियाणा के मुख्यमंत्रियों और जलशक्ति मंत्री के बीच हुई बैठक बेनतीजा रही। पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सतलुज यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर का विरोध करते हुए दो टूक कहा है कि राज्य के लिए यह भावनात्मक मुद्दा है। अगर नहर का पानी हरियाणा के साथ साझा करने के लिए कहा जाता है तो पंजाब जल उठेगा। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत नई दिल्ली में थे जबकि अमरिंदर सिंह चंडीगढ़ से ही वीडियो लिंक के माध्यम से उनसे जुड़े। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हुई बैठक में दोनों राज्य अपने-अपने रुख पर अड़े रहे। सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई को दशकों पुराने विवाद में केंद्र सरकार को मध्यस्थता करने का निर्देश दिया था। हरियाणा और पंजाब के मुख्यमंत्रियों के बीच इस मसले पर कई बार बैठक हुई है, लेकिन इस बार सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद यह मीटिंग हो रही है। इस मामले में हरियाणा और पंजाब के मुख्यमंत्रियों के बीच यह पहली बैठक थी।
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने चंडीगढ़ में कहा, ''हमें इस मुद्दे को राष्ट्रीय सुरक्षा के परिपेक्ष्य में देखना चाहिए। यदि हम सतलुज यमुना लिंक नहर के निर्माण को लेकर आगे बढ़े तो पंजाब जल उठेगा और यह राष्ट्रीय समस्या बन जाएगा। इसकी आंच हरियाणा और राजस्थान पर भी पड़ेगी।'' उन्होंने कहा कि मैंने हरियाणा के सीएम और केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को इस बारे में साफ बता दिया। कैप्टन ने कहा कि जब 2004 में उन्होंने सभी राज्यों के साथ हुए जल समझौते रद्द करने के लिए बिल पास करवाया था, उस समय भी यह रिपोर्ट आ रही थी कि प्रदर्शन हिंसा में बदल सकते हैं। कैप्टन अमरिंदर ने कहा कि इराडी ट्रिब्यूनल ने 40 साल पहले पानी का बंटवारा किया था। अंतरराष्ट्रीय कानून कहते हैं कि 25 साल बाद पानी का नए सिरे से आकलन होना चाहिए। अब नदियों का पानी काफी कम हो चुका है। नए सिरे से पानी का आकलन करने के लिए यमुना और रावी-ब्यास को शामिल कर नया ट्रिब्यूनल बनाया जाए। बैठक में इस बात को लेकर सहमति भी बनी कि एसवाईएल के मुद्दे पर पंजाब व हरियाणा के मुख्यमंत्री चंडीगढ़ में एक बार फिर मिलेंगे। जिसकी तारीख और समय बाद में तय किया जाएगा।
पंजाब का कहना यहां तक है कि इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई नहीं होनी चाहिए बल्कि इस मामले को ट्रिब्यूनल के समक्ष सुना जाना चाहिए। पंजाब का कहना है कि सतलज, यमुना ब्यास नदी के पानी पर पहले हमारा हक है। पंजाब ने यह भी कहा कि हम अदालती आदेश का पालन करना चाहते हैं लेकिन अपने किसानों को नजरअंदाज कर ऐसा नहीं कर सकते। हमारे किसान भूख से मरें और हम सतलुज, यमुना और ब्यास नदी का पानी किसी और क्यों दें। पानी हमारी जरूरत हैं। पंजाब के इसी रुख के कारण वर्षों से इस मामले का समाधान नहीं निकल पा रहा।
पंजाब में इस समय कांग्रेस सरकार है और कैप्टन अमरिंदर सिंह एसवाईएल का पानी हरियाणा के हाथ में देने के धुर विरोधी रहे हैं। हालांकि एक समय ऐसा भी था जब पंजाब व हरियाणा में दोनों में एक ही पार्टी की सरकार थी लेकिन तब भी इस मुद्दे का कोई समाधान न निकल सका और न ही हरियाणा को अपने हक का पानी नहीं मिल पाया। दो सूबों के बीच ये मुद्दा एक सियासी मुद्दा बन चुका है। नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा है। पंजाब हमेशा एसवाईएल के पानी का विरोध करता रहा है, वैसा आज भी कर रहा है। इस नहर को लेकर दोनों विधानसभाओं में वॉकआउट होता रहा है। हरियाणा की विधानसभा का मानसून सत्र करीब है। राजनीति एक बार फिर गर्म होगी। गठबंधन सरकार में दुष्यंत चैटाला भी इस मुद्दे को लेकर ठीक समय पर कूद गए हैं। कई साल से इनेलो नेता अभय सिंह चैटाला इस मुद्दे को लेकर सक्रिय हैं।
