सुषमा युवा राजनेताओं के लिए रोल मॉडल: वेंकैया
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने युवा राजनेताओं से सुषमा स्वराज को रोल मॉडल के तौर पर देखने और उनकी खूबियों को अपनाने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि पंजाब विश्वविद्यालय की पूर्व छात्र रहीं सुषमा अपने आप में एक संस्थान थीं और देश उनकी तमाम उपलब्धियों तथा राष्ट्र निर्माण में उनके अंशदान पर गर्व करता है। मैं हर साल उनके सम्मान में एक स्मारक व्याख्यान के आयोजन का फैसला करने के लिए पंजाब विश्वविद्यालय के अल्युमनी एसोसिएशन और विधि संकाय की सराहना करता हूं। कृपया याद रखिए, कि स्मारक व्याख्यान या स्मृति समारोह का उद्देश्य सिर्फ श्रद्धांजलि देना नहीं, बल्कि महान पुरुषों और महिलाओं की खूबियों को अपनाने के लिए युवा पीढ़ी को प्रेरित करना भी है। सुषमा जी द्वारा अपनाए गए मूल्य और आदर्श हर दौर में हर किसी को प्रेरित करते रहेंगे।
वे पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की प्रथम पुण्य तिथि के अवसर पर पंजाब विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित प्रथम सुषमा स्वराज स्मारक व्याख्यान में बोल रहे थे। उप राष्ट्रपति ने कहा कि भारत एक संसदीय लोकतंत्र है और अनुच्छेद 370 को खत्म करने का फैसला संसद में व्यापक विचार विमर्श और अधिकांश सदस्यों के समर्थन से लिया गया है। दूसरे राष्ट्रों को अन्य देशों के मामलों में दखल देने के बजाय अपनी समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए।
उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने पड़ोस में स्थित देशों सहित अन्य देशों को भारत के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी से बचने की सलाह देते हुए पुरजोर ढंग से कहा कि जम्मू व कश्मीर अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का फैसला देश की एकता, अखंडता और सम्प्रभुता की रक्षा के हित में लिया गया है। निधन से पूर्व सुषमा स्वराज द्वारा अनुच्छेद 370 पर प्रदर्शित की गईं भावनाओं का स्मरण करते हुए नायडू ने कहा कि विदेश मंत्री के रूप में वह काफी कुशलता से और मृदु और शांत तरीके से भारत की स्थिति स्पष्ट किया करती थीं। साथ ही वह बेहद दृढ़ता से भारत का पक्ष रखा करती थीं।
सुषमा स्वराज को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उप राष्ट्रपति ने उन्हें एक आदर्श भारतीय महिला बताया। वह एक कुशल प्रशासक थीं और उन्होंने विभिन्न पदों और दायित्वों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी, जो उन्होंने ग्रहण किए। पुरानी स्मृतियों को स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि सुषमा जी हमारे परिवार की एक सदस्य की तरह थीं। जब हम दिल्ली में नए थे, तब हम उनसे अक्सर परामर्श और सहायता लिया करते थे। वह बेहतरीन इंसान थीं, जो हमेशा ही किसी भी अनुरोध पर विचार करने और प्रतिक्रिया देने को तत्पर रहती थीं। वास्तव में, चाहे दोस्त, समर्थक और आम आदमी कोई भी हो, सभी के लिए उनका व्यवहार समान ही था।
