गलवान वेली हमला कारगिल से कितना मुख़्तलिफ़ ?
नई दिल्ली। कांग्रेस व चीन की जबरदस्त मोर्चेबन्दी के बीच केंद्रीय राज्य मंत्री और पूर्व आर्मी चीफ जनरल वी के सिंह ने गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों पर चीन के सैनिकों द्वारा क्रूरतापूर्वक हमले के सम्बन्ध में सनसनीखेज रहस्योद्घाटन किया है। उन्होंने कहा कि चीन ने ही भारत के सैनिक नहीं लौटाए, बल्कि भारत ने भी चीन के सैनिक लौटाए हैं।
जनरल सिंह ने कहा, 'कुछ मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने कुछ भारतीय सैनिकों को पकड़ा था और उन्हें लौटाया है। इसी तरह हमने भी चीन के कुछ सैनिकों को पकड़ा था और फिर उन्हें छोड़ दिया गया। इस झड़प में चीन के दोगुने सैनिक मारे गए हैं। हमारे 20 शहीद हुए हैं तो चीन के इससे ज्यादा सैनिक मारे गए हैं लेकिन चीन यह नहीं बताएगा। वहां हर चीज को छिपाया जाता है। वहां चीन के दोगुने से ज्यादा सैनिक मारे गए हैं। हमारे सैनिकों ने बदला लेकर शहादत दी है। ध्यान रहे इस घटना में एक कर्नल समेत भारतीय सेना के 20 जवान वीरगति को प्राप्त हुए, 78 जवान घायल बताए जा रहे है । चीन को भी इसमें भारी नुकसान हुआ और उसके 43 सैनिक हताहत हुए। लेकिन चीन ने आधिकारिक रूप से इसकी पुष्टि नहीं की है।गलवान घाटी में मौजूदा स्थिति के बारे में पूर्व आर्मी चीफ ने कहा कि गलवान घाटी का जो इलाका भारत के पास था, वो अब भी हमारे पास है। झगड़े की जड़ पेट्रोल पॉइंट 14 है जो अब भी भारत के नियंत्रण में है। गलवान घाटी का एक हिस्सा उनके पास है और एक हिस्सा अब भी हमारे पास है। चीन 1962 से वहां बैठा है लेकिन हम भी वहां से नहीं हिले हैं। ज्ञात हो चीनी सेना ने गलवान घाटी की ऊंचाई वाले इलाके में एक संकरे पहाड़ी रास्ते पर निगरानी चौकी स्थापित कर ली थी। चीनी सैनिकों ने ऐसा तब किया जब मिलिट्री कमांडर लेवल की मीटिंग में दोनों पक्षों के पीछे हटने पर सहमति बनी थी। सूत्रों के मुताबिक दिवंगत कर्नल बी संतोष बाबू के नेतृत्व में भारतीय सैनिकों ने गलवान नदी के दक्षिणी तट पर वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय क्षेत्र में चौकी बनाने पर कड़ी आपत्ति जताई और इसके बाद जो हुआ, वह दूसरा कारगिल कहा जा सकता है। भारतीय रणबांकुरों ने आत्म बलिदान कर चीनी टेंट को हटा ही दिया, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी जो चीन की सेना कही जा रही है, उसे पीछे ढकेल दिया।
पूर्वी लद्दाख में एलएसी के करीब स्थित गलवान घाटी क्षेत्र सामरिक दृष्टि से बेहद अहम है। इस इलाके में एलएसी पर कोई विवाद नहीं रहा है, लेकिन चीन अब पूरी गलवान घाटी पर अपना दावा जता रहा है। चीन को आशंका है कि इस इलाके में भारत की मजबूत स्थिति से उसकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। गलवान सेक्टर बेहद संवेदनशील है, क्योंकि एलएसी के नजदीक डीएस-डीबीओ रोड से जुड़ता है। भारत व चीन दोनों की सेनाएं अभी तक सैनिकों के अपने कब्जे में होने से इनकार कर रही थी, उससे पर्दा हट गया है। ऐसा लगता है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने जिस प्रकार प्रधानमंत्री की घेराबंदी की, चीन ने भी प्रधानमंत्री के बयान को ही अपना हथियार बनाया, उसके डैमेज कण्ट्रोल के लिए जनरल सिंह को उतारा गया। कांग्रेस व भाजपा में गलाकाट प्रतियोगिता चल रही है। भले ही लगभग सभी दल चीन को हमलावर मानते हुए प्रधानमंत्री से सेना को खुली छूट देने की