एसवाईएल का मुद्दा पंजाब के लिए राजनैतिक अधिक है। यह मामला सूबे में सरकार बदलने की क्षमता रखता है। इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा बार-बार हरियाणा के पक्ष में फैसले दिए जाते रहे हैं। 2017 में तो एसवाईएल पर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का मुकदमा भी पंजाब सरकार के खिलाफ दर्ज हुआ था, जब हरियाणा के पक्ष में आए फैसले के अगले ही दिन पंजाब सरकार ने कैबिनेट की बैठक बुलाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के उलट फैसला लेते हुए आदेश जारी किए थे। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों से एसवाईएल के मुद्दे का बातचीत के जरिये हल करने को कहा है। जस्टिस अरुण मिश्र की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर बड़े राजनैतिक स्तर पर वार्ता की जरूरत है। पीठ वास्तव में दोनों राज्यों से जानना चाहता है कि वे बातचीत के जरिये इस विवाद को हल कर सकते हैं या नहीं? सुप्रीम कोर्ट अब अगस्त के तीसरे हफ्ते में इस मामले पर सुनवाई करेगा। वहीं, पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि वह अपने किसानों के हितों को नजरअंदाज कर दूसरे राज्यों को पानी नहीं दे सकता।
साढ़े चार दशक के लंबे अंतराल के बाद हरियाणा को अब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद एसवाईएल नहर के निर्माण तथा उसमें पानी आने की आस जगी है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को मनोहर लाल ने बातों ही बातों में ऐसे तमाम संकेत दे दिए, जिनका मतलब साफ है कि हरियाणा किसी सूरत में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विपरीत एसवाईएल पर किसी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं है। यानी उसे नहर भी चाहिए और उसमें पूरा पानी भी। मनोहर लाल ने कैप्टन अमरिंदर के उस दावे पर भी लगे हाथ सवाल उठा दिए, जिसमें कैप्टन कहने लगे कि पंजाब के पास पानी की उपलब्धता कम है। मनोहर लाल ने कहा कि एसवाईएल का निर्माण और पानी की उपलब्धता दो अलग-अलग मुद्दे हैं और एक दूसरे से जुड़े हुए नहीं हैं। इस मामले में भ्रमित नहीं करना चाहिए। 1981 के समझौते के अनुसार पानी की वर्तमान उपलब्धता के आधार पर राज्यों को पानी का आवंटन किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने 15 जनवरी 2002 को दिए अपने फैसले में भी यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय एसवाईएल नहर के निर्माण को पूरा करना है। उसमें पानी की उपलब्धता बाद का विषय हो सकता है।
हरियाणा का नजरिया यह भी है कि एसवाईएल का निर्माण सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार पूरा होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता तो यह हरियाणा के पानी से वंचित क्षेत्रों के लोगों के साथ अन्याय है, जो अपने पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्णय के बावजूद पानी का उचित हिस्सा प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट को असंवैधानिक करार दिया है और स्पष्ट रूप से कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को लागू किया जाना चाहिए। जहां हरियाणा नहर का पानी चाहता है वहीं पंजाब हरियाणा को पानीन नहीं देना चाहता है ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह ऊंट किस करवट बैठता है।
(नाज़नींन -हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)