जब सुषमा विदेश मंत्री थीं तो उनकी वाक्-पटुता, मानवीय स्वभाव और किसी भी समस्या के समाधान में उनकी तत्परता सोशल मीडिया पर भी सुर्खियों में रहती थी। उन्होंने स्वयं को करोड़ों देशवासियों का प्रिय बना लिया था और हाल के दौर में सबसे ज्यादा लोकप्रिय भारतीय विदेश मंत्रियों में से एक बन गई थीं। कैसा संयोग है, जिस पंजाब विश्विद्यालय ने देश को सुषमा स्वराज जी जैसा यशस्वी नेता दिया, मुझे उस विश्विद्यालय के कुलपति होने का गौरव प्राप्त हुआ है। ऐसे मेधावी विद्यार्थियों से ही किसी शिक्षा संस्थान की कीर्ति बढ़ती है। सुषमा जी की भाषा और भाषणों के तो हम सभी प्रशंसक रहे। भाषा की शुद्धता, शब्दों का चयन, विचारों में निष्ठा, अकाट्य तर्क और तथ्य, उनको एक लोकप्रिय वक्ता बना देते थे। मुझे बताया गया कि भाषण कला का यह हुनर भी उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय की भाषण प्रतियोगिताओं में ही सीखा, जिन्हें वे हर वर्ष जीतती रहीं। इस विश्वविद्यालय से जो सीखा, उस हुनर का उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पटल पर प्रभावी प्रयोग भी किया। देश के लिए और अपने इस संस्थान के लिए ख्याति अर्जित की।
उन्होंने बेहद कम उम्र में गतिशील नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई थी और सिर्फ 25 साल की उम्र में ही हरियाणा में कैबिनेट मंत्री बन गई थीं। अपने शानदार राजनीतिक जीवन में सुषमाजी ने कई काम पहली बार किए- अपने दल में पहली महिला महासचिव बनीं, दिल्ली की पहली मुख्यमंत्री भी बनी थीं।
वे लोकसभा के लिए सात बार और विधानसभा के लिए तीन बार निर्वाचित हुईं, जिससे जनता के बीच उनकी लोकप्रियता का पता चलता है। वह प्रखर राष्ट्रवादी थीं। हमेशा ही उन्होंने स्पष्टता के साथ अपने विचारों को रखा। 1996 में लोकसभा में एक बहस के दौरान जिस प्रभावी ढंग से उन्होंने "भारतीयता" को परिभाषित किया, उसकी यादें आज भी हमारे मन में तरोजाता हैं। वास्तव में, वह एक बेहतरीन वक्ता थीं और हर कोई उन्हें ध्यान से सुना करता था।
सुषमा जी की हिंदी सुनने और सभी के समझने लायक होती थी। उनके शब्दों का चयन शुद्ध होता था। फिर भी उनका भाषण इतना सहज और सरल लगता था कि श्रोता मंत्र मुग्ध होकर सुनते थे। संस्कृत के प्रति उनका विशेष आग्रह होता था, वे अपनी शपथ संस्कृत में ही लेती थी। हरियाणा की निवासी होने की वजह से हरियाणवी हिंदी पर उनका अधिकार होना तो स्वाभाविक था, लेकिन कर्नाटक में चुनाव लड़ते समय कन्नड़ भाषा में उनके धारा प्रवाह भाषण, उनको सचमुच बहु भाषी बनाते थे। भारतीय भाषाओं के प्रति उनका अनुराग हम सबके लिए अनुकरणीय है। कोई भी भाषा कभी भी कमतर हो ही नहीं सकती, क्योंकि वो अपनी संस्कृति और संस्कारों से हमारा परिचय कराती है। भाषा, राजनैतिक विचारों और संसदीय आदर्शों के प्रति उनकी निष्ठा के कारण ही भारत की संसद ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान प्रदान किया था।
सुषमा जी को भारतीय संस्कृति की एक प्रतीक के रूप में देखा जाता था। वह आधुनिक सोच और पारंपरिक मूल्यों का मिला जुला रूप थीं। वह वरिष्ठ और बुजुर्गों के प्रति हमेशा ही सम्मान प्रदर्शित करती थीं। वह सबसे ज्यादा मिलनसार भारतीय राजनेताओं में से एक थीं और सभी के साथ गर्मजोशी और स्नेह के साथ पेश आती थीं। वास्तव में, हर क्षेत्र में उन्हें मिली प्रशंसा उनके मित्रवत् व्यवहार का प्रमाण है। सुषमा जी एक कुशल प्रशासक थीं और उन्होंने हर उस पद पर कार्य के दौरान अमिट छाप छोड़ी, जो उन्होंने संभाले थे। उदाहरण के लिए, सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने उद्योग का दर्जा देने की फिल्म क्षेत्र की बहु प्रतीक्षित मांग को स्वीकार कर लिया था।
(मानवेन्द्र नाथ पंकज-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)