उपद्रवियों का मुंह बंद कराने के लिए नहीं लग सकता राजद्रोह-कोर्ट

उपद्रवियों का मुंह बंद कराने के लिए नहीं लग सकता राजद्रोह-कोर्ट

नई दिल्ली। राजद्रोह के आरोप में बंद दो लोगों के मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली के एक न्यायालय ने कहा कि विद्रोह करने पर उतारू उपद्रवियों का मुंह बंद कराने के बहाने असंतुष्टों को खामोश करने के लिए किसी के ऊपर राजद्रोह का कानून नहीं लगाया जा सकता है। इसी के साथ कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के प्रदर्शन के दौरान फेसबुक पर फर्जी वीडियो डालकर कथित रूप से राजद्रोह और अफवाह फैलाने के आरोप में गिरफ्तार दो लोगों को दिल्ली के न्यायालय ने जमानत दे दी है।

दरअसल देश में नये कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन के तहत किये गये प्रदर्शन के दौरान सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हुए फेसबुक पर एक वीडियों अपलोड करते हुए वायरल कर दिया गया था। पुलिस ने इस सिलसिले में दो आरोपियों को गिरफ्तार करते हुए जेल भेज दिया था। बुधवार को इस बाबत पीडितों के ओर से न्यायालय में डाली गई याचिका की सुनवाई की गई। न्यायालय ने पूरा मामला जानने के बाद अपनी टिप्पणी में कहा कि उपद्रवियों का मुंह बंद कराने के बहाने सरकार की किसी बात से असंतुष्ट लोगों का मुंह बंद कराने के लिए संबंधित पर राजद्रोह का कानून नहीं लगाया जा सकता। न्यायालय ने किसानों के प्रदर्शन के दौरान फेसबुक पर फर्जी वीडियो डालकर कथित रूप से राजद्रोह और अफवाह फैलाने के आरोप में गिरफ्तार दो लोगों को जमानत दे दी है। मामला कुछ इस तरह से है कि दिल्ली पुलिस ने देवी लाल बुरदक और स्वरूप राम को पिछले दिनों गिरफ्तार किया था। मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में कहा कि उसके सामने आए मामले में आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह) लगाया जाना गंभीर चर्चा का विषय है। विद्धान न्यायाधीश ने कहा कि माना समाज में शांति और व्यवस्था कायम रखने के लिए सरकार के हाथ में राजद्रोह का कानून एक शक्तिशाली हथियार है। परंतु इस कानून को उपद्रवियों का मुंह बंद करने के बहाने असंतुष्टों को खामोश करने के लिये लागू नहीं किया जा सकता हैै। इसी के साथ अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने अपने आदेश में कहा कि "जाहिर तौर पर कानून ऐसे किसी भी कृत्य का निषेध करता है, जिसमें हिंसा के जरिए सार्वजनिक शांति को बिगाड़ने या गड़बड़ी फैलाने की प्रवृत्ति हो." आदेश में कहा गया कि हिंसा, और किसी तरह के भ्रम, तिरस्कारपूर्ण टिप्पणी या उकसावे के जरिए आरोपियों की तरफ से सार्वजनिक शांति में किसी तरह की गड़बड़ी या अव्यवस्था फैलाने के अभाव में संदेह है कि आरोपियों पर धारा 124 (ए) के तहत कार्रवाई की जा सकती है।

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