सरकार बदलने, जजपा से अलग होकर लड़ने का भाजपा का दांव नहीं चल पाया
चंडीगढ़। संभवत: किसान आन्दोलन, अग्निवीर, बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दों का या फिर साढ़े नौ साल से भाजपा के सरकार में रहने के कारण सत्ता विरोधी लहर का असर था कि हरियाणा में पार्टी का न सरकार बदलना नुकसान से बचा पाया न जननायक जनता पार्टी से अलग होने का दांव चल पाया।
मार्च में जब अचानक भाजपा ने जजपा से नाता तोड़कर मनोहर लाल खट्टर के स्थान पर नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया गया तो कहा जा रहा था कि इससे पार्टी ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। जहाँ सत्ता विरोधी लहर पर काबू पाया जा सकेगा वहीं जजपा विपक्ष (खासकर कांग्रेस) के वोट काटेगी और भाजपा आराम से लोकसभा चुनाव की वैतरणी पार कर जायेगी, लेकिन मंगलवार सुबह मतगणना से आ रहे रुझानों से साफ़ है कि भाजपा का यह तीर निशाने पर नहीं बैठा। कांग्रेस जहां पांच सीटों पर आगे चल रही है, वहीं आम आदमी पार्टी एक सीट पर और भाजपा चार सीटों पर ही आगे है। हालांकि यह रुझान ही हैं पर सिरसा और रोहतक (बढ़त के मतों का अंतर एक लाख चालीस हज़ार) पर कांग्रेस के क्रमश: कुमारी सैलजा और दीपेन्द्र सिंह हुड्डा आसानी से जीतते दिखाई दे रहे हैं।
भाजपा की तरफ से करनाल से चुनाव लड़ रहे मनोहर लाल खट्टर भी सवा लाख मतों के अंतर से आगे चल रहे हैं। उनके अलावा भाजपा फरीदाबाद में भी मज़बूत स्थिति में है, जहां उसके प्रत्याशी कृष्ण पाल 85000 मतों से आगे चल रहे हैं। कांग्रेस अम्बाला (22000 से अधिक), गुडगांव (20000 से अधिक), हिसार (15000 से अधिक) से आगे चल रही है। हिसार में पहले भाजपा के रणजीत सिंह आगे चल रहे थे। भाजपा भिवानी-महेंद्रगढ़ (17000 से अधिक), सोनीपत (11000 मतों से अधिक) और कुरुक्षेत्र से 800 मतों के अंतर से आगे चल रही है।
जाहिर है कि अभी नतीजों में उलटफेर हो सकता है लेकिन जजपा प्रत्याशियों को कहीं इतने वोट नहीं पड़े कि उसका असर नतीजों पर पड़ सके। कुरुक्षेत्र में ज़रूर इंडियन नेशनल लोकदल प्रत्याशी 23000 वोट पाकर तीसरे नम्बर पर हैं और यह भाजपा और आप प्रत्याशी के अंतर से ज़्यादा भी है। कहा जा सकता है कि चुनावों में सीधी टक्कर भाजपा और कांग्रेस-आप गठजोड़ में हुई है।