मांग कर रहे हैं। अब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सेना को खुली छूट की घोषणा भी कर दी है। मजबूती से भारत सरकार के साथ खड़े हैं। कांग्रेस मोदी विरोध में अंधी होकर चीन के साथ खड़ी दिखाई दे रही है। कारगिल युद्व के समय सेनाध्यक्ष रहे जनरल मलिक का कहना कि नेशनल सिक्यॉरिटी बहुत बड़ा मुद्दा है। इस मुद्दे पर गंदी राजनीति नहीं होनी चाहिए। सवाल उठाना गलत नहीं है, लेकिन तू-तू-मैं-मैं करना गलत है। इन्फॉर्मेशन स्ट्रैटिजी की आवश्यकता बताते हुए उन्होंने कहा कि इससे बेकार की बातों को रोका जा सकता है। इस परामर्श को न तो सरकार मानकर सूचना रणनीति बना रही है न ही कांग्रेस अपने छिछोरेपन से बाज आ रही है। जहां शशि थरूर कहते हैं कि हमारे दस सैनिकों को चीन ने ऑक्सीजन देकर बचाया, वहीं राहुल गांधी ने कहा, नरेंद्र मोदी असल में सरेंडर मोदी हैं राहुल गांधी ने जापान टाइम्स के एक लेख को साझा करते हुए ये बात कही। जिसमें भारत की मौजूदा नीति को चीन की तुष्टीकरण वाला बताया गया है। राहुल ने ऐसा ट्वीट करते हुए स्पेलिंग मिस्टेक कर दिया, जिस से उनका मजाक उड़ाया जा रहा है। इससे पूर्व राहुल गांधी ने गलवान में हिंसक झड़प के मसले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सर्वदलीय बैठक के बाद दिए बयान पर भी प्रशनचिह्न लगाया था। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था न तो कोई हमारी सीमा में घुसा हुआ है और न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्जे में है। लद्दाख में हमारे 20 जांबाज शहीद हुए, लेकिन जिन्होंने भारत माता की तरफ आंख उठाकर देखा था, उन्हें वो सबक सिखाकर गए। प्रधानमंत्री के इस बयान को आत्मघाती गोल मानकर चीन व कांग्रेस ने लपक लिया। प्रधानमंत्री कार्यालय ने स्पष्टीकरण भी दिया परन्तु बात सम्हली नहीं। जनरल के बयान से पता चलता है कि गलवान घाटी को 1962 से ही अपना बताने की हिम्मत न करने वाला चीन क्यों अपना क्षेत्र बताने की हिम्मत कर रहा है? जनरल के बयान से स्पष्ट हो रहा है सरकार जनता से कुछ छिपा रही है। एक राजनेता इस हमले को नरसंहार बता रहे है तो क्या गलवान घाटी क्षेत्र दूसरा करगिल साबित हो रहा है? चीनी मीडिया जो सरकारी नियंत्रण में है, उसके वक्तव्य से भारत सरकार की रणनीति की वस्तुस्थिति से 36 का आंकड़ा परिलक्षित होता है। यह वक्तव्य भले ही झूठ का पुलिंदा हो परन्तु इससे हमारे वार्ताकारों की विफलता व भारतीय विदेश नीति की अप्रासंगिकता परिलक्षित हो रही है। कांग्रेस अतीत से सबक नहीं लेेना चाहती है। उसके अभियान से उसके काले कारनामे सामने आ रहे है, मोदी को सहानुभूति मिल रही है, वह जनता की नजरो में खलनायक जैसी बनती जा रही है। सेना ने जो पराक्रम दिखाया, उससे चीन को भारी नुकसान पहुंचा, ऐसा चीन की गतिविधियों से लग रहा है। प्रधानमंत्री ने सीमा पर आधारभूत ढांचे का विकास जिस प्रकार तीव्र गति से कराया, सेना को साजो सामान मुहैया कराया, वह प्रशंसनीय है। परन्तु धोखा खाने की भारतीय नेताओं की परंपरा से अलग न हो पाना, उनकी सदाशयता पर प्रशनचिह्न जैसा है। सेना की वीरता की ढाल लेकर राजनीतिक निर्णयों को समीक्षा के दायरे से रखना दुर्भाग्यपूर्ण कहा जा सकता है। यक्ष प्रश्न यह है कि क्या भारत शांति व व्यापार की मृगतृष्णा से बाहर आकर सामरिक मोर्चे पर यथार्थवादी रणनीति को लागू करेगा?
(मानवेन्द्र नाथ पंकज